Leap Year 2024: लीप ईयर क्यों जरूरी है? यह फरवरी माह में ही क्यों मनाया जाता है. जानें ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य?
Leap Year

प्रत्येक लीप वर्ष में, फरवरी 28 के बजाय 29 दिन का होता है, और अगले तीन साल 28 दिन का फरवरी होता है. ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है, कि जिनका जन्म अथवा विवाह लीप ईयर में होता है, उसे उस दिन को सेलिब्रेट करने के लिए 4 साल की लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि 29 फरवरी का दिन चार साल के अंतराल पर क्यों आता है? अथवा तीन साल तक फरवरी 28 दिनों का क्यों होता है.? यहां हम जानेंगे कि लीप ईयर क्या होता है, और क्यों जरूरी है लीप ईयर का होना? तथा अगर हम लीप ईयर नहीं माने तो क्या फर्क पड़ता है.

लीप ईयर 29 दिन का क्यों होता है?

प्रत्येक 4 साल के अंतराल पर आने वाले वार्षिक कैलेंडर में 365 की बजाय 366 दिन होते हैं, इसे लीप ईयर कहते. खगोलीय घटनाओं के तहत पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन और करीब 6 घंटे (365. 2421 Day) लगाती है. इस कारण हर 4 साल में एक दिन का समय बढ़ जाता है. इसलिए प्रत्येक चार साल में एक दिन अतिरिक्त जोड़ने से तारीख और समय में संतुलन स्थापित करने की कोशिश की जाती है. यह भी पढ़ें : Guru Ravidas Jayanti 2024 Wishes: गुरु रविदास जयंती की इन हिंदी WhatsApp Messages, Quotes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं

फरवरी में ही क्यों होता है लीप ईयर?

अकसर यह सवाल जेहन में आता है, कि लीप ईयर फरवरी महीने में ही क्यों मनाया जाता है? गौरतलब है कि पहले जूलियन कैलेंडर के अनुसार, जिसे रोमन सौर कैलेंडर भी कहा जाता है, इसके अनुसार उस समय साल की शुरुआत मार्च माह से होता था, और साल की समाप्ति फरवरी माह में होती थी. इसलिए कैलकुलेशन में आसानी के लिए इसे साल के अंत यानी फरवरी माह के साथ जोड़ा गया. इसके अलावा उन दिनों फरवरी माह अशुभ माना जाता था, जो नये साल के स्वागत स्वरूप सही नहीं समझा गया, इसके बाद जूलियन कैलेंडर की जगह ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुआत हुई, और पहला महीना जनवरी कर दिया गया. और फरवरी दूसरा.

लीप ईयर मनाना क्यों जरूरी है?

खगोलशास्त्रियों के अनुसार समय चक्र के बीच सही तालमेल बैठाने की वजह से लीप ईयर मनाना जरूरी होता है. पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने के लिए 365 दिन और करीब 6 का समय लेती है. ऐसे में अतिरिक्त 6 घंटों को चार सालों तक जोड़कर 24 घंटे (एक दिन) होता है. इन 6 घंटों को अगर समय चक्र में जोड़ा नहीं जाए तो सौ साल बाद हम 25 दिन आगे निकल जाएंगे. इससे मौसम वैज्ञानिकों को मौसम का सही गणना कर पाना मुश्किल होगा. इसके अलावा पृथ्वी से संबंधित खगोलीय घटनाओं की भी सही जानकारी नहीं मिल सकेगी.