Lala Lajpat Rai Jayanti 2024: क्या वाकई अंग्रेज अधिकारी खौफ खाते थे शेर-ए-पंजाब से? जानें क्या थी हकीकत?

आजादी की लड़ाई संदर्भित इतिहास के पन्नों में तमाम क्रांतिकारियों एवं शहीदों के नाम दर्ज हैं, जिनके साहसिक कारनामों और देशप्रेम विचारों से अंग्रेजी हुकूमत दहशतजदा रहती थी, ऐसा ही एक नाम है लाला लाजपत राय, जिन्हें शेर-ए-पंजाब के नाम से भी सम्मानित किया जाता है.

लाला लाजपत राय जयंती 2024 (Photo Credits: File Image)

आजादी की लड़ाई संदर्भित इतिहास के पन्नों में तमाम क्रांतिकारियों एवं शहीदों के नाम दर्ज हैं, जिनके साहसिक कारनामों और देशप्रेम विचारों से अंग्रेजी हुकूमत दहशतजदा रहती थी, ऐसा ही एक नाम है लाला लाजपत राय, जिन्हें शेर-ए-पंजाब के नाम से भी सम्मानित किया जाता है. आजादी का बिगुल फूंकते हुए लाला जी शहीद हो गये, लेकिन अपने पीछे उन तमाम क्रांतिकारियों के मन में आजादी का मंत्र फूंकने में कामयाब रहे. लाला जी ने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना कर देश की आर्थिक स्थिति को भी सशक्त करने का प्रयास किया था. लालाजी की 159वीं (28 जनवरी 1865) जयंती के अवसर पर हम यहां जानेंगे आखिर ब्रिटिश हुकूमत लाला लाजपत राय से क्यों खौफ खाती थी...

प्रारंभिक जीवन

लाला लाजपत राय का जन्म फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था. पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के प्रगाढ़ पंडित थे, माँ गुलाब देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. लालाजी कैशोर्य अवस्था से ही लेखन और भाषण आदि में रुचि लेते थे. कॉलेज में उनकी मुलाकात भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों लाला हंस राज, पंडित गुरु दत्त आदि से हुई. कानून की डिग्री पूरी करने के पश्चात कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार में वकालत की. साल 1877 में उनका विवाह राधा देवी से हुआ. 1888-1889 के दौरान राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र में एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया. वह कांग्रेस में रहकर भी अहिंसा प्रवृत्ति से दूर गर्म स्वभाव के नेता के रूप में लोकप्रिय थे. यह भी पढ़ें : Kala Ghoda Arts Festival 2024: मुंबई एक चमकदार सप्ताहांत के लिए तैयार! नृत्य, कला और संगीत का काला घोड़ा महोत्सव आ गया, आज से होगा शुरू

अमेरिका में आजादी का बिगुल फूंका

साल 1917 अक्टूबर में लाला लाजपत राय अमेरिका पहुंचे. न्यूयॉर्क में उन्होंने इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नामक एक संगठन की स्थापना की. तीन साल तक विदेश में आजादी का बिगुल फूंकने के पश्चात लालाजी 20 फरवरी 1920 को स्वदेश लौटे तो अंग्रेज अफसरों के लिए वे नाक का बाल बन चुके थे, क्योंकि भारत में सक्रिय युवा क्रांतिकारियों के वह मसीहा बन चुके थे. जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ा, जिससे अंग्रेज अधिकारी लगभग हताश हो चुके थे.

गांधी जी के फैसले का विरोध

चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया, तो लालाजी इसकी वजह नहीं समझ सके, कि गांधीजी ने ऐसा क्यों किया, क्योंकि असहयोग आंदोलन की सफलता से अंग्रेज त्रस्त थे. उन्होंने गांधीजी के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया. बताया जाता है कि उक्त फैसले से त्रस्त होकर लालाजी ने कांग्रेस इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन किया था. यहां भी आम जनता गांधीजी के बजाय लाला लाजपत राय के पक्ष में थी. लालाजी को इस तरह जनसमर्थन मिलना अंग्रेजों के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा था.

षड़यंत्र के साथ लालाजी की हत्या का प्रयास

लालाजी के बढ़ते कद से अंग्रेज अफसर परेशान थे. 3 फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो लालाजी ने पुरजोर विरोध किया. यह साइमन कमीशन भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा एवं रपट तैयार के लिए बनाया गया था. जिसे भारतीय संवैधानिक ढांचे को अंग्रेजी मंशा के आधार पर तैयार किया गया था, जिसका पूरे देश में जबरदस्त विरोध हुआ. 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में उग्र विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसका नेतृत्व लालाजी कर रहे थे. लालाजी के समर्थन में उमड़ी जनसैलाब देख अंग्रेज अधिकारी बौखला गए थे. उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से लालाजी पर निर्मम लाठियां चलाईं. जिस कारण 17 नवंबर 1928 को पंजाब का यह शेर सदा के लिए सो गया.

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