Kalash Sthapana in Navratri 2025: नवरात्रि पर कलश स्थापना क्यों करते हैं? जानें कलश के प्रतीकवाद की खोज ब्रह्मांडीय गर्भ से अनुष्ठान वेदी तक!
हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में कलश का विशेष महत्व है. कलश वस्तुतः शुद्ध जल से भरा पात्र, जिसके ऊपर आम के पत्ते और एक नारियल रखा होता है, मूल स्रोत का प्रतिनिधित्व करता है. वैदिक साहित्य में जल को जीवन का स्रोत बताया गया है और पात्र में जल भरकर, श्रद्धालु प्रतीकात्मक रूप से ब्रह्मांडीय गर्भ का आह्वान करते हैं, यानी जीवन के स्रोत के साथ-साथ ब्रह्मांड को भी स्वीकार करते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में यह पात्र आज संसार की एक छोटी प्रतिकृति मानी जाती है, जो उर्वरता और निरंतरता की भावना को बनाए रखता है.
हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में कलश का विशेष महत्व है. कलश वस्तुतः शुद्ध जल से भरा पात्र, जिसके ऊपर आम के पत्ते और एक नारियल रखा होता है, मूल स्रोत का प्रतिनिधित्व करता है. वैदिक साहित्य में जल को जीवन का स्रोत बताया गया है और पात्र में जल भरकर, श्रद्धालु प्रतीकात्मक रूप से ब्रह्मांडीय गर्भ का आह्वान करते हैं, यानी जीवन के स्रोत के साथ-साथ ब्रह्मांड को भी स्वीकार करते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में यह पात्र आज संसार की एक छोटी प्रतिकृति मानी जाती है, जो उर्वरता और निरंतरता की भावना को बनाए रखता है. आगामी शारदीय नवरात्रि (22 सितंबर 2025) पर माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के साथ कलश स्थापना का विशेष महत्व है. आइये जानें नवरात्रि पर कलश स्थापना के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बातें.
पवित्र ऊर्जा पात्र
कलश मां दुर्गा की दिव्य उपस्थिति का सिंहासन है. आध्यात्मिक समारोहों में मंत्रों और जापों के माध्यम से कलश पर अधिकार करने हेतु आह्वान किया जाता है. यह प्रक्रिया कलश को आशीर्वाद और शुभ ऊर्जा का एक शुभ पात्र बनाती है. नारियल समृद्धि का और आम के पत्ते ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये दोनों मिलकर कलश को शुभता का प्रतीक बनाते हैं, जो अनुष्ठान स्थल पर दिव्य ऊर्जा लाता है. यह भी पढ़ें : Mahalaya 2025: कब और क्यों मनाया जाता है महालया? जानें इसके इतिहास एवं महात्म्य आदि के बारे कुछ अनछुई बातें!
प्रवेश द्वारों की शुद्धि
घरों, मंदिरों यहां तक कि आयोजन स्थलों के द्वार पर कलश रखना स्वागत और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि कलश का जल वायु को शुद्ध करता है, जबकि यह व्यवस्था घर के भीतर व्याप्त बुरी शक्तियों से रक्षा करती है. अधिकांश संस्कृतियों में, प्रवेश द्वार पर कलश रखना इस बात का संकेत है कि वह स्थान पवित्र, सुरक्षित और धार्मिक या सामाजिक समारोहों के लिए रखा गया है. यह आगंतुकों को अहसास दिलाता है कि वे शांति और गरिमा की दुनिया में आ रहे हैं.
प्रचुरता और निरंतरता का प्रतीक
अनुष्ठानों के अलावा, कलश को समृद्धि, संपन्नता और जीवन की निरंतरता का भी प्रतीक माना जाता है. विवाह, गृहप्रवेश और आध्यात्मिक पर्वों में, यह समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और पीढ़ियों की समृद्धि की कामना का प्रतीक है. कलश के गोल मुख को संपूर्णता का भी प्रतीक माना जाता है. इसे समारोहों और परिवर्तन के क्षणों में शामिल करके, घर-परिवार के लोग आगामी पीढ़ियों तक पहुंचने वाली अखंड समृद्धि और आशीर्वाद की कामना करते हैं.
कलश और उसके पांच मूल तत्व (पंचभूत)
कलश की संरचना के अनुसार यह पांच तत्वों यानी पंचभूत का प्रतिनिधित्व करता है. घड़ा पृथ्वी का प्रतीक है. अंदर का जल अपस (जल) का प्रतीक है. घड़े का मुख अग्नि एवं मुख वायु का प्रतीक है. कलश पर रखा नारियल और आम के पत्ते आकाश (ईथर) का प्रतीक हैं. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, कलश भगवान गणेश, जो हमारे जीवन से विघ्नों को दूर करते हैं, और देवी गौरी, जो घर की समृद्धि की देवी हैं, का साक्षात् रूप है. भक्त, संतान-प्राप्ति, विवाह तथा धर्म से जुड़े अन्य पर्वों के दौरान देवी के स्वरूप, कलश की पूजा करते हैं. बहुत से घरों में स्वागत के प्रतीक स्वरूप भी घरों के प्रवेश द्वार पर, उत्तर दिशा में, मध्य में कलश रखते हैं. उत्तर दिशा संतुलन का प्रतीक है, और उस दिशा में कलश रखकर, हम अपने जीवन में संतुलन और खुशियों को आमंत्रित करते हैं.