Jalaram Jayanti 2021: श्रीराम के अनन्य भक्त जलाराम की 222वीं जयंती! जानें किस तरह उनके जीवन में चमत्कार हुए?
जलाराम बापा जयंती (Photo Credits: File Photo)

भारत भूमि आदिकाल से संतों की जननी रही है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक लगभग हर क्षेत्र में एक से बढ़कर एक सिद्ध संत पुरुषों ने जन्म लिया, और समाज हित के कार्य किये. इन्हीं में एक हैं राजकोट (गुजरात) की पवित्र भूमि पर जन्में महान संत जलाराम बापा. भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त कहे जाने वाले जलाराम बप्पा के जीवन में श्रीराम को लेकर तमाम तरह की ऐसी घटनाएं घटीं, जिसे देख कोई भी आसानी से विश्वास नहीं करेगा. इस वर्ष देश जलाराम बापा की 222वीं जयंती मनाने जा रहा है. जलाराम के संदर्भ में लोकप्रिय है कि इनकी कृपा से इंसान के असंभव कार्य संभव हो जाते थे. आइये जानें इस दिव्य संत ने के दिव्य कारनामों के बारे में.

बचपन से सांसारिक जीवन से विरक्ति थी

जलाराम बापा का जन्म 1799 में राजकोट (गुजरात) स्थित वीरपुर में कार्तिक माह के 17वें दिन हुआ था. पिता प्रधान ठक्कर और माँ राजबाई ठक्कर थीं. सनातन धर्म के अनुसार भगवान श्रीराम के अटूट भक्त कहे जाने वाले जलाराम बापा का बचपन से ही सांसारिक जीवन के प्रति कोई अनुराग नहीं रहा. कुछ दिनों तक वे पिता के दबाव के कारण उनके व्यवसाय में उनका हाथ बंटाते रहे, लेकिन शीघ्र ही उनका मन व्यवसाय से उचाट हुआ. वह अपने चाचा वालजी भाई के साथ रहने लगे. 18 वर्ष की आयु में एक बार तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात हिंदू धर्म के प्रति इतने आशक्त हुए कि फतेहपुर के भोज भगत के शिष्य बन गये. अपने गुरु के सुझाव पर उन्होंने ‘सदाव्रत’ नाम से भोजन केंद्र का उद्घाटन किया. इस भोजन केंद्र में साधु-संतों के साथ गरीब एवं जरूरतमंदों को मुफ्त भोजन खिलाया जाता था.

जब घर की जमीन से श्रीराम-सीता, हनुमान एवं लक्ष्मण की प्रतिमा प्रकट हुई.

एक दिन एक साधु महात्मा भोजन करने बापा के ‘सदाव्रत’ केंद्र पर पहुंचे. साधू ने भोजन करने के उपरांत जलाराम को भगवान श्रीराम की मूर्ति उपहार स्वरूप देते हुए कहा, जहां श्रीराम होंगे, हनुमानजी अवश्य पधारेंगे, प्रतीक्षा करो. जलाराम ने श्रीराम की प्रतिमा को घर पर अपने पारिवारिक देवता के नाम से स्थापित किया. कुछ ही दिनों के पश्चात उसी स्थान से हनुमानजी की प्रतिमा प्रकट हुई. तत्पश्चात श्रीराम के साथ सीताजी एवं लक्ष्मणजी की प्रतिमा प्रकट हुई. श्रीराम की यह दिव्य लीला देखकर जलाराम हैरान रह गये. शीघ्र ही यह खबर आम लोगों तक पहुंच गयी. लोग उनके घर स्थापित दिव्य मूर्तियों का दर्शन करने आने लगे. यह भी पढ़ें : Chhath Pooja 2021: सोनू निगम और पवन सिंह के इस छठ गाने को महज कुछ दिनों में मिले करोड़ों व्यूज

इस तरह दुनिया में ख्याति अर्जित किया जलाराम ने

एक दिन एक पहुंचे हुए संत गुणातीत स्वामी जूनागढ़ जाते समय जलाराम से मिलने उनके ‘सदाव्रत’ केंद्र पहुंचे. जलाराम की सच्ची सेवा से प्रभावित होकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि जलाराम बापा का नाम गुजरात या भारत ही नहीं संपूर्ण दुनिया में एक सच्चे संत के रूप में जाना जायेगा. जलाराम के कारण ही कालांतर में वीरपुर एक पवित्र तीर्थ के रूप लोकप्रिय होगा. जलाराम बापा लोगों को ‘सदाव्रत’ केंद्र पर निर्विघ्न भोजन खिलाते रहे. बापाराम को दिवंगत हुए सैकड़ों साल बीत गये, लेकिन वीर पुर में आज भी जलाराम के शिष्य ‘सदाव्रत’ नामक भोजन केंद्र निर्विरोध मुफ्त चला रहे हैं.

कैसे जुड़ा उनके नाम के साथ ‘बापा’ शब्द!

एक बार हरजी नामक एक दर्जी को पेट में असहनीय पीड़ा शुरु हुई. जब सारी औषधियां निष्क्रिय हो गयीं. तब वह जलाराम के पास आया. उन्होंने उसकी पीड़ा सुनी. उन्होंने भगवान श्रीराम से प्रार्थना किया कि हरजी की पीड़ा हर लो प्रभु!, इतना कहते ही हरजी की पीड़ा खत्म हो गई. हरजी ‘जय हो बापा’ कहते हुए उनके पैरों पर गिर पड़ा. कहते हैं, इसके बाद से ही उनके नाम के साथ ‘बापा’ शब्द भी जुड़ गया. इस घटना के बाद लोग दूर-दूर से अपने कष्ट हरने की कामना के साथ जलाराम के पास आने लगे. एक बार एक मुस्लिम व्यवसायी का बेटा जमाल गंभीर रूप से अस्वस्थ हो गया. चिकित्सकों ने उसकी बीमारी को असाध्य बताते हुए इलाज करने से मना कर दिया. एक दिन हरजी के मुंह से जलाराम के चमत्कार की बात सुनकर बाप-बेटे जलाराम के पास पहुंचे. जलाराम जमाल को देखते ही उसके सारे कष्ट समझ गये. जमाल के पिता ने जलाराम से प्रार्थना की कि अगर उनका बेटा स्वस्थ होकर यहां से गया तो वह 40 बोरी गेहूं सदाव्रत केंद्र को देगा. जलाराम ने हमेशा की तरह श्रीराम का ध्यान कर जमाल को ठीक करने की प्रार्थना की. देखते ही देखते जमाल पूरी तरह स्वस्थ हो गया. इसके बाद जमाल के पिता ने अपने वादे को पूरा करते हुए गेहूं की 40 बोरियां स्वयं लेकर स्वयं जलाराम बापा के पास आया.