Vikram Sarabhai Birth Anniversary: ISRO के जनक विक्रम साराभाई की 100वीं जयंती, जानें भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले इस वैज्ञानिक से जुड़ी 10 रोचक बातें
भारतीय स्पेस प्रोग्राम की मदद से आम लोगों की जिंदगी सुधारने का सपना देखने वाले विक्रम साराभाई का जन्म गुजरात के अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को हुआ था और देशभर में आज उनकी 100वीं जयंती मनाई जा रही है. भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले महान वैज्ञानिक और इसरो के जनक विक्रम साराभाई से जुड़ी ये 10 रोचक बातें आपको पता होनी चाहिए.
Vikram Sarabhai 100th Birth Anniversary: भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले महान वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक (Father of ISRO) विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) के 100वें जन्मदिन पर गूगल ने खास डूडल (Google Doodle) बनाकर उन्हें समर्पित किया है. भारतीय स्पेस प्रोग्राम (Indian Space Program) की मदद से आम लोगों की जिंदगी को सुधारने का सपना देखने वाले विक्रम साराभाई का जन्म गुजरात के अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को हुआ था और देशभर में आज उनकी 100वीं जयंती मनाई जा रही है. विक्रम साराभाई वही हैं, जिन्होंने भारत को चांद पर पहुंचाने का ख्वाब देखा था और आज उन्हीं की बदौलत भारत चांद तक पहुंच गया है. उन्हें भारतीय स्पेस प्रोग्राम का जनक भी माना जाता है.
भारत के महान वैज्ञानिक और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के संस्थापक विक्रम साराभाई की 100वीं जयंती (Vikram Sarabhai 100th Birth Anniversary) के मौके पर जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें...
विक्रम साराभाई से जुड़ी 10 रोचक बातें-
1- डॉ. विक्रम साराभाई को देश के महान वैज्ञानिक और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक के तौर पर जाना जाता है. उन्होंने ही भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन बनाया था.
2- साराभाई 18 साल की उम्र में पारिवारिक मित्र रबींद्रनाथ टैगोर की सिफारिश पर कैंब्रिज पहुंच गए. हालांकि, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर वह बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सीवी रमन के तत्वाधान में रीसर्च करने पहुंचे. इस केंद्र के लिए उन्होंने अपने पिता से ही आर्थिक मदद ली थी.
3- विक्रम साराभाई ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद महज 28 साल की उम्र में अहमदाबाद में ही फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की थी. हालांकि कुछ ही सालों में उन्होंने पीआरएल को विश्वस्तरीय संस्थान बना दिया.
4- साराभाई को उनके बेहतर काम के लिए साल 1966 में पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया था. इससे पहले उन्हें साल 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और साल 1972 में उन्हें पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था.
5- कहा जाता है कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में उनकी मुलाकात प्रखर युवा विज्ञानी होमी भाभा से हुई. इसके अलावा यहीं पर वे क्लासिकल डांसर मृणालिनी स्वामिनाथन से मिले, जिनसे उन्हें प्यार हो गया और कुछ समय बाद उन्होंने मृणालिनी से शादी कर ली.
6- साराभाई और मृणालिनी की शादी में उनके परिवार के लोग शामिल नहीं हो पाए थे, क्योंकि उनके परिवार के लोग उस समय गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में व्यस्त थे. उनकी बहन मृदुला साराभाई ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई, जबकि साराभाई की खास दिलचस्पी विज्ञान और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में थी.
7- करीब 15 साल बाद जब वैज्ञानिकों ने स्पेस के अध्ययन के लिए सैटलाइट्स को एक अहम साधन के रूप में देखा, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू और होमी भाभा ने विक्रम साराभाई को चेयरमैन बनाते हुए इंडियन नैशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना के लिए समर्थन दिया. यह भी पढ़ें: Google Doodle: गूगल सेलिब्रेट कर रहा है ISRO के संस्थापक विक्रम साराभाई का 100वां जन्मदिन, ये खास डूडल बनाकर किया सलाम
8- डॉ. साराभाई चाहते थे कि भारत भी अपने उपग्रह को अंतरिक्ष भेज सके, इसके लिए उन्होंने स्पेस प्रोग्राम की शुरूआत तिरुवनंतपुरम के एक गांव थुंबा से की जहां न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर था और न ही वहां बने ऑफिस में छत थी. उन्होंने होमी भाभा की मदद से तिरुवनंतपुरम में देश का पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया.
9- साराभाई मैसचूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में विजिटिंग प्रॉफेसर रहे और होमी भाभा के निधन के बाद कुछ वक्त तक अटॉमिक एनर्जी कमीशन को भी संभाला. उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेंजमेंट- अहमदाबाद, दर्पण अकैडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन और कई सफल व्यापारों की नींव भी रखी.
10- बचपन से ही विज्ञान में रुचि रखने वाले साराभाई ने अपने एक रिश्तेदार से कपड़ा मीलों में काम करने वाले मजदूरों के संघर्ष की कहानियां सुन रखी थीं और कई अनुभवों से उनके भीतर सामाजिक चेतना जागी, जिसके बाद उन्होंने बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने का फैसला किया.
देश-विदेश के अनेक विज्ञान और शोध संबंधी संस्थाओं के अध्यक्ष व सदस्य रह चुके साराभाई, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने के बाद भी गुजरात विश्वविद्यालय में भौतिकि के शोध छात्रों की मदद करते रहे. उन्होंने अहमदाबाद में आईआईएम और फिजिक्स रिसर्च लेबोरेट्री बनाने में भी मदद की.
गौरतलब है कि 20 दिसंबर 1971 को वे अपने साथियों के साथ थुंबा गए थे, जहां एक रॉकेट का प्रक्षेपण होना था, लेकिन उसी रात अचानक उनका निधन हो गया. 52 वर्षीय साराभाई के निधन के बाद 19 अप्रैल 1975 को देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लॉन्च किया गया, जिसकी बुनियाद साराभाई तैयार कर गए थे.