Ashtvinayak: अष्टविनायक के स्वरूपों में पहला है मोरेश्वर, जानिए क्यों पड़ा था बाप्पा का ये नाम
मयूरेश्वर मंदिर पुणे, (फोटो क्रेडिट्स: Wikimedia Commons)

Ganeshotsav : गणेश चतुर्थी की शुरूआत हो चुकी है, गाजे बाजे के साथ बाप्पा का स्वागत हो रहा है. बाप्पा की प्रतिमाएं कुछ दिन पहले ही स्थापित हो चुकी हैं और कुछ आज धूम धाम से लाईं जा रही हैं. पूरी मुंबई बाप्पा के आने से हर्ष और उल्लास में डूबी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार में मध्याह्न काल यानी दोपहर के समय में हुआ था.  दस दिनों तक घरों और सार्वजनिक पंडालों में बाप्पा की स्थापना कर विधि-विधान से उनकी पूजा अर्चना की जाती है. भगवान गणेश के आठ रूप हैं, इसलिए उन्हें अष्टविनायक भी कहा जाता है. आज गणेशोत्सव का पहला दिन है, आज से हर दिन बाप्पा के अष्टविनायक स्वरूपों की पूजा की जाती है. पहले दिन उनके पहले स्वरूप मोरेश्वर की पूजा की जाती है.

पूरे महाराष्ट्र में भगवान गणेश के स्वरूपों के आठ मंदिर हैं. अष्टविनायक यानी ‘आठ गणपति'. अष्टविनायक मंदिर की अपनी विशेषता है. ये स्वयं प्रकट हुए थे इसलिए इन मंदिरों को स्‍वयंभू मंदिर भी कहा जाता है. महाराष्ट्र के आठ विख्यात अष्टविनायक मंदिरों में उनके पहले स्वरूप का मंदिर है मोरेश्वर मंदिर. यहां भगवान गणेश को मोरेश्वर या मयूरेश्वर रूप में पूजा जाता है. ये मंदिर मोरगांव में स्थित है. पुणे से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोरेगांव में गणपति बप्पा का यह प्राचीन मंदिर बना हुआ है. यह क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- "सुख समृद्ध भूमि".

मंदिर के चार द्वारों को सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का प्रतीक मानते हैं. यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उनकी सूंड बाईं तरफ है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं. मान्यताओं के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था. गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था. इसलिए वे मयूरेश्वर कहलाए.