Diwali 2024: दिवाली (अमावस्या) की मध्यरात्रि ही क्यों होती है काली-पूजा? जानें कौन हैं काली एवं क्या है काली-पूजा का मुहूर्त और महत्व!

भारत विभिन्नताओं का देश है. यहां अधिकांश पर्व विभिन्न प्रदेशों की संस्कृति, परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के साथ मनाये जाते हैं. उदाहरणार्थ दिवाली पर सारी दुनिया में सनातन धर्म के लोग प्रथम-पूज्य भगवान गणेश एवं देवी लक्ष्मी की पूजा-अनुष्ठान करते हैं

दिवाली 2024 (Photo Credits: File Image)

Diwali 2024: भारत विभिन्नताओं का देश है. यहां अधिकांश पर्व विभिन्न प्रदेशों की संस्कृति, परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के साथ मनाये जाते हैं. उदाहरणार्थ दिवाली पर सारी दुनिया में सनातन धर्म के लोग प्रथम-पूज्य भगवान गणेश एवं देवी लक्ष्मी की पूजा-अनुष्ठान करते हैं, वहीं पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में बंगाली समुदाय के लोग मां काली की पूजा-अनुष्ठान करते हैं. मान्यता है कि विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन की सारी कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है, वहीं सौभाग्य तथा समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा आर्थिक संकट दूर कर जीवन को सरल और सुखद बनाती है. इस दिन श्रद्धालु देवी लक्ष्मी के स्वागत स्वरूप अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं. घर के सामने रंगोली और मुख्यद्वार पर तोरण लगाते हैं, और दीवाली की रात पूरे घर को दीयों से सजाते हैं, लेकिन दिवाली के दिन पश्चिम बंगाल में देवी काली पूजा की पूजा का क्या अभिप्राय है, आइये जानते हैं.

कौन हैं मां काली

दुर्गा पूजा के 20 दिनों के बाद बंगालियों का दूसरा सबसे लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है काली पूजा. देवी पुराण के अनुसार माँ काली देवी दुर्गा का ही अति शक्तिशाली स्वरूप है. पौराणिक कथाओं के अनुसार मां दुर्गा ने अति क्रूर एवं शक्तिशाली राक्षस रक्तबीज के संहार के लिए मां काली का रूप धरा था. रक्तबीज को वरदान प्राप्त था कि जमीन पर गिरने से उसके रक्त के हर बूंद से उसी के समान शक्तिशाली राक्षस पैदा हो जाएंगे. असुरराज रक्तबीज से युद्ध के दौरान उसके रक्त के हर बूंद को जमीन पर गिरने से पूर्व ही माँ काली वह रक्त पी जाती थीं. इसके बाद ही वह देवी काली रक्तबीज का संहार कर सकी थीं. यह भी पढ़े: Diwali 2024 Rangoli Designs With Flowers: दिवाली में रंगोली की भूमिका और दीपावली’ के लिए गेंदा और अन्य फूलों का महत्व जानें

मध्य-रात्रि में क्यों होती है काली-पूजा!

16वीं शताब्दी में, ऋषि कृष्णानंद अगम वागीशा ने देवी काली को सपने में आदेश दिया कि वह उनके काली स्वरूप की पूजा करें. उन्होंने कार्तिक मास की अमावस्या को काली-पूजा शुरू की. 19वीं शताब्दी में श्री रामकृष्ण परमहंस जिनके बारे में प्रचलित है कि वह माँ काली से बात करते थे. उन्होंने काली-पूजा की परंपरा को आगे बढ़ाया. काली-पूजा अमावस्या की गहन काली रात में होती है. काली-पूजा सार्वजनिक नहीं होती. यहां बता दें कि कार्तिक मास की अमावस्या की रात साल की सबसे काली रात होती है, इसलिए इसी दिन मध्य-रात्रि में विद्वान पुरोहित के द्वारा काली-पूजा एवं अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते हैं. इस दिन श्रद्धालु माँ काली से अपने भीतर और बाहर की बुराइयों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं. मां काली की कृपा से भक्तों पर किसी तरह का संकट नहीं आता. बुरी आत्माएं उसके पास नहीं फटकती, साथ ही जातक के जीवन में हर तरह का सुख-वैभव बना रहता है.

काली पूजा का शुभ मुहूर्त

मां काली की पूजा अमूमन कार्तिक मास की अमावस्या की मध्यरात्रि के आसपास होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष अमावस्या 03.52 PM (31 अक्टूबर 2024) पर शुरू होकर अगले दिन 06.16 PM पर समाप्त होगी. इस आधार पर माँ काली की पूजा 31 अक्टूबर 2024 की मध्य रात्रि में संपन्न की जाएगी.

Share Now

\