व्रत एवं पूजा में क्यों नहीं खाते हैं लहसुन-प्याज? जानें इसके वैज्ञानिक, आयुर्वेदिक एवं आध्यात्मिक कारण!
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits Pixabay)

लहसुन और प्याज की गिनती शाक और सब्जियों में किया जाता है, साथ ही यह तमाम औषधियुक्त गुणों से युक्त भी माना जाता है, फिर क्या कारण है कि पूजा अनुष्ठान एवं व्रत आदि में इसे वर्जित माना जाता है. जैन समाज में तो इसे छूना भी पाप समझा जाता है. आइये जानें इसके पीछे आखिर क्या तर्क हो सकते हैं? यह भी पढ़े: Pradosh Vrat 2022: माघ माह का महासंयोग! जब एक ही दिन भगवान शिव के दो व्रतों का मिलेगा पुण्य-लाभ! जानें क्या हैं ये महायोग? और किस मुहूर्त में और कैसे करें व्रत एवं पूजा?

क्या कहता है आयुर्वेद?

वनस्पति शास्त्र में प्याज और लहसुन को हऐलीएश फैमिली का माना जाता है. आयुर्वेद के अनुसार खाद्य- पदार्थ तीन वर्गों में बँटे होते हैं. सात्विक, राजसिक और तामसिक. खाना हमारी तमाम भावनाओं को भी प्रभावित करते हैं. प्याज और लहसुन और इस फैमिली की अन्य वनस्पतियां राजसिक और तामसिक खाद्य के रूप में वर्गीकृत की गई हैं. कहने का आशय यह खाद्य-पदार्थ हमारी लालसाओं और अज्ञानता को बढ़ाती हैं.

नर्व सिस्टम को प्रभावित करता है!

विज्ञान की मानें तो प्याज और लहसुन आध्यात्मिक लोग इसलिए नहीं खाते क्योंकि यह व्यक्ति विशेष के नर्व सिस्टम पर असर डालते हैं. आयुर्वेद विज्ञान तो यहां तक कहता है कि लहसुन सेक्स पॉवर में कमतरी में टॉनिक की तरह काम करता है, यानी यह कामोत्तेजना को बढ़ाता है. इसके सेवन से ध्यान और भक्ति से मन भटकता है. शरीर की चेतना जागृत करते समय यह बाधा पैदा करती है, साथ ही मन-मस्तिक एकाग्र नहीं हो पाता.

वैज्ञानिक भी करते हैं मना!

लहसुन और प्याज के बारे में माना जाता है कि उसको कच्चा खाने से हानिकारक बाटूलिज्म बैक्टीरिया आपके शरीर में जगह बना सकता है. इससे खतरनाक एवं जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं. इस तरह विज्ञान भी मानता है कि लहसुन और प्याज के ज्यादा सेवन से बचना चाहिए.

ज्योतिषियों का ये कहना है!

ज्योतिषी प्याज और लहसुन से निषेध की वजह को समुद्र-मंथन की पौराणिक घटना से जोड़ते हैं. उनके अनुसार समुद्र-मंथन के समय तमाम शक्तियों से क्षीण होने के बाद श्रीहरि के सुझाव पर देव और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया. उसी दौरान लक्ष्मीजी के साथ कई दुर्लभ वस्तुओं के साथ अमृत कलश भी निकला था. अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया. तब श्रीहरि ने विष्णु मोहिनी रूप धारण कर पहले देवताओं को अमृत पिलाया, लेकिन इसी दौरान एक राक्षस देवों के बीच बैठ गया.

लेकिन सूर्य देव और चंद्र देव उसे पहचान गए. उन्होंने श्री हरि को सच्चाई बताई. श्रीहरि ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया, लेकिन तब तक राक्षस के मुँह में अमृत की कुछ बूंद अमृत का जा चुका था. सिर कटने से खून के साथ अमृत की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं. वह बूंद लहसुन और प्याज के रूप में उगा. मान्यतानुसार लहसुन और प्याज में अमृत और रक्त का अंश होने के कारण ही लहसुन और प्याज में कुछ अच्छे तो कुछ बुरे तत्व समाहित होते हैं. इसीलिए इनका उपयोग व्रत एवं पूजा अनुष्ठान आदि में नहीं किया जाता.