मुहर्रम 2019: मुस्लिम समुदय में ईद और बकरी के बाद मुहर्रम का महीना आता है. इस महीने को मुस्लिम समुदाय के लोग गम के रूप में मानते हैं. इस्लाम धर्म में मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है. इस महीने की 10 तारीख यानी आशूरा के दिन दुनियाभर में शिया मुसलमान पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इराक के कर्बला में हुई शहादत की याद में मातम मनाते हैं. वहीं, दूसरे अन्य मुसलमान इस महीने को गम के रुप में मनाते हैं. इस बार यदि 31 अगस्त को मुहर्रम का चांद दिखाई देता है तो पूरे देश में 1 अगस्त से मुहर्रम के महीने की शुरुआत हो जायेगी. जो नौ दिन बाद 10 वें दिन मातमी जुलूस और ताजिए निकाले जाएंगे.
मुहर्रम जो यह महिना गम के रूप में मनाया जाता है. इसमें मुहर्रम और आशुरा दोनों शामिल हैं. जो हम आपको मुहर्रम और आशुरा दोनों के बारे में विस्तार से बतातें है. यह भी पढ़े: Muharram 2018: जानिए इसका महत्व और कर्बला की जंग का इतिहास
जानें क्या है आशूरा:
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है. मोहर्रम को कर्बला की जंग का प्रतीक माना जाता है. कर्बला इराक़ का एक शहर है, जो इराक़ की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर है. मुस्लिमों के लिए दो जगहें सबसे पवित्र मानी जाती हैं मक्का और मदीना. इसके बाद अगर शिया मुस्लिम किसी जगह को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं तो वो है कर्बला. ऐसा इसलिए है कि इस शहर में इमाम हुसैन की कब्र है. कर्बला की जंग में इमाम हुसैन का कत्ल कर दिया गया था और उन्हें कर्बला में ही दफना दिया गया था. ये कत्ल मोहर्रम के महीने के 10वें रोज हुआ था. इस दिन को आशुरा कहते हैं.
क्या है मुहर्रम:
'मोहर्रम' इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है. इसी महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है. इस महीने की दस तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है. इसी दिन को अंग्रेजी कैलेंडर में मोहर्रम कहा गया है. मोहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों का कत्ल कर दिया गया था. हजरत हुसैन इराक के शहर करबला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे.
बता दें कि मुस्लिम समुदाय में दूसरे अन्य त्योहार खुशियों का त्योहार होता है, लेकिन मोहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. इस महीने में जहां मुस्लिम समुदाय के लोग गम मनाते है. वहीं शिया समुदाय के लोग इस महीने काले कपड़े पहनकर हुसैन की शहादत को याद करते है. मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को लोग हुसैन की शहादत में उन्हें याद करने के लिए सड़को पर जुलूस निकालते है और मातम मनाते हैं. इस महीने में लोग 9 वीं और 10वीं तारीख को रोजा भी रखते है और मस्जिदों में जाकर इबादत भी करते है. इस महीने में रोजा रखने को लेकर मान्यता है कि कोई इस महीने में एक रोजा रहता है तो उसे एक रोजे का सबाब 30 रोजे के बराबर मिलता है.