नई दिल्ली: इस्लाम धर्म में मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है. इस महीने की दस तारीख यानी आशूरा के दिन दुनियाभर में शिया मुसलमान पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इराक के कर्बला में हुई शहादत की याद में मातम मनाते हैं. वहीं, दूसरे अन्य मुसलमान इस महीने को गम के रुप में मनाते हैं. इस बार पूरे देश में 11 सितंबर से मुहर्रम के महीने की शुरुआत हो रही है और 21 सितंबर को मातमी जुलूस और ताजिए निकाले जाएंगे.
इस्लाम धर्म के मान्यताओं के मुताबिक इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह जो इंसानियत का दुश्मन था. वह खुद को खलीफा मानता था. लेकिन उसका अल्लाह पर कोई विश्वास नहीं था. जालिम बादशाह यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं. या फिर वे जंग के लिए तैयार हो जाएं. जो हजरत हुसैन को उसकी यह बातें मंजूर नहीं होने पर उन्होंने जालीम यजीद का काफी समझाने की कोशिश किया. उसके नहीं मानने पर उन्होंने उसके खिलाफ जंग लड़ने का एेलान कर दिया. उस लड़ाई के दौरान यजीद ने कर्बला में पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन के परिवार वालों को बुंद-बुद पानी के लिए पड़पा कर सभी लोगों को शहीद कर दिया. जिस महीने में हजरत हुसैन और उनके परिवार के लोगों को शहीद किया गया था. वह महीना मुहर्रम का ही था. इसलिए इस महीने को मुस्लिम समुदाय के लोग गम के रुप में मनातें है.ये भी पढ़े: ईद-उल-फितर: मुसलमानों के लिए होता है इनाम का दिन, सेवइयों की मिठास से दूर होती दिलों की कड़वाहट
मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का यह महीना है. इस महीने की 10वीं तारीख को यजीद ने इमाम हुसैन को बुंद-बुंद पानी के लिए तड़पाकर शदीद कर दिया. इसलिए इस महीने में मुसलमान अपने सभी खुशी को छोड़कर गम मनाते हैं. हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था. यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया. ये भी पढ़े:बकरा ईद 2018: जानें ईद-उल-अजहा की अहमियत
मुस्लिम समुदाय में दूसरे अन्य त्योहार खुशियों का त्योहार होता है, लेकिन मोहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. इस महीने में जहां मुस्लिम समुदाय के लोग गम मनाते है वही वहीं शिया समुदाय के लोग इस महीने काले कपड़े पहनकर हुसैन की शहादत को याद करते है. मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को लोग हुसैन की शहादत में उन्हें याद करने के लिए सड़को पर जुलूस निकालते है और मातम मनाते हैं. इस महीने में लोग 9 वीं और 10वीं तारीख को रोजा भी रखते है. और मस्जिदों में जाकर इबादत भी करते है. इस महीने में रोजा रखने को लेकर मान्यता है कि कोई इस महीने में एक रोजा रहता है तो उसे एक रोजे का सबाब 30 रोजे के बराबर मिलता है