Tapti Jayanti 2019: सूर्य पुत्री ताप्ती के तट पर मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति, जानिए इस नदी से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
ताप्ती जयंती 2019 (Photo Credits: Facebook)

Tapti Jayanti 2019: देश की प्रमुख नदियों में एक है ताप्ती नदी (Tapti River), जिसका उद्गम मुलताई जिला (Multai District) है. यहां एक सरोवर से ताप्ती नदी की महीन धारा प्रवाहित होती है. दरअसल मूलतापी अर्थात ताप्ती का मूल ही कालांतर में अपभ्रंश होकर मुलताई बन गया. ताप्ती विश्व की एकमात्र नदी है जिसमें हड्डियों को भी गलाने की क्षमता है. यही वजह है कि देश के अधिसंख्य लोग अपने नाते-रिश्तेदारों का मृत्योपरांत अस्थि-विसर्जन ताप्ती  (Bank of Tapti) में ही करने की अंतिम इच्छा रखते हैं.

ताप्ती की जहां तक आध्यात्मिक पृष्ठभूमि है तो भविष्य पुराण में ताप्ती के महात्म्य के संदर्भ में उल्लेखित है कि सूर्य देव ने विश्वकर्मा की पुत्री संजना से विवाह किया था. संजना से उनकी 2 संतानें हुईं- कालिंदनी और यम. उस समय सूर्य गोलाकार न होकर अंडाकार रूप में थे. मान्यता है कि संजना को जब सूर्य की तपिश सहन नहीं हुई तब वे अपनी दासी छाया को पति की सेवा में सुपुर्द कर तपस्या करने चली गईं. छाया ने संजना के रूप में काफी समय तक सूर्य की सेवा की. सूर्य से छाया को शनि और ताप्ती नामक दो संतानें हुईं. सूर्य ने अपनी पुत्री को आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी.

ताप्ती में भाई-बहनों के स्नान का महत्व

वायु पुराण में उल्लेखित है कि कृतयुग में चन्द्र वंश में ऋष्य नामक प्रतापी राजा थे. उनके एक सवरण को वशिष्ठ ने वेदों की शिक्षा दी. एक बार सवरण गुरु वशिष्ठ को राजपाट सौंपकर तप करने वन में चले गये. जंगल में सवरण ने एक सरोवर में कुछ अप्सराओं को स्नान करते देखा. उनमें ताप्ती भी थीं. सवरण ताप्ती पर मोहित होकर उससे विवाह कर लिया. ताप्ती को उसके भाई शनि ने आशीर्वाद दिया था कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती अथवा यमुनाजी में स्नान करेगा, उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होगी. कार्तिक मास में प्रतिवर्ष ताप्ती तट पर विशाल धार्मिक मेलों का आयोजन किया जाता है. लाखों श्रद्धालु कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने आते हैं.

राजा दशरथ को ताप्ती तट पर ही मिली थी मुक्ति

राजा दशरथ के शब्दभेदी बाण से श्रवण कुमार की अकाल मृत्यु से दुःखी होकर उसके माता-पिता ने दशरथ को श्राप दिया कि उसकी भी मृत्यु पुत्र-वियोग में होगी. अंततः राम के वनवास के बाद पुत्र-वियोग मोह में दशरथ की भी मृत्यु हो गयी. हत्या का श्राप मिलने के कारण उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई. हिंदू शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र के रहते अन्य पुत्र द्वारा किया अंतिम संस्कार एवं क्रियाकर्म मान्य नहीं होता. यह बात जीवित रहते राजा दशरथ ने श्रीराम को बताते हुए ताप्ती के महात्म्य के बारे में बताया था. तब श्रीराम ने सूर्यपुत्री आदिगंगा ताप्ती तट पर अनुज लक्ष्मण एवं माता सीता की उपस्थिति में पिता का तर्पण कार्य ताप्ती नदी में किया था और तब दशरथ की आत्मा को शांति मिली थी. श्रीराम ने ताप्ती तट पर बारह लिंग नामक स्थान पर विश्वकर्मा के सहयोग से 12 लिंगों की आकृति चट्टानों पर उकेरकर पिता की प्राण-प्रतिष्ठा की थी. बारहलिंग में आज भी श्रीराम एवं सीता की उपस्थिति के प्रमाण मौजूद हैं. यह भी पढ़ें: Vivasvat Saptami 2019: विवस्वत सप्तमी पर ऐसे करें भगवान सूर्य की उपासना, पूरी होगी हर मनोकामना

ताप्ती का महात्म्य

शास्त्रों में उल्लेखित है कि यदि अनजाने में भी किसी मृत देह की हड्डी ताप्ती में प्रवाहित हो जाएं तो उसे मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं अकाल मृत्यु की शिकार बनी देह की अस्थियां ताप्ती जल में प्रवाहित करने से मृत आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं ताप्ती के जल में बिना किसी विशेष विधि-विधान के किसी अतृप्त आत्मा को आमंत्रित कर उसे दोनों हाथों में जल लेकर उसकी शांति एवं तृप्ति का संकल्प कर जल में प्रवाहित कर दिया जाए तो मृतात्मा को मुक्ति मिल जाती है. मुलताई में जहां ताप्ती का जन्म हुआ था, तर्पण कार्य नि:शुल्क किया जाता है.

ताप-पाप-श्राप-त्रास को हरने वाली आदि गंगा हैं ताप्ती

सूर्यपुत्री माता ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो नदियों में से एक हैं. यह नाम ताप (गर्मी) से उत्पन्न हुआ है. यूं भी ताप्ती को ताप-पाप-श्राप-त्रास को हरने वाली आदिगंगा कहा जाता है. मान्यता है कि स्वयं सूर्य भगवान ने ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था.

यहां नारद ने भी की थी कठोर तपस्या

कहा जाता है कि महर्षि नारद मुनि ने एक बार नारद कुण्ड से ताप्ती पुराण चोरी कर ली थी. चोरी का खुलासा होने पर उन्हें श्राप मिला कि उन्हें पूरे शरीर में कोढ़ हो जायेगा. नारद ने जब अपने शरीर की दुर्दशा देखी तो उन्होंने अपनी गलती के लिए माफी मांगी. कहा जाता है कि इसके पश्चात जब उन्होंने ताप्ती तट पर आकर स्नान दान किया. इसके पश्चात ही उऩ्हें कोढ़ जैसे रोग से मुक्ति मिली थी.