Saphala Ekadashi 2019: कब है सफला एकादशी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

सफला एकादशी के दिन भगवन विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है. हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार पौष मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह हर साल दिसंबर से जनवरी के महीने में आती है. इस बार सफला एकादशी 22 दिसंबर को है. सफला एकादशी का दिन हिंदुओं के लिए पवित्र होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन और आस्था से उपवास करने से सभी पाप धुल जाते हैं.

सफला एकादशी व्रत 2019, (Photo Credits: Facebook)

Saphala Ekadashi 2019: सफला एकादशी के दिन भगवन विष्णु का व्रत रखा जाता है. हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार पौष मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह हर साल दिसंबर से जनवरी के महीने में आती है. इस बार सफला एकादशी 22 दिसंबर को है. सफला एकादशी का दिन हिंदुओं के लिए पवित्र होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन और आस्था से उपवास करने से सभी पाप धुल जाते हैं. हिंदी में 'सफला' शब्द का अर्थ है 'समृद्ध होना'. इसलिए इस व्रत को हर वो व्यक्ति रख सकता है, जिसे अपने जीवन में  में सभी क्षेत्रों में सफलता और खुशी चाहिए. सफला एकादशी का व्रत रखने से सफलता, समृद्धि और भाग्य के द्वार खुल जाते हैं. यह दिन देश के सभी कोनों में मनाया जाता है.

देश के सभी विष्णु मंदिरों में इस दिन विशाल आयोजन किए जाते हैं. सफला एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु के लिए कठिन उपवास करते हैं. यह व्रत एकादशी के दिन से शुरू होता है और अगले दिन सूर्योदय, ‘द्वादशी’ तक जारी रहता है. सफला एकादशी व्रत रखते समय भक्तों द्वारा केवल सात्विक भोजन ही खाया जाता है. जो लोग पूर्ण उपवास रखने में सक्षम नहीं हैं, वे केवल आधे दिन के लिए आंशिक उपवास रख सकते हैं.

सफला एकादशी का महत्व:

सफला एकादशी के महत्व को 'ब्रह्माण्ड पुराण' में धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के बीच हुई बातचीत के रूप में वर्णित किया गया है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार 100 राजसूय यज्ञ और 1000 अश्वमेध यज्ञ भी उतने लाभकारी नहीं होते, जितना सफला एकादशी के पवित्र व्रत का पालन करना है. सफला एकादशी के दिन को सही रूप से जीवन के सभी दुखों को समाप्त करने और बुरी किस्मत को भगाने के लिए वर्णित किया गया है. सफला एकादशी में किसी व्यक्ति की इच्छाओं और सपनों को पूरा करने की शक्तियां होती हैं. इसके अलावा इस व्रत से संतुष्टि और आंतरिक शांति भी मिलती है.

पूजा विधि:

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें.

सफला एकादशी का व्रत निर्जला होता है, लेकिन जिन्हें स्वस्थ्य संबंधी समस्याएं हैं वो पानी पीकर भी व्रत रख सकते हैं.

अब घर के मंदिर में विष्‍णु की प्रतिमा या तस्वीर स्‍थापित करें.

विष्‍णु की प्रतिमा को तुलसी के पत्ते, फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें.

अब विष्‍णु जी की आरती करें और प्रसाद सभी को बांट दें.

रात में सोए नहीं, भगवान का भजन-कीर्तन करें.

अगले दिन पारण के समय किसी गरीब को भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें.

इसके बाद पहले पानी पीकर व्रत का पारण करें.

शुभ मुहूर्त:

सफला एकादशी तिथि: रविवार 22 दिसंबर 2019

एकादशी तिथि प्रारंभ: 21 दिसंबर 2019 को शाम 5 बजकर 15 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्‍त: 22 दिसंबर 2019 को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट तक

पारण का समय: 23 दिसंबर 2019 को सुबह 7 बजकर 10 मिनट से सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक

सफला एकादशी व्रत कथा:

पद्मपुराण की कथा अनुसार चंपावती नगर में राजा महिष्मान राज करते थे, उनका बड़ा बेटा लूंभक बुरे मार्ग पर चलता था, उसे बुरे काम और पाप करना अच्छा लगता था. उससे राजा और पूरी प्रजा बड़ी ही परेशान थी. एक दिन उसके बुरे कामों से परेशान होकर राजा ने लूंभक को नगर से निकाल दिया. जंगल में रहने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था, उसके बुरे आचरण की वजह से कोई भी उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था. लूंभक पेड़ से फल खाकर अपना जीवन व्यापन करने लगा. वो एक पेड़ के नीचे ही रहता था, पौष मास की कृष्णपक्ष एकादशी की रात ठंड की वजह से लूंभक सो नहीं पाया और रातभर जागकर भगवान से अपने पापों का प्रायश्चित किया. इस तरह अनजाने में ही उसने सफला एकादशी का व्रत रख लिया.

सच्चे मन से प्रायश्चित करने की वजह से भगवान विष्णु की कृपा से लूंभक के पिता राजा महिष्मान ने उसे वापस बुला लिया. अपने बेटे के व्यवहार में परिवर्तन देखकर राजा ने सारा राजपाठ लूंभक को सौंप दिया और और खुद तपस्या करने जंगल चले गए. लूंभक ने अपने पिता के जाने के बाद अपनी प्रजा का बहुत ही अच्छी तरह से ख्याल रखा. मृत्यु के बाद लूंभक को वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई.

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