रमजान का पाक माह रोजों का त्योहार है. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार रोजा रखने, अल्लाह की इबादत करने और नेक काम करने वालों के अल्लाह सारे गुनाह माफ कर देता है, उनकी दुआओं को कबूल करता है, उसे सवाब मिलता है और फरिश्तों को हुक्म देता है कि वह दुआ पर आमीन कहे. इस्लामिक नियमों के अनुसार रमजान माह में 29 से 30 रोजे जरूर रखना चाहिए, लेकिन अगर किसी कारणों से किसी एक या ज्यादा दिन रोजा छूट जाये तो क्या करना चाहिए? इस संदर्भ में इस्लाम में क्या-क्या नियम कायदे हैं, आइये जानते हैं.
रमजान माह के बस कुछ ही दिन बचे हैं, उम्मीद की जा रही है कि 22 अप्रैल 2023 को ईद मनाई जाएगी. रमजान मास में स्त्री पुरुष सभी को रोजे रखना जरूरी होता है, जहां तक बच्चों की बात है तो बारह वर्ष की उम्र के बाद उन्हें भी रोजा रखना शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि रोजा इस्लाम के पांच प्रमुख स्तंभों में एक है. इस्लामिक नियमों के मुताबिक पूरे रमजान रोजे रखना जरूरी होता है. अगर किसी का बीच में कोई रोजा छूट जाये तो उसके लिए अलहदा विकल्प है, जिसे कजा और कफ्फारा कहते हैं, इसे अदा करना होता है. अब आइये जानते हैं कजा और कफ्फारा के बारे में विस्तार से.
क्या है कजा?
कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ लोग रोजा रख पाने में असमर्थ हो सकते हैं. मसलन आप लगातार सफर कर रहे हों, आपकी शारीरिक रूप से रोज रखने में सक्षम नहीं हैं, अथवा महिलाएं माहवारी से गुजर रही हों, इस्लाम में इन विशेष परिस्थितियों में रोज नहीं रखने की छूट रहती है, लेकिन ऐसे लोगों को इसके बदले दूसरे दिन रोजा रखकर इसे पूरा करना होता है. कहने का आशय यह है कि एक फर्ज रोजे के विकल्प स्वरूप एक रोजा रखना अनिवार्य होता है.
किन परिस्थितियों में कजा जरूरी होता है?
कुछ विशेष परिस्थितियों में अगर कोई रोजा रख पाने में असमर्थ हैं, तो इसके बदले वह किसी गरीब को भोजन खिला सकता है, अगर रोजा के दरम्यान ही किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस परिस्थिति में रोजा की कजा की जरूरत नहीं रह जाती, लेकिन अगर कोई शख्स मन्नत मांग के रोजे रख रहा है, और बीच में ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तो इस्लामी नियमों के अनुसार उसके किसी उत्तराधिकारी को रोजा की कजा अदा करना जरूरी होता है. अस्वस्थता के कारण अथवा निरंतर सफर में होने के कारण अगर कोई रोजा नहीं रख पाता है तो उसे रमजान के बाद उतने ही रोजे रखने जरूरी होते हैं.
क्या है कफ्फारा और कैसे करें अदा?
इस्लामिक नियमों के तहत कफ्फारा का अर्थ है, रमजान के दरम्यान किये किसी गुनाह का प्रायश्चित करना, जो लोग रमजान के समय इस्लामी नियमों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें कफ्फारा के जरिये गुनाह का प्रायश्चित करना जरूरी होता है. रोजा इस्लाम के पांच फर्ज में शामिल है. अगर किसी ने शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए कोई दवा ली हो, अथवा किसी ने किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाये हों, तो उन्हें कफ्फारा अदा करना जरूरी होता है, और ऐसे लोगों को रमजान के बाद 60 दिन तक निरंतर रोजा रखना जरूरी होता है अथवा 60 दिनों तक गरीबों को बिना नागा भोजन करवाना चाहिए.