Pradosh Vrat 2020: प्रदोष व्रत क्या है? जानें पूजा विधि और किस दिन के व्रत से होता है क्या लाभ
भगवान शिव (Photo Credits: Facebook)

Pradosh Vrat 2020: हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक चंद्र मास की त्रयोदशी (Trayodashi) के दिन प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पखवाड़े में किया जाता है. प्रदोष काल (Pradosh Kaal) का मुख्य समय होता है सूर्यास्त के बाद के 2 घंटे 24 मिनट. हालांकि अलग-अलग प्रदेशों में इसका समय बदल जाता है. सनातन धर्म में सूर्यास्त से रात्रि आरंभ तक की अवधि को प्रदोष काल माना गया है. मान्यता है कि इसी प्रदोष काल में भगवान शिव (Lord Shiva) कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं. प्रदोष व्रत के साथ भगवान शिव की पूजा करने से दुख, दरिद्रता, कर्जों एवं असमय मृत्यु से मुक्ति मिलती है.

प्रदोष व्रत का विधान

प्रदोष व्रत के उपवासी को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करने के पश्चात भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए. फलाहार रखते हुए ईशान कोण स्थित पूजा स्थल को गंगाजल से धोकर पवित्र कर लें. इसके पश्चात इस स्थान को गोबर से लीपकर पद्म पुष्प की आकृति बनाएं. पूजा के लिए साधक को कुशा के आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा में मुंह करके बैठें. पूजन की शुरुआत ‘ऊँ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करते हुए शिवजी को जल का अर्ध्य दें. शास्त्रों के अनुसार पूरे विधि-विधान से प्रदोष व्रत रखने वाले को सौ गायों के दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.

शुभ मुहूर्तः फाल्गुन प्रदोष व्रत 20 फरवरी 2020

पूजा का समय: सायंकाल 06.21 से रात 08.53 बजे तक

अगला प्रदोष व्रत- 07 मार्च, शनिवार को पड़ेगा.

दिनों के अनुरूप मिलता है फल

प्रदोष व्रत रखने वालों को दिनों के अनुरूप फलों की प्राप्ति होती है. उदाहरण के लिए सोमवार के दिन त्रयोदशी यानी प्रदोष का दिन होता है तो व्रत रखने वाले को तमाम बीमारियों से मुक्ति मिलती है. त्रयोदशी के दिन मंगलवार है तो व्रती को अच्छे सेहत का लाभ मिलता है. बुधवार का दिन है तो जातक की सभी कामनाएं पूरी होती हैं. गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से शत्रुओं का विनाश होता है. शुक्रवार के दिन सौभाग्य एवं दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है तो वहीं शनिवार के दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है. कुछ लोग विशिष्ठ फलों की प्राप्ति के लिए भी विशेष दिन ही प्रदोष व्रत रखते हैं. यह भी पढ़ें: Pradosh Vrat In Year 2020: त्रयोदशी तिथि है भगवान शिव को अति प्रिय, साल 2020 में कब-कब है प्रदोष व्रत, देखें पूरी लिस्ट

उद्यापन का नियम एवं विधि

प्रदोष व्रत का विधान है कि कम से कम 11 और अधिकतम 26 त्रयोदशी का व्रत रखने के बाद ही उद्यापन अथवा समापन किया जाए. उद्यापन भी त्रयोदशी के दिन ही करना चाहिए. इससे एक दिन पूर्व श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना की जानी चाहिए. पूजा के पश्चात कीर्तन-भजन करते हुए रात्रि जागरण करते हैं. प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात पुष्प अथवा कपड़ों से मंडप तैयार करते हैं.

मंडप में शिव-पार्वती की प्रतिमा रखकर विधिवत पूजा करते हैं और ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करते हैं. इसके पश्चात हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है. अंत में शिवजी एवं माता पार्वती की आरती उतारते हैं. अच्छा होगा कि अगर इसी समय किसी योग्य पुरोहित से शांति पाठ भी करवा लिया जाये. पूजा विधि के समापन के बाद दो या क्षमतानुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और आशीर्वाद प्राप्त करें.