Hul Diwas 2025 ‘हूल दिवस’ पर  राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वीर सेनानियों को दी श्रद्धांजलि, कहा; उनके त्याग और बलिदान को देश सदैव याद रखेगा
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Hul Diwas 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) ने हूल दिवस पर वीर सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने अपने बयान में कहा कि उनके त्याग और बलिदान को लोग सदैव याद रखेंगेराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर त्याग और बलिदान का दिवस बताते हुए लिखा गया है , "हूल दिवस पर मैं सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो और संथाल विद्रोह के अन्य सभी वीर सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। उनके अदम्य साहस तथा अन्याय के विरुद्ध उनके संघर्ष की अमर गाथाएं देशवासियों के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत हैं। उनके त्याग और बलिदान को लोग सदैव याद रखेंगे

झारखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से भी एक्स पर एक पोस्ट शेयर कर वीर सेनानियों को याद किया गया। लिखा, "अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक ‘हूल दिवस’ पर अमर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो सहित हजारों वीरों को शत-शत नमन. यह भी पढ़े: Rajiv Gandhi Death Anniversary: पीएम मोदी, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी वीर सेनानियों को याद किया. उन्होंने लिखा, "मां भारती की स्वतंत्रता की ज्योत प्रज्ज्वलित करने वाले 1855 के संथाल क्रांति के अमर शहीदों को संथाल हूल दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। दमनकारी शासन के विरुद्ध 1 वर्ष तक संघर्ष ने राष्ट्र के जन-जन को स्वतंत्रता के लिए जागृत किया। संथाल गौरव के बलिदानियों से देश उऋण न हो सकेगा.

बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने वीरों को नमन करते हुए लिखा, "करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो। अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों द्वारा अपने अधिकारों हेतु प्रथम विद्रोह के अवसर पर मनाये जाने वाले हूल दिवस पर अमर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलों-झानो सहित सभी वीरों को कोटि-कोटि नमन.

बता दें कि हूल दिवस हर साल 30 जून को मनाया जाता है। यह दिन 1855 के संथाल हूल विद्रोह की याद में मनाया जाता है, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के पहले बड़े जनजातीय विद्रोहों में से एक था.

1855 में झारखंड (अब का संथाल परगना क्षेत्र) में दो संथाल भाइयों ने ब्रिटिश शासन, जमींदारों और महाजनों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा जन-विद्रोह खड़ा किया। इस आंदोलन को "हूल विद्रोह" कहा जाता है। संथाली भाषा में "हूल" का अर्थ होता है विद्रोह या बगावत. इस विद्रोह में हजारों संथाल आदिवासी शामिल हुए थे और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे.