Narmada Jayanti 2020: कब है नर्मदा जयंती? जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि एवं पौराणिक कथा
नर्मदा जयंती 2020, (फोटो क्रेडिट्स: PTI)

Narmada Jayanti 2020: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि पर नर्मदा जयंती का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. अमूमन नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए बहती है. इसलिए नर्मदा जयंती के महोत्सव की धूम इन प्रदेशों में ज्यादा देखी जाती है. इस दिन मां नर्मदा की विशेष पूजा-अर्चना होती है. मान्यता है कि इस दिन मां नर्मदा की विधिवत तरीके से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति विशेष के सारे पाप मां नर्मदा हर लेती हैं, आइए जानते हैं कैसे उत्पत्ति हुई मां नर्मदा की और कैसे करें उनकी पूजा वंदना...यह भी पढ़ें: नर्मदा जयंती 2019 विशेष: तट का हर पत्थर शिवलिंग समान पूज्यनीय, 60 लाख से अधिक तीर्थ मौजूद

वैसे तो नर्मदा जयंती का पर्व पूरे उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन इस पर्व को मध्य प्रदेश के अमरकंटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर नर्मदा पूर्व से पश्चिम की तरफ बहती हैं. शास्त्रों के अनुसार माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन मां नर्मदा की उत्पत्ति हुई थी. भारत की 7 सर्वाधिक पुण्यदायी नदियों में एक नदी नर्मदाजी हैं जबकि गंगा के बाद सबसे ज्यादा पतित पावनी मां नर्मदा को ही कहा जाता है,

कालसर्प से पीड़ित व्यक्ति नर्मदा में स्नान कर दोषमुक्त हो जाता है

मान्यता है कि मां गंगा की तरह नर्मदा में भी स्नान करने से सभी प्रकार के पाप मिट जाते हैं, क्योंकि श्रीहरि ने नर्मदा नदी को देवताओं के पाप धोने का वरदान दिया था और वे शिवजी की उत्पत्ति मानी गई हैं. यही नहीं, अगर कोई व्यक्ति कालसर्प दोष से पीड़ित हैं, तो ज्योतिषियों का मानना है कि नर्मदा जंयती के दिन चांदी के नाग-नगिन का जोड़ा बनवा कर नर्मदा नदी में प्रवाहित करने से कालसर्प दोष हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है. मध्य प्रदेश में इस तरह के आयोजन खूब होते हैं और यहां नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है.

नर्मदा जयंती शुभ मुहूर्त (1 फरवरी 2020)

सप्तमी प्रारम्भ - दोपहर 03.51 मिनट से (31 जनवरी 2020)

सप्तमी समाप्त - शाम 06.10 मिनट तक (01 फरवरी 2020)

पूजा विधि

नर्मदा जयंती के दिन मां नर्मदा की पूजा-अर्चना नर्मदा तट पर ही करना श्रेयस्कर होता है. ज्ञात हो कि नर्मदा मध्य प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नदी है. अगर ऐसा संभव नहीं है तो घर पर भी मां नर्मदा की पूजा-अर्चना की जा सकती है. सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें. इसके पश्चात श्वेत वस्त्र धारण कर एक चौकी पर गंगाजल का छिड़काव कर उस पर सफेद वस्त्र बिछाएं. इस पर मां नर्मदा की मूर्ति स्थापित करें. अब मां नर्मदा को सफेद फूल एवं फल अर्पित कर गाय के घी का दीप जलाएं और सफेद मिठाई का भोग चढ़ाएं, एवं नर्मदा जी की प्रतिमा के सामने हाथ जोड़कर कहें कि आपसे जीवन में जो भी पाप कर्म हुआ है, उसे हर ले, साथ ही प्रार्थना करें कि अगर भूल से भी पूजा-विधान में किसी तरह की त्रुटि रह गई हो तो क्षमा करें. इसके बाद मां नर्मदा की पारंपरिक कथा सुनें और आरती करने के बाद प्रसाद वितरित करें. पारंपरिक कथा इस प्रकार है.

नर्मदा जंयती की पौराणिक कथा

भगवान शिव और मां पार्वती का एक पुत्र था अंधकासुर. वस्तुतः एक दैत्य हिरणायक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हीं के समान बलशाली पुत्र पाने का वरदान मांगा. शिवजी ने अपने पुत्र अंधकासुर को हिरणायक्ष को सौंप दिया. हिरणायक्ष का वध भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर कर दिया था. अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए अंधकासुर ने अपने बल से देवलोक पर कब्जा कर लिया. इस जीत से अतिउत्साहित अंधकासुर ने कैलाश पर भी आक्रमण कर दिया.

शिवजी और अंधकासुर के बीच में घनघोर युद्ध हुआ. लेकिन अंततः शिवजी ने अंधकासुर का वध कर दिया. अंधकासुर के वध के बाद देवताओं को अपने पाप का अहसास हुआ. वे सभी शिव जी के पास गये और उनसे प्रार्थना की कि हे प्रभू हमें हमारे पापों से मुक्ति दिलाने का कोई मार्ग बताएं. इसी समय शिवजी के माथे से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी. वह बूंद एक अति तेजस्वी कन्या में परिवर्तित हो गयी. उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया. सभी देवी-देवताओं ने उसे अनेकों वरदान दिये. शिवजी ने नर्मदा को आदेश दिया कि माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी से वह नदी के रूप में बहते हुए लोगों को पापों से मुक्ति दिलाए पाप हरे. शिवजी का आदेश सुनकर मां नर्मदा ने शिवजी से पूछा, हे प्रभु मैं भला लोगों के पापों कैसे हर सकती हूं? इस पर श्रीहरि जी उन्हें वरदान देते हुए कहा देवी नर्मदा, तुममें सभी पापों को हरने की क्षमता होगी. नर्मदा के इसी अवतरण तिथि के दिन नर्मदा जंयती मनायी जाती है.