Monsoon Craving: मानसूनी मौसम में समोसे-पकौड़े खाने की क्यों होती है चाहत? जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

इस तरह पता चलता है कि मानसून के दरम्यान हम क्यों चाट-पकौड़े, कुरकुरे नाश्ते या गरमा-गरम समोसे खाने के लिए उद्वेलित होते हैं. चिकित्सकों का भी मानना है कि मानसून की मांग को हम नजरंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि यह हमारे शरीर की जरूरत पूरी करता है, यहाँ ध्यान देने की जरूरत यह है कि हम जो खा रहे हैं, वह स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी हो.

मानसूनी मौसम में समोसे-पकौड़े (Photo Credits: Wikimedia commons, Pixabay)

अक्सर डॉक्टर हमें बरसात में घर के बाहर ठेले पर बिकते समोसा चाट-पकौड़ों से दूर रहने की हिदायत देते हैं, क्योंकि इससे संक्रमण फैलने का खतरा होता है. इसके बावजूद रिमझिम बरसात में सड़क किनारे गरमा-गरम तलते समोसे, भजिये इत्यादि हमें अपनी ओर आकर्षित कर ही लेते हैं. भले ही बाद में हमें इसका खामियाजा क्यों न भुगतना पड़े, परवाह नहीं करते. यही वजह है कि मानसून के दिनों में चाट-पकौड़ों का व्यवसाय खूब फलता-फूलता है. क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है इस संदर्भ में डॉक्टर जितेंद्र ने यहां कुछ रोचक फैक्ट बता रहे हैं, जिसे पढ़कर आप भी चौंक उठेंगे. Monsoon Foods: मुंबई की बारिश में इन जगहों पर आप उठा सकते हैं पसंदीदा पकवानों का लुत्फ

बारीश में कुछ हैप्पी हैप्पी!

बारिश में चाट-पकौड़े खाने की तीव्र ईच्छा के संदर्भ में डॉक्टर जितेंद्र सिंह बताते हैं, दरअसल बारिश में धूप की कमी से हमें विटामिन डी प्रचुर मात्रा में नहीं मिल पाता, जिसकी वजह से सेरोटोनिन के स्तर में गिरावट आती है. सूर्य की रोशनी नहीं अथवा कम मिलने से पीनियल ग्लैंड मेलाटोनिन रिलीज करती है, जिससे व्यक्ति को आलस्य आता है, और बॉडी क्लॉक डिस्टर्ब होती है, सरल शब्दों में कहें तो इससे हमारा हैप्पी हार्मोन प्रभावित होता है, हमारे भीतर आलस्य एवं उदासी बढ़ती है. विटामिन डी की कमियों के संतुलन बिठाने के लिए हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट की जरूरत होती है, ताकि सेरोटोनिन के स्तर को संतुलित बनाया जा सके. तब हमें कार्बोहाइड्रेट के अलावा डीप फ्राई वाले नाश्ते की जरूरत महसूस होती है, उसमें नमी की कमी होती है, कुछ कुरकुरा खाने की इच्छा करती है, यही समय होता है जब हमें कुछ तली-भुनी चीजें खाने की इच्छा करती है.

स्पाइसी चीजों के प्रति आकर्षण क्यों?

बरसात के दिनों में हमारी इच्छा तले-भुने नाश्ते के अलावा स्पाइसी वस्तुएं भी खाने को करती है. आहार विशेषज्ञों का मानना है कि मिर्च में कैप्साइसिन नामक यौगिक होता है, जो हमारे जुबान की तंत्रिका रिसेप्टर्स को अहसास कराता है कि हमने कुछ गर्म चीज खाया है, परिणामस्वरूप हमारा मस्तिष्क की प्रतिक्रिया स्वरूप हमें पसीना आता है, और हमारे रक्त सर्कुलेशन में हैप्पी मूड स्वरूप डोपामाइन निकलता है.

स्वाद के साथ समझदारी भी चाहिए

इस तरह पता चलता है कि मानसून के दरम्यान हम क्यों चाट-पकौड़े, कुरकुरे नाश्ते या गरमा-गरम समोसे खाने के लिए उद्वेलित होते हैं. चिकित्सकों का भी मानना है कि मानसून की मांग को हम नजरंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि यह हमारे शरीर की जरूरत पूरी करता है, यहाँ ध्यान देने की जरूरत यह है कि हम जो खा रहे हैं, वह स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी हो.

* पकौड़ों को कुरकुरा बनाने के लिए सादा पानी के बजाय सोडा वॉटर का इस्तेमाल कर सकते हैं. सोडा के उपयोग से पकोड़ा ज्यादा कुरकुरा बनेगा.

* बरसात में ज्यादा तेल-मसाले से बचने के लिए फटाफट आलू दही बना सकते हैं. इसमें दही में भुना जीरा, पिसा हुआ धनिया एवं पुदीना पत्ती, काला नमक अच्छी तरह मिलाकर ऊपर से उबले आलू को छीलकर चार या छह फांक काटकर मिला लें.

* चिकन अथवा झींगा फ्राई खाने की इच्छा है तो हलके पीसे मसाले में एक चुटकी बेकिंग सोडा मिलाकर फ्राई करें. यह स्वादिष्ट भी होगा और सेहतमंद भी.

* पकौड़े बनाते समय बेसन में पानी का कम से कम इस्तेमाल करें, इसमें हरी सब्जी में निहित पानी पकौड़ी बनाने के लिए पर्याप्त होगा, और पकोड़े क्रिस्पी भी होगा. बेसन के साथ एक चम्मच चावल का आटा मिलाने से भी पकोड़े कुरकुरे बनते हैं.

* पकौड़ियां बनाते समय तेल का तापमान 175 से 180 डिग्री सेल्सियस रखें. इससे पकौड़ियों की नमी बहुत जल्दी से खत्म हो जाएगी और आपकी पकोड़ियां कुरकुरी बनेगी.

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