Mokshada Ekadashi Vrat Katha: जो लोग अपनी और अपने पितरों (Aancestor) की मुक्ति की कामना करते हैं उन्हें मोक्षदा एकादशी (Ekadashi) का व्रत करना चाहिए. दरअसल, सालभर में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं, लेकिन मार्गशीर्ष यानी अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्ष (Salvation) का द्वार खोलने वाली एकादशी कहा जाता है, जिसे मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. पुराणों में भी मोक्षदा एकादशी को मोक्षदायिनी माना गया है. इस एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर तुलसी की मंजरी, धूप-दीप और नैवेद्य से भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा करने से व्रती और उसके पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं. मोक्ष प्रदान करने वाली मोक्षदा एकादशी 8 दिसंबर 2019 (रविवार) को मनाई जा रही है.
मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने से न सिर्फ मोक्ष के द्वार खुलते हैं, बल्कि इससे जाने-अंजाने में व्यक्ति द्वारा हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है. शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक होता है. मोक्षदा एकादशी का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए मोक्ष प्रदायिनी श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश दिया था, इसलिए इस एकादशी की इस पावन तिथि को गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है. चलिए जानते हैं मोक्षदा एकादशी की मोक्ष प्रदान करने वाली कथा. यह भी पढ़ें: Mokshada Ekadashi 2019: मोक्षदा एकादशी कब है? यह व्रत रखने से होती है मोक्ष की प्राप्ति, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका महत्व
मोक्षदा एकादशी की कथा
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन को श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश दिया था. श्रीमद्भगवत गीता में कुल अठारह अध्याय हैं और इसके ग्यारहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन कराए जाने का वर्णन किया गया है. इस अध्याय में बताया गया है कि अर्जुन ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं. इसके साथ ही उन्होंने श्रीकृष्ण में भगवान शिव, ब्रह्मा और जीवन मृत्यु के चक्र को देखा.
इस एकादशी की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में वैखानस नाम का एक राजा था, जिसके राज्य में रहने वाले ब्राह्मणों को चारों वेदों का ज्ञान था. कहा जाता है एक बार स्वप्न में उस राजा ने अपने पिता को नर्क में देखा. अपने पिता को नर्क में देख राजा बहुत परेशान हुए और उन्होंने अपने इस सपने के बारे में राज्य के ब्राह्मणों से जानने की कोशिश की. इसके साथ ही उन्होंने नरक से अपने पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय भी पूछा.
राजा की बात सुनकर ब्राह्मण कहते हैं कि हे राजन, आपकी इस समस्या का निवारण भूत और भविष्य को जानने वाले पर्वत नाम के महात्मा ही कर सकते हैं. ब्राह्मण की बात सुनकर राजा पर्वत मुनि के आश्रम पहुंचे. उस आश्रम में पहुंचने के बाद राजा ने देखा कि अनेकों मुनि शांत अवस्था में तपस्या कर रहे हैं. राजा ने पर्वत मुनि को अपनी सारी व्यथा बताई, जिस पर पर्वत मुनि ने राजा से कहा कि आपके पिता ने पूर्व जन्म में एक दुष्कर्म किया था और अपने उसी पाप के कारण वो नर्क यातना झेल रहे हैं. यह भी पढ़ें: Gita Jayanti 2019: गीता जयंती कब है? महाभारत युद्ध शुरु होने से पहले कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का उपदेश, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व
जब राजा ने अपने पिता को नर्क से मुक्ति दिलाने का मार्ग पूछा तो पर्वत मुनि ने उन्हें मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रखने के लिए कहा. राजा ने मुनि की बात मानकर मोक्षदा एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उनके पिता को नर्क से मुक्ति मिली और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई, इसलिए माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्रती और उसके पितरों का उद्धार होता है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.