एक समय था, जब घर की स्त्री को रसोई घर की ड्योढ़ी की सीमा अथवा बच्चे पैदा करने तक सीमित रखा जाता था, उन्हें न पैतृक संपत्ति पाने का अधिकार था, ना ही वोट देने की अनुमति थी. यहाँ तक कि उन्हें संपत्ति रखने, शिक्षा अर्जित करने अथवा रोजगार आदि के अधिकार से भी वंचित रखा जाता था, लेकिन 26 अगस्त 1920 का दिन महिलाओं के जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आया, जब विश्व के सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिकी संविधान के 19 वें संशोधन में आवश्यक परिवर्तन करते हुए महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ. इसलिए इस दिवस को दुनिया भर में महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है. आइये बात करते हैं, आखिर क्यों और कैसे मनाया जाता है महिला समानता दिवस तथा भारत में इस दिवस की सार्थकता क्या है इत्यादि. यह भी पढ़ें: Heart Attack in Young People: युवाओं में क्यों बढ़ रहे हैं हार्ट अटैक के मामले? ये चीजें हैं जिम्मेदार
क्या है इस दिवस का महत्व?
दुनिया भर में शुरू से ही पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं का दमन और शोषण होता रहा है. सदियों से महिलाएं पितृसत्तात्मक उत्पीड़न एवं लिंग-आधारित भेदभाव के बंधनों से मुक्त होने के लिए जूझती रही हैं. लेकिन आज हालात बदले-बदले से दिख रहे हैं. महिला समानता दिवस इस बात का प्रतीक है कि लैंगिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष में हमारी महिलाएं कितना आगे आ चुकी हैं, कई क्षेत्र में तो वह पुरुष से भी आगे बढ़ गई हैं. महिलाएं पुरुषों के साथ जब कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ती हैं तो केवल माता-पिता ही नहीं, बल्कि समाज और देश भी गौरवान्वित होता है. दुनिया एक नई सुबह की ओर बढ़ती है.
महिला समानता दिवस का इतिहास
अमेरिका में साल 1853 से महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई शुरू हुई थी, जिसमें महिलाओं ने विवाहोपरांत संपत्ति पर अधिकार की मांग की थी. उस दौरान अमेरिका ही नहीं बल्कि कई पश्चिमोत्तर देशों में महिलाओं को चुनिंदा अधिकार प्राप्त थे और पुरुषों की तुलना में उनके साथ दोहरा बर्ताव किया जाता था. साल 1890 में अमेरिका में ‘नेशनल अमेरिकन वूमेन सफरेज एसोसिएशन’ का गठन किया गया. इस संगठन ने महिलाओं को वोट डालने का अधिकार देने की बात कही गई थी. इसके बाद साल 1920 में महिलाओं को अमेरिका में मत वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ. मताधिकार के अलावा अन्य गंभीर मुद्दों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार का अधिकार शामिल था. इस प्रकार महिलाओं ने खुद को संगठित किया और अपने सामने आ रही असमानता का विरोध किया,
भारत में महिला दिवस की सार्थकता!
शेष दुनिया की तरह भारत में भी सदियों से महिलाओं को उनके घरों तक सीमित किया जाता रहा है, शिक्षा, रोजगार, एवं स्व निर्भरता जैसी बातें उनके लिए बेमानी होती थीं, साथ लिंग भेद, सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल जैसी बातें ज्यादातर नजरंदाज की जाती रही हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में महिलाओं ने अपने दम-खम पर अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. आज किसी भी क्षेत्र में वह पीछे नहीं है. आजादी के पश्चात भारत सरकार ने देश की महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया, आज महिलाएं हर उस क्षेत्र में सक्रिय हैं, जहां कल तक पुरुषों को एकाधिकार रहा हो, फिर वह चाहे हवाई जहाज, ट्रेन, बस, ऑटो की ड्राइवरी हो, अथवा ज्ञान-विज्ञान से जुड़े सैकड़ों सेक्टर हो. लेकिन अभी भी गांव एवं कस्बों की महिलाएं अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं. आज भी वह पुरुष प्रधान समाज द्वारा शोषित की जा रही हैं.
महिला समानता दिवस सेलिब्रेशन!
महिला समानता दिवस तमाम तरह से मनाए जा सकते हैं. मसलन अपने आस-पास की महिलाओं के संघर्ष और प्रयासों को स्वीकार, सहयोग देना और उन्हें इच्छित दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना हो सकता है. महिला हितों के प्रति एकजुटता दिखा सकते हैं. इस दिन बहुत सारे स्कूल- कॉलेजों, कॉरपोरेट सेक्टरों और समाज में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को रोकने के भिन्न-भिन्न तरीके खोजने के लिए, कार्यशालाएं, सेमिनार और चर्चाएं आयोजित किए जाते हैं. हालांकि मूलभूत परिवर्तन के लिए सभी हितधारकों, पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिंग-समान दुनिया बनाने के लिए सहयोग और समर्थन की आवश्यकता है. महिलाओं को प्रत्येक क्षेत्र में समान अवसर प्रदान करना महत्वपूर्ण है. उन्हें संसाधनों और अवसरों तक पहुंच प्रदान करके आत्मनिर्भर और वित्तीय रूप से स्वतंत्र एवं सक्षम बनाने की आवश्यकता है.