Mahatma Gandhi 73th Death Anniversary: महात्मा गांधी की 73वीं पुण्यतिथि, जानें आंदोलन और अहिंसा के बाद 'भारत छोड़ो' आंदोलन में क्यों हुए आक्रामक
महात्मा गांधी की फाइल फोटो (Photo Credits: Getty Images)

Mahatma Gandhi 73th Death Anniversary: महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए मौके-मौके पर जिन ब्रह्मास्त्रों का प्रयोग किया, वह थे विभिन्न आदोलन. 'चंपारण सत्याग्रह', 'नमक आंदोलन', 'असहयोग आंदोलन', 'दांडी यात्रा', 'भारत छोड़ो' जैसे आंदोलनों के कारण अंग्रेज सरकार की नींद हराम हो जाती थी, क्योंकि इसी के जरिये गांधीजी (Gandhi) आसानी से अपनी बात जन-जन तक पहुंचा देते थे. इन आंदोलनों में सबसे ज्यादा प्रभावशाली 'भारत छोड़ो' था, इस आंदोलन में पहली बार गांधीजी ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए 'डू आर डाय' का मैसेज दिया था. आइये जानते हैं कि 'भारत छोड़ो आंदोलन' में गांधी जी आक्रामक क्यों हुए? इस आंदोलन का जनता और ब्रिटिश हुकूमत पर क्या असर पड़ा?

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 8 अगस्‍त 1942 का दिन आजादी की अंतिम लड़ाई के शंखनाद के रूप में याद किया जायेगा. इस दिन को प्रत्येक वर्ष अगस्त क्रांति दिवस के रूप में सेलीब्रेट किया जाता है. इस दिन आजादी की लड़ाई में शहादत देनेवाले क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जाती है. इसके साथ ही महात्मा गांधी के त्याग और उपदेश के जरिए उन्हें याद किया जाता है. इसी दिन महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की नींव रखी थी, इसके बाद सारा देश ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एकजुट हो गया था. यही वह दिन था, जब ब्रिटिश हुकूमत भी मानने लगी थी कि अब उन्हें हमेशा के लिए भारत छोड़ना होगा.

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'भारत छोड़ो' आंदोलन की वजह

'क्रिप्स मिशन' जब भारत आया तो भारतीय नेताओं को विश्वास था कि उनके लिए अच्छी खबर आई होगी. लेकिन क्रिप्स मिशन बिना कुछ कहे सुने वापस चला गया, उधर बर्मा में भारतीय नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार से भी गांधी जी पीड़ित थे. अंग्रेजी हुकूमत ने 27 जुलाई 1942 के दिन एक घोषणा में कहा कि अगर कांग्रेस की मांग पूरी कर ली गयी तो भारत में रहनेवाले मुस्लिम व निचली जातियों पर हिंदुओं का अधिकार हो जायेगा. ब्रिटिश सरकार भारतीयों को भी द्वितीय विश्व युद्ध में सम्मिलित कर चुकी थी लेकिन अपना लक्ष्य घोषित नहीं की. इसके अलावा अंग्रेजी सरकार की नीतियों से भारत की आर्थिक लगातार खराब हो रही थी. इन तमाम वजहों से गांधीजी बेहद नाराज होकर भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ना ही एकमात्र रास्ता था.

'भारत छोडो' आंदोलन का फैसला

14 जुलाई., 1942 ई. में बर्मा में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में 'भारत छोड़़ो प्रस्ताव' को पास किया गया. 6 और 7 अगस्त, 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक हुई. गांधीजी ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध 'भारत छोड़ो' आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया. इस अधिवेशन में गांधीजी ने दो टूक शब्दों में कहा, 'इस समय तुममें से हर किसी को अपने को स्वतन्त्र समझना चाहिए, और ऐसे आचरण करना है कि आप पूरी तरह स्वतन्त्र हैं. हम करेंगे या मरेंगे'.

'भारत छोडो' आंदोलन का विगुल

8 अगस्त, 1942 ई. को 'भारत छोडो' प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त की रात को गांधीजी सहित कांग्रेस के समस्त बड़े नेता बन्दी बना लिए गये. गांधीजी के गिरफ्तार होने के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस ने एक सूत्रीय कार्यक्रम तैयार कर जनता को आह्वान करते हुए नारा लगाया, 'भारत छोड़ो'.

इस आंदोलन में कांग्रेस ने स्पष्ट संदेश दिया कि आंदोलन के दरम्यान हिंसा नहीं होनी चाहिए. अंग्रेजों के प्रति दुर्व्यवहार नहीं किया जाये. पूरे देश में यह आंदोलन चला लेकिन कई जगहों पर खुल कर हिंसा व तोड़ फोड़ हुई. 9 अगस्त 1942 को प्रात: काल के पहले ही गांधीजी, मौलाना आजाद, कस्तरूबा गांधी, सरोजनी नायडू सहित कई बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये. समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जिससे अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया, सभाओं और जुलूसों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. इस आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत ने खुलकर बल प्रयोग किया, जिसमें 10 हजार भारतीय मारे गये. लेकिन अंग्रेजों ने इस आंदोलन के बाद ही बोरिया बिस्तर बांधने की तैयारी कर ली थी.