Maharana Pratap Jayanti 2020: वीरो के वीर मेवाड के महराणा प्रताप, जिन्होंने ठुकरा दी थी अकबर की अधीनता, जानें इस महान योद्धा के जीवन से जुड़ी रोचक बातें
भारत को वीरों की भूमि के तौर पर पूरी दुनिया में जाना जाता है. उन वीरों की गौरव गाथाएं आज सदियों बाद भी देश के जर्रे-जर्रे में गूंजा करती हैं. एक से बढ़कर एक ऐसे बलिदानी हुए जिन्होंने अपनी धरती माता की रक्षा और स्वाभिमान के लिए अपने प्राणो का बलिदान दे दिया लेकिन दुश्मनों के आगे झुके नहीं. एक ऐसा ही शूरवीर 25 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में जन्मा था. जिसे दुनिया आज भी बड़े सम्मान के साथ महाराणा प्रताप सिंह (Maharana Pratap Singh) के नाम से जानती है.
Maharana Pratap Jayanti 2020:- भारत को वीरों की भूमि के तौर पर पूरी दुनिया में जाना जाता है. उन वीरों की गौरव गाथाएं आज सदियों बाद भी देश के जर्रे-जर्रे में गूंजा करती हैं. एक से बढ़कर एक ऐसे बलिदानी हुए जिन्होंने अपनी धरती माता की रक्षा और स्वाभिमान के लिए अपने प्राणो का बलिदान दे दिया लेकिन दुश्मनों के आगे झुके नहीं. एक ऐसा ही शूरवीर 25 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में जन्मा था. जिसे दुनिया आज भी बड़े सम्मान के साथ महाराणा प्रताप सिंह (Maharana Pratap Singh) के नाम से जानती है. वैसे तो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, महाराणा प्रताप जयंती 9 मई को मनाई जाती है. लेकिन राजस्थान और हरियाणा में राजपूत समाज का एक बड़ा तबका उनका जन्मदिन 25 मई को मनाता है. दरअसल 1540 में 9 मई को ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया तिथि थी, इसलिए इस हिसाब से इस साल उनकी जयंती 25 मई को भी मनाई जाएगी.
महाराणा प्रताप वीरों के वो वीर थे जिसका नाम सुनकर आज भी खून उबाल मारता है. सीना चौड़ा और सिर गुमान से आसमान की ओर उठ जाता है. हल्दी घाटी की मिट्टी उनकी वीरता की कहानी आज भी बड़े गर्व से कहती है. आज भी राजस्थान का गौरव मेवाड़ (Mewar) के राजा महाराणा प्रताप सिंह (Maharana Pratap Singh) के बिना पूरा नहीं माना जाता है. महाराणा प्रताप की इस साल 480वीं जयंती मनाई जा रही है. महाराणा प्रताप के जन्मदिन पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी रोचक बातें हम आपको बताने वाले हैं जिसे सुनकर आपको भी गर्व होगा.
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का जन्म 9 मई 1540 एक हिंदू राजपूत परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय (Udai Singh II) और माता का नाम जयवंता बाई (Jaiwanta Bai) था. बहुत कम ही लोग जानतें हैं कि महाराणा प्रताप को प्यार से बचपन में सभी 'कीका' नाम से पुकारा करते थे. यह भी पढ़ें:- Maharana Pratap Jayanti 2020: स्वाधीनता के प्रत्यक्ष पथ प्रदर्शक थे महाराणा प्रताप, जानें इस योध्या से जुड़ीं अन्य रोचक तथ्य.
महाराणा ने कभी भी स्वाभिमान को नहीं छोड़ा. उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं. भगवान एकलिंगजी की कसम खाकर महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा ली थी. वे अकबर को जिंदगीभर बादशाह न बुलाकर तुर्क नाम से बुलाएंगे. अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 4 शांति दूत को भेजा था. लेकिन उन्होंने अकबर के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया. महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां थीं और इतिहास के पन्नों में दर्ज जानकारी के अनुसार उनके 17 बेटे और 5 बेटियां थीं.
अकबर की अधीनता स्वीकार न करने के बदले में राणाप्रताप को उसकी सेना से युद्ध करना पड़ा था. महाराणा प्रताप और अकबर के बीच 18 जून, 1576 ई. को हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया था. इस लड़ाई को एक विनाशकारी युद्ध माना जाता है. इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने 20 हजार सैनिकों के साथ अकबर के 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया था. महाराणा प्रताप एक वीर योद्धा थे. उनकी कद काठी काफी अच्छी थी. उनकी लंबाई 7 फीट 5 इंच थी. महाराणा प्रताप 80 किलो का भाला और दो तलवार लेकर उतरते थे. उनके अस्त्र-शस्त्र का कुल वजन 208 किलोग्राम हुआ करता था.
महाराणा प्रताप युद्ध में अपने सबसे प्रिय घोड़े का नाम 'चेतक' पर सवार होकर लड़ाई लड़ा करते थे. इतिहास कहता है कि राणा का घोडा चेतक भी अपने मालिक को बेहद प्यार करता था. कहतें हैं जब मुगलों के साथ युद्ध में महाराणा प्रताप घायल हो गए तो चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लेकर कई फीट लंबे नाले को पार कर गया था. अपने मालिक की जान बचाने के बाद चेतक ने अपना प्राण त्याग दिया था. आज भी हल्दी घाटी में वफादार चेतक की समाधि मौजूद है.
महाराणा प्रताप की वीरता का सम्राट अकबर कायल था. हल्दी घाटी की लड़ाई के बाद महाराणा प्रताप अपने महल को छोड़ वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में रहें . इस दौरान वे अपने सैनिकों के साथ घास की रोटी खाते थे. लेकिन उसके बाद भी वे अकबर के आगे झुके नहीं. हल्दीघाटी की लड़ाई को न तो अकबर जीत पाया था और न ही महाराणा प्रताप इस युद्ध में हारे थे. 19 जनवरी 1597 को 56 साल की उम्र में चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई थी. यह भी पढ़ें:- मेवाड़ का वीर योद्धा महाराणा प्रताप: ‘हल्दीघाटी’ का रोमांचक युद्ध! हारकर भी जीते थे.
अकबर दिल से महाराणा प्रताप के शौर्य और बहादूरी का प्रशंसक था. अकबर जानता था कि महाराणा प्रताप जैसा वीर योद्धा इस धरती पर दूसरा कोई नहीं है, इसलिए उनकी मौत की खबर सुनते ही अकबर की आंखों से भी आंसू छलक पड़े थे. अकबर ने एक बार कहा था की अगर महाराणा प्रताप और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते.