Maha Shivratri 2019: जब भगवान शिव ने मगरमच्छ बनकर ली थी मां पार्वती की परीक्षा, जानिए इससे जुड़ी यह दिलचस्प पौराणिक कथा

सारे देवताओं के समझाने के बावजूद पार्वती ने स्पष्ट कर दिया कि वे शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कृतसंकल्प हैं. वह उन्हें पाने के लिए अंतिम सांस तक कोशिश करेंगी. शिव जी पार्वती को पत्नी के रूप में अपनाने से पूर्व एक और परीक्षा लेना चाहते थे.

भगवान शिव और माता पार्वती (Photo Credits: Instagram)

Maha Shivratri 2019: महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) क्यों मनाई जाती है? इसे लेकर तमाम पौराणिक कथाएं (Mythological stories) प्रचलित हैं. फिर भी सामान्य शब्दों में कहा जा सकता है कि इसी दिन शिव-पार्वती (Shiv-parvati Wedding) का विवाह हुआ था, लेकिन शिव जी को पाने के लिए पार्वती जी (Parvati) को तमाम परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, कितनी कठिन तपस्या करनी पड़ी. तब जाकर शिव जी (Shivji) ने पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. यहां हम भगवान शिव द्वारा पार्वती की एक परीक्षा का जिक्र करने जा रहे हैं.

शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती कठोर तपस्या कर रही थीं. उधर शिव भगवान पार्वती के सच्चे प्रेम की पल-पल परीक्षा ले रहे थे. इंद्र, सूर्य, चंद्र, अग्नि, वायु और वरुण जैसे तमाम देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की, कि वे माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार करें, क्योंकि वह हर दृष्टि से इस योग्य हैं. लेकिन भगवान शिव ने इस बार सप्तऋषियों को पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भेजा. सप्तऋषियों ने पार्वती को हर तरह से समझाने की कोशिश की कि वह शिव को पति के रूप में पाने की जिद छोड़ दें, क्योंकि शिव जी में गुण कम अवगुण ज्यादा हैं.

उन्होंने शिव जी के सारे अवगुण भी गिनाएं, लेकिन सारे देवताओं के समझाने के बावजूद पार्वती ने स्पष्ट कर दिया कि वे शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कृतसंकल्प हैं. वह उन्हें पाने के लिए अंतिम सांस तक कोशिश करेंगी. शिव जी पार्वती को पत्नी के रूप में अपनाने से पूर्व एक और परीक्षा लेना चाहते थे. यह भी पढ़ें: Maha Shivratri 2019: कब मनाया जाएगा महाशिवरात्रि का पावन पर्व, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

इसके पश्चात शिव जी पार्वती को वरदान देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं. पार्वती जी जहां तपस्या कर रही थीं, वहां एक तालाब नजर आया. तालाब में एक विशाल मगरमच्छ (Crocodile) ने एक बच्चे को पकड़ा हुआ था. बच्चा मगरमच्छ से बचने के लिए चीख-चीख लोगों से प्रार्थना कर रहा था, मगर किसी ने उसकी मदद नहीं की. बच्चे की करुण चीख पार्वती जी ने सुनीं, वह तुरंत तालाब के पास पहुंचीं.

पार्वती को सामने देख बच्चे के मन में आशा जगी कि वह मेरी रक्षा जरूर करेंगी. पार्वती ने देखा मगरमच्छ लगातार बच्चे को खींच रहा है. बच्चे ने पार्वती से भी गुहार लगाई, - इस जगत में मेरा कोई भी नहीं है, जो मेरी जान इस मगरमच्छ से बचा सकता है. क्या आप मगरमच्छ से मेरी रक्षा कर सकती हैं? भगवान शिव आपकी हर मनोकामना पूरी करेंगे.

पार्वती ने मगरमच्छ से कहा, -हे मगरमच्छ आप इस बच्चे को छोड़ दो. मगरमच्छ ने कहा -हे देवी यह बच्चा मेरे दिन के प्रहर का पहला आहार है, इसे ग्रहण करने का मेरा अधिकार है. मैंने प्रकृति का नियम नहीं तोड़ा है. मैं इसे छोड़ूंगा तो मैं आज खाऊंगा क्या?

पार्वती जी ने मगरमच्छ से प्रार्थना की, -तुम इस बच्चे का भक्षण नहीं करो, इसके बदले तुम्हें अगर कुछ चाहिए तो बताओ. मगरमच्छ ने बड़ी शालीनता से कहा- मां मैं इसे तभी छोड़ सकता हूं, जब आप अपने तप से भगवान शंकर से जो वरदान हासिल किया है, उसका प्रतिफल मुझे दे दें. बच्चे की रक्षा के लिए पार्वती जी ने कहा, ठीक है मैं तुम्हें उस वरदान का फल दे दूंगी, लेकिन तुम बच्चे को छोड़ दो.

मगरमच्छ ने पार्वती जी को समझाने की कोशिश की, हे देवी, इस प्रतिफल के लिए आपने शिव जी की हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की है. एक बच्चे के लिए अपनी वर्षों की साधना क्यों व्यर्थ कर रही हैं?

पार्वती जी ने कहा, मैंने जो फैसला लिया है उसे कोई नहीं बदल सकता. मुझसे मेरे तप का फल लो और बच्चे को स्वतंत्र कर दो. तब मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान का संकल्प करवाया. पार्वती जी के तप का प्रतिफल प्राप्त करते ही मगरमच्छ का पूरा शरीर सूर्य के समान दमकने लगा. मगरमच्छ ने एक बार फिर पार्वती जी को समझाते हुए कहा,

हे पार्वती तप के प्रभाव से मैं अपने भीतर अद्भुत और ओजस्वी तेज को महसूस कर रहा हूं. अभी भी समय है अगर आप चाहें तो मैं आपके तप का प्रतिफल वापस दे सकता हूं. पार्वती ने उत्तर दिया- हे मगरमच्छ! तपस्या करके मैं वह सारी शक्तियां पुनः हासिल कर सकती हू, लेकिन अगर तुम इस बच्चे का भक्षण कर लेते तो यह पुनः इस दुनिया में वापस नहीं आ पाता. तभी देखते ही देखते मगरमच्छ और लड़का अदृश्य हो गये. यह भी पढ़ें: Maha Shivratri 2019: 4 मार्च को मनाया जाएगा महाशिवरात्रि का पर्व, जानें क्यों 'चंदन' और 'चिताभस्म' है भगवान शिव का प्रिय परिधान?

पार्वती पुनः तपस्या की तैयारी करने लगीं. तभी भगवान शिव प्रकट हुए और कहा, तुम्हें तो मैंने वरदान दे दिया है, अब दुबारा वही तपस्या क्यों कर रही हो? पार्वती ने कहा, प्रभु मैंने अपने तप का प्रतिफल किसी को दान कर दिया है, इसलिए आपको प्राप्त करने के लिए मैं पुनः तपस्या करूंगी.

भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा, हे पार्वती मगरमच्छ और बच्चे दोनों का रूप मैंने ही रखा था. अलग-अलग रूपों में दिखने वाला मैं एक ही हूं. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था. तुम्हारी तपस्या का प्रतिफल मेरे पास ही आया है, इसलिए अब तुम्हें तपस्या करने की कोई जरूरत नहीं है. इसके पश्चात फाल्गुन कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को शिव जी और माता पार्वती का धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ.

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