Jhalkari Bai Jayanti 2019: इतिहास के सुनहरे पन्नों में महारानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai) के अदम्य साहस, शौर्य, कूटनीतिज्ञता आदि के काफी किस्से दर्ज हैं. उन पर तमाम कहानियां, कविताएं, धारावाहिक, डाक्युमेंट्री फिल्म के साथ-साथ फीचर फिल्में भी बन चुकी हैं, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई की कहानी झलकारीबाई (Jhalkari Bai) के बिना पूरी नहीं हो सकती. निचले समाज से आई झलकारी में रानी लक्ष्मीबाई का सिर्फ अक्श ही नहीं था, बल्कि वे रानी लक्ष्मीबाई जैसी बहादुर एवं साहसी भी थीं. लक्ष्मीबाई की तरह झलकारी का बचपन भी साहस भरे कारनामों से भरा हुआ है. कहते हैं कि झलकारी बाई नहीं होतीं तो रानी लक्ष्मीबाई काफी पहले ब्रिटिश हुकूमत के षड़यंत्रों का शिकार बन चुकी होतीं. झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखण्ड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है.
झलकारीबाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गांव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था. पिता का नाम सदोवर सिंह और माता जमुना देवी थीं. झलकारी बहुत छोटी थीं, तभी उनकी माँ की मृत्यु हो गयी थी. पिता ने उनकी परवरिश लड़कों की तरह की. उन्हें घुड़सवारी. तलवारबाजी आदि सिखाया. सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिल पाई, लेकिन उन्होंने खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में खूब गढ़ा. झलकारी बचपन से बेहद साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ थीं. वे घर के कामकाज के अलावा पशुओं के रख रखाव और जंगल से लकड़ियां काटकर लाती थीं. एक दिन जंगल में एक तेंदुए ने उन पर आक्रमण कर दिया, तो अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए झलकारी बाई तेंदुए से भिड़ गईं और कुल्हाड़ी से उसे मार कर अपनी रक्षा की.
झलकारी का विवाह
एक बार कुछ डकैतों ने उनके गांव के एक व्यवसायी पर हमला किया, तब झलकारी ने उन्हें ललकारते हुए उन पर हमला बोल दिया. उनके हमले से हताश डकैतों को खाली हाथ वहां से भागना पड़ा. झलकारी की बहादुरी से खुश होकर गांव वालों ने उनका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक बहादुर सिपाही पूरन कोरी से करवा दिया. पूरन की बहादुरी का पूरी सेना लोहा मानती थी.
झलकारी को देख हैरान रह गईं लक्ष्मीबाई
एक बार गौरी-पूजा के अवसर पर झलकारी गांव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झांसी के किले में गयीं. झलकारी पर नजर पड़ते ही रानी लक्ष्मीबाई अवाक रह गयीं, क्योंकि झलकारी काफी हद तक लक्ष्मीबाई की तरह दिख रही थीं. अन्य महिलाओं से झलकारी बाई की बहादुरी के किस्से सुनकर लक्ष्मीबाई वैसे भी बहुत प्रभावित थीं. उन्होंने झलकारी को अपनी दुर्गा सेना में शामिल कर लिया. दुर्गा सेना में शामिल होने के बाद झलकारी बाई ने अन्य महिलाओं के साथ तीर-तलवार, बंदूक, तोप आदि चलाने का विधिवत प्रशिक्षण हासिल किया. इसके बाद स्वयं रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें दुर्गा-सेना का सेनापति बना दिया.
खुद को खतरे में डाल बचाया लक्ष्मीबाई को
अप्रैल 1858 में जब झांसी के किले के बाहर चारों तरफ से हथियारबंद ब्रिटिश सैनिकों एवं उनके अन्य सहयोगियों ने आक्रमण किया, तब रानी लक्ष्मीबाई किले के अंदर से अपने सैनिकों का नेतृत्व कर रही थीं. रानी लक्ष्मीबाई की योजनाबद्ध आक्रामक शैली से अंग्रेज सैनिक पस्त हो रहे थे. तभी रानी के सेनानायकों में से एक दुल्हेराव ने गद्दारी करते हुए किले का एक खुफिया दरवाजा ब्रिटिश सैनिकों को भीतर प्रवेश करने के लिए खोल दिया. सारे ब्रिटिश सैनिक किले में घुस कर सैनिकों पर हमला कर दिया. अचानक हुए इस हमले में झलकारी बाई का पति पूरन मारा गया. झलकारी पति को वीरगति प्राप्त होते देख एक पल के लिए विचलित हुईं मगर फिर दिल पर पत्थर रखकर लक्ष्मीबाई को बचाने उनके पास गई.
इसके पहले कि ब्रिटिश सैनिक रानी लक्ष्मीबाई तक पहुंचते, झलकारीबाई ने लक्ष्मीबाई को कुछ विश्वस्त सैनिकों के जत्थे के साथ किले के एक अन्य गुप्तद्वार से सुरक्षित बाहर निकाल दिया. इसके बाद झलकारी लक्ष्मीबाई का मेकअप कर उन्हीं के कपड़े पहनकर सेना की कमान अपने हाथों में ले लिया. वे अपनी तलवार से ब्रिटिश सैनिकों को गाजर-मूली की तरह काटने लगीं. तभी ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज ने चालाकी से झलकारी को लक्ष्मीबाई समझ कर गिरफ्तार कर लिया. तब तक लक्ष्मीबाई अपने पुत्र के साथ सुरक्षित किले से बाहर निकल चुकी थीं. इस प्रकार झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय देते हुए खुद को खतरे में डाला. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmi Bai Jayanti 2019: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की 191वीं जयंती, जानें मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाली इस मर्दानी की वीरगाथा
झलकारी बाई के जीवन का रहस्य
झलकारी बाई के अंत को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं. कोई कहता है कि जनरल रोज ने झलकारी को छोड़ दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने कभी भी इतने खतरनाक क्रांतिकारियों को ज्यादा समय तक तो जीवित नहीं रहने दिया. कोई कहता है कि झलकारी को तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया गया था.
प्रख्यात कवि मैथिली शरण गुप्ता ने झलकारी बाई के बारे में ठीक ही लिखा है:
जाकर रण में जो ललकारी थी,
वह झांसी की झलकारी थी.
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी.