Jagannath Rath Yatra 2023: कब है जगन्नाथ रथ यात्रा? आइए जानें इस शुभ महोत्सव के कुछ प्रमुख आकर्षण!

हिंदी पंचांगों के अनुसार जगन्नाथ रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकाली जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 20 जून 2023, को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाएगी.

पुरी जगन्नाथ (Photo Credits: Wikimedia commons)

Jagannath Rath Yatra 2023: हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) की स्मृति में निकाले जाने वाली रथ यात्रा (Rath Yatra) का विशेष महत्व है. हिंदी पंचांगों के अनुसार यह रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकाली जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 20 जून 2023, को जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकाली जाएगी. मान्यता अनुसार इस रथ यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ साल में एक बार गुंडिचा माता के मंदिर जाते हैं. यात्रा के शुरू होने से एक दिन पहले भक्तों द्वारा गुंडीचा मंदिर की धुलाई-सफाई की जाती है. स्थानीय भाषा में इसे ‘गुंडीचा मार्जन कहते हैं. यह दिन पुरी वालों के लिए बहुत दिव्य दिवस माना जाता है, जब भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ स्वयं अपने भक्तों पर आशीर्वाद बरसाने गर्भगृह से बाहर आते हैं. आइये जानें रथयात्रा के प्रमुख आकर्षण.

जगन्नाथ रथ यात्रा के प्रमुख आकर्षण

चंदन यात्राः अक्षय तृतीया के दिन से वार्षिक रथ यात्रा शुरू होती है, जो 42 दिनों तक चलती है. यह रथयात्रा किसानों द्वारा आगामी फसल के लिए बीज बोने के प्रतीक स्वरूप माना जाता है.

स्नान यात्राः यह देव-स्नान पूर्णिमा (ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा) के दिन मनाया जाने वाला स्नान पर्व है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह भगवान जगन्नाथ का जन्मदिन है, और तीनों प्रतिमाओं को झांझ-मंजीरा के साथ जुलूस के रूप में मंदिर से बाहर लाकर स्नान बेदी पर ले जाया जाता है. उन्हें पवित्र स्नान कराया जाता है.

पहांडी: पवित्र ट्रिनिटी-भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा की प्रतिमा यात्रा एक विस्तृत शाही अनुष्ठान में शुरू होती है, जिसे पहांडी कहते हैं, इसका अर्थ है कहली, घंटा और तेलिंगी साज की ताल पर धीरे-धीरे आगे बढ़ना. सभी देवताओं को मूव करते हुए देख ऐसा लगता है मानों कोई विशाल गजराज मदमाती चाल से बाहर निकल रहा हो.

छेरा पहराइस अनुष्ठान में, पुरी के राजा को एक दूत द्वारा देवताओं के रथों पर आसीन होने के बारे में बताया जाता है. राजा स्वच्छ वस्त्र पहनकर चांदी की पालकी पर बैठकर बाहर निकलते हैं. इसके बाद राजा पालकी से उतरकर रथ पर बैठते हैं. देवता को प्रणाम और प्रार्थना करने के बाद रथ के प्लेटफार्म को सोने की झाड़ू से सफाई करते हैं. इसके बाद प्रतिमा पर सुगंधित जल और पुष्प छिड़कते हैं. यह भी पढ़ें: Snana Purnima 2023: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के भव्य स्नान समारोह के लिए उमड़ा भक्तों का सैलाब, देखें वीडियो

नीलाद्री बीजेः नीलाद्री का अर्थ है भगवान जगन्नाथ और बीजे का अर्थ है प्रवेश करना. मंदिर में प्रवेश करने से पहले तीनों प्रतिमा को रसगुल्ले का भोग लगाया जाता है. इस अनुष्ठान के बाद ही भक्तों को मंदिर में दर्शन की अनुमति दी जाती है.

ब्रह्म परिवर्तनः जगन्नाथ रथ यात्रा का मुख्य सोच उनका पुनर्जन्म है. इसके प्रतीक स्वरूप मंदिर की पुरानी मूर्तियों को नष्ट कर उनके स्थान पर नई मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं. यह विधान गुप्त तरीके से किया जाता है. यहां तक कि अनुष्ठान और मंत्रोच्चारण करने वाले पुजारी को भी आंखों पर पट्टी बांधकर रखना होता है.

हेरा पंचमीः यह देवी लक्ष्मी के अनुष्ठान का दिन है, जो रथ उत्सव के पांचवें दिन मनाया जाता है, देवी महालक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से मिलने पालकी में गुंडिचा मंदिर पहुंचती है. मान्यता अनुसार देवी लक्ष्मी अपने पति जगन्नाथ से नाराज हैं. इसके पीछे की पौराणिक कथानुसार देवी लक्ष्मी एक बार चिंतित हो गईं, क्योंकि उनके पति जगन्नाथ उन्हें यह कहकर कि एक-दो दिनों में लौट आएंगे, लेकिन 5 दिनों बाद भी नहीं लौटे.कहा जाता है कि वह अपने भाई-बहनों के साथ रहने के लिए गुंडिचा मंदिर गए थे. उन्हें ही खोजने के लिए वह एक सजी पालकी में पहुंची थी और इसी समय भक्त भी मूर्तियों को पालकी में लेकर मंदिर पहुंचते हैं.

सुना बेशाः यह 32 भाव का रूप हैं, जिसे आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि के दिन किया जाता है. इस दिन, देवताओं को सुंदर और जटिल सोने के आभूषणों से सजाया जाता है.

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