Holashtak 2023: हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार होली से आठ दिन पहले होलाष्टक (Holashtak 2023) शुरू हो जाता है, और इन आठ दिनों तक किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य प्रतिबंधित होते हैं. इसके पीछे कुछ ग्रहों की अशुभ स्थिति को दोषपूर्ण माना जाता है. ज्योतिष शास्त्री श्री रवींद्र पाण्डेय के अनुसार फाल्गुन मास पूर्णिमा से पहले के 8 दिन लगभग सभी नवग्रह अस्त और रुद्र अवस्था में होते हैं. कहने का आशय यह है कि ऐसी स्थिति में यह ग्रह अस्त रहकर अशुभ फल देते हैं. इसलिए इस काल में जो भी कार्य किये जाते हैं, वे अशुभ फल ही देते हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष यानी 2023 में होलाष्टक आठ दिन नहीं बल्कि 9 दिनों तक चलेगा. क्योंकि इस वर्ष फाल्गुन शुक्लपक्ष में एकादशी दो दिन (2 और 3 मार्च 2023) पड़ रहा है. आइये जानें होलाष्टक के नियम, तिथि एवं इसकी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से. यह भी पढ़ें: Vrat & Tyohar of March 2023: इस माह होली, रामनवमी, गुड़ी पाड़वा, एवं नवरात्रि जैसे प्रमुख व्रत एवं त्यौहार पड़ेंगे! देखें पूरी सूची!
होलाष्टक तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी से शुरू होता है. यानी इस वर्ष 27 फरवरी 2023 की मध्यरात्रि 12.59 AM से सप्तमी तिथि शुरू हो जाएगी, और तिथि का समापन 28 फरवरी सुबह 02.21 AM पर होगा. पंचांग के अनुसार 07 मार्च 2023, मंगलवार को होलिका दहन के होलाष्टक समाप्त होगा.
होलाष्टक के नियम
* इन नौ दिनों तक प्रतिदिन स्नानादि के पश्चात सूर्य देव को लाल पुष्प के साथ अर्घ्य दें. संभव है तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें. ऐसा करने से जातक की सारी समस्याएं खत्म होती हैं.
* होलाष्टक काल में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य (विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश इत्यादि) वर्जित होते हैं.
* होलाष्टक काल में ज्यादा से ज्यादा समय तक श्रीहरि का जाप करें. हो सके तो विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. घर में हवन यज्ञ आदि भी कराया जा सकता है. इससे घर में नकारात्मक शक्तियां नहीं प्रवेश कर पाती.
* होलाष्टक के दौरान गरीबों एवं जरूरतमंदों को भोजन एवं वस्त्र आदि दान करना चाहिए,
होलाष्टक की पौराणिक कथा?
राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र विष्णु-भक्त प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्लपक्ष की सप्तमी से फाल्गुन की पूर्णिमा तक उसकी हत्या की तमाम कोशिश किया, क्योंकि वह पिता के बजाय भगवान विष्णु को सर्वशक्तिमान मानता था. कहते हैं कि 8 दिनों तक प्रहलाद पिता की तमाम प्रताड़नाओं को श्रीहरि श्रीहरि की जाप करते सहता रहा, और श्रीहरि उसकी रक्षा करते रहे. हिरण्यकश्यप के सारे उपाय व्यर्थ हो गये. उसने प्रहलाद को मारने के लिए पूर्णिमा का दिन चुना. दरअसल प्रहलाद की बुआ को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती.
हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद के साथ अग्निकुंड में प्रवेश करें, प्रह्लाद के मरने के बाद ही बाहर आये. पूर्णिमा के दिन होलिका ने यही किया. श्रीहरि की कृपा से होलिका तो जलकर राख हो गई, मगर प्रह्लाद सुरक्षित बाहर आया. तभी से होलिका के रूप में बुराई को जलाने की परंपरा जारी है. चूंकि आठ दिन श्रीहरि भक्त प्रह्लाद को प्रताड़ित किया गया था, इसलिए इस आठ दिन तक शुभ कार्य वर्जित होते हैं.