Happy Holi 2020: होलाष्टक कब हो रहा है शुरू और इसमें क्यों नहीं होते शुभ कार्य? जानें इस दौरान कौन से काम नहीं करना चाहिए

ज्योतिषियों के अनुसार होलाष्टक के पहले दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है.

होली (Representational Image/ Photo Credit: Facebook)

When is Holashtak 2020 Starting and Ending Dates in Hindi: मुहूर्त विज्ञान में किसी भी अच्छे कार्य के लिए शुभ समय निर्धारित हैं. उदाहरण के लिए गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन, विद्यारम्भ, गृह-प्रवेश एवं गृह-निर्माण, गृह-शान्ति, हवन-यज्ञ कर्म, स्नान, तेल मर्दन इत्यादि कार्यों का उपयुक्त समय निश्चित निर्धारित है. इसी तरह ‘होलाष्टक’ को भी ज्योतिष शास्त्र के नजरिये से दोषपूर्ण माना जाता है, जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, जैसे शुभ-मंगल कार्य नहीं किये जाते. 2020 में 3 मार्च से 9 मार्च तक होलाष्टक चलेगा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी से पूर्णिमा तक के आठ दिन को ‘होलाष्टक’ कहा गया है.

शुभ-मंगल कार्यों के लिए वर्जित इन आठों दिनों के बारे में अनेकों पौराणिक घटनाओं का उल्लेख है, किंतु होलाष्टक अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव दिखाने का दिन है.

क्यों नहीं होते शुभ कार्य

ज्योतिषियों के अनुसार होलाष्टक के पहले दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है. इस वजह से इन सभी आठों दिन मानव मस्तिष्क तमाम विकारों, शंकाओं और दुविधाओं से ग्रस्त रहता है, जिसकी वजह से शुरू किए गए कार्य के सफल होने की संभावनाएं कम और खराब होने की गुंजाइश ज्यादा रहती है.

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नियमित पूजा-अर्चना पर प्रतिबंध नहीं

होलाष्टक काल में अपशकुन समय होने के कारण मांगलिक कार्यों पर रोक होती है, लेकिन इन आठ दिनों में आप नियमित पूजा-अर्चना कर सकते हैं. इसके अलावा अपने ईष्ट देव, कुल देवी, कुल देवता की पूजा अर्चना, आरती आदि करें. इसके करने से आपको यथोचित पुण्य एवं शुभ फल की प्राप्ति में किसी तरह का व्यवधान नहीं आयेगा.

होलाष्टक से संबंधित पौराणिक कथा

हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद जन्म से ही ब्रह्मज्ञानी थे और हमेशा ईश्वर-भक्ति में लीन रहते थे. उन्हें सभी नौ प्रकार की भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन) प्राप्त थी. इसके बाद कोई भी प्राणी ईश्वरत्व को प्राप्त कर सकता है. प्रहलाद की इस ईश्वर-भक्ति के कारण पिता हिरण्यकश्यप विरोध करते थे, किंतु जब प्रहलाद को श्रीहरि की भक्ति से दूर करने के उनके सभी उपाय असफल हो गये, तो उन्होंने प्रह्लान को इसी फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया, और उसे मृत्यु देने के लिए तमाम यातनाएं देने लगे, किंतु ईश्वर भक्ति में लीन प्रहलाद हमेशा जीवित बच जाते.

सात दिनों की सारी कोशिशें जब निष्फल हो गयीं, तब बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था) प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निकुण्ड में बैठ गयीं. श्रीहरि की कृपा से प्रह्लाद के लिए अग्निदेव शीतल हो गये. लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गयीं. तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है. भक्ति पर जिस-जिस तिथि को आघात होता है, उस तिथियों के स्वामी हिरण्यकश्यपु से क्रोधित होकर उग्र हो जाते थे, इसीलिए इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप ले लेते हैं. तभी से होलाष्टक में गर्भाधान, शुभ विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन, विद्यारम्भ, गृह प्रवेश एवं भवन निर्माण तथा अन्य दिव्य अनुष्ठान आदि अशुभ माने जाते हैं. इस वर्ष 3 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ होंगे.

ये कार्य न करें

* होलाष्टक काल में नई नौकरी, नयी कंपनी शुरु करने से बचें. कोशिश करें किसी ज्योतिष से सलाह मशविरा करके होली के बाद की वैकल्पिक तारीख निकाल लें.

* होलाष्टक काल में बच्चे का नामकरण, मुंडन संस्कार या जनेऊ संस्कार न करायें.

* होलाष्टक के समय ऩये घर, गाड़ियां आदि की खरीदारी से बचें. शगुन के तौर पर भी रुपए, उपहार आदि न दें ना ही लें.

* होली के बाद एक सप्ताह तक शादी, तिलकोत्सव, सगाई जैसे शुभ कार्य नहीं करें.

* होलाष्टक के समय में भवन अथवा कंपनी के कंस्ट्रक्शन का कार्य नहीं करें. पंडित से पंचांग दिखाकर होली के बाद की तिथि रख सकते हैं.

* घर अथवा दफ्तर में अगर किसी तरह का कोई अनुष्ठान करने की योजना है तो उसे होली तक के लिए टाल दें. होलास्टक काल में इस तरह के अनुष्ठान से किसी तरह का प्रतिफल प्राप्त नहीं होगा.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.

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