Haridwar Kumbh 2021: हरिद्वार में हर 12 वर्षों में एक बार लगने वाले कुंभ मेले की शुरुआत तो मकर संक्रांति से शुरु हो जाती हैं, लेकिन हरिद्वार कुंभ के मुख्य स्नान की शुरुआत 11 फरवरी को मौनी अमावस्या से शुरू होगी. जबकि इस कुंभ (Kumbh) में शाही स्नान 11 मार्च 2021 शुरु होकर 27 अप्रैल चैत्रीय पूर्णिमा तक चलेगा. इन तिथियों में शाही स्नान सम्पन्न होने के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकेंगे. शाही स्नान के अलावा कुछ और भी तिथियां हैं, जब विशेष स्नान होंगे. हिंदू धर्म के अनुसार कुम्भ में श्रद्धा और आस्था के साथ स्नान के बाद दान करने से पिछले सारे पाप कट जाते हैं, और देह त्यागने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
आइये जानें हरिद्वार कुंभ का महात्म्य और किन-किन तिथियों पर कौन से स्नान हैं. यद्यपि! कोरोना वायरस की महामारी के खतरे को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता हुई तो मेला प्रशासन द्वारा शाही स्नान के स्थान एवं समय में परिवर्तन किया जा सकता है.
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शाही स्नान का महत्व
सनातन परंपरा के अनुसार कुम्भ मेला में शाही स्नानों का विशेष महत्व है. ये शाही स्नान अखाड़ा विशेष के महंत एवं उनके नागा शिष्य करते हैं. विभिन्न अखाडा के महंत एवं नागा सूर्योदय से पूर्व गंगा में डुबकी लगाते हैं, ये संत प्रतिदिन 1008 बार गंगा में डुबकी लगाते हैं. इनके स्नान करने के बाद ही आम श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं. प्रत्येक श्रद्धालु गंगा में कम से कम 5 डुबकियां लगाते हैं. कुछ श्रद्धालु अपने साथ परिजनों के नाम की भी डुबकियां लगाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से सभी के पाप कट जाते हैं. इस बार शाही स्नान की चार तिथियां तय की गई हैं.
कुंभ मेला हरिद्वार 2021 स्नान शेड्यूल
1.पहला स्नान : 14 जनवरी मकर संक्रांति पर.
2. दूसरा स्नान : 11 फरवरी मौनी अमावस्या पर.
3. तीसरा स्नान : 16 फरवरी बसंत पंचमी पर.
4. चौथा स्नान : 27 फरवरी माघ पूर्णिमा पर.
5. पांचवा स्नान : 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि पर. (शाही स्नान)
6. छठा स्नान : 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर. (शाही स्नान)
7.सातवां स्नान : 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को.
8. आठवां स्नान : 14 अप्रैल को बैसाखी पर. (शाही स्नान)
9. नौवां स्नान : 21 अप्रैल रामनवमी पर.
10. दसवां स्नान : 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा पर. (शाही स्नान)
क्यों है हरिद्वार कुम्भ का विशेष महत्व
भारत में कुल चार स्थानों प्रयागराज (इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी, नासिक में गोदावरी नदी तथा उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल पर कुम्भ मेले का आयोजन सरकारी स्तर पर होता है. इसमें एकमात्र प्रयागराज में कुम्भ के छह वर्ष बाद अर्ध कु्म्भ का आयोजन भी किया जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दरम्यान निकले अमृत कलश को जब इंद्र का बेटा जयंत लेकर भाग रहा था, कलश से अमृत की बूंदे छलक कर चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरे थे, और जहां-जहां ये अमृत की बूंदें गिरीं, वहां-वहां कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है. ज्योतिषियों के अनुसार हरिद्वार कुम्भ का विशेष महत्व होता है क्योंकि हरिद्वार कुम्भ में ही देवगुरु बृहस्पति कुम्भस्थ होते हैं, इसीलिए इसे 'कुंभस्थ' कहते हैं, जबकि प्रयागराज कुम्भ को 'वृषस्थ', तथा नासिक एवं उज्जैन कुम्भ को 'सिंहस्थ' कुम्भ कहते हैं.