Guru Ravidas Jayanti 2020 Wishes In Hindi: हर साल माघी पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जी की जयंती (Guru Ravidas Jayanti) मनाई जाती है. उनका जन्म माघ मास की पूर्णिमा (Maghi Purnima) को काशी यानी वाराणसी (Varanasi) में हुआ था. हालांकि उनके जन्म के साल को लेकर विवाद होता रहा है, क्योंकि कुछ विद्वान बताते हैं कि उनका जन्म 1388 में हुआ था, जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि उनका जन्म 1398 में हुआ था. इस साल 9 फरवरी 2020 को माघी पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti) मनाई जा रही है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, संत रविदास (Sant Ravidas) को संत कबीर का समकालीन माना जाता है. कहा जाता है कि मीरा बाई भी संत रविदास को अपना गुरु मानती थीं. इतना ही नहीं उनकी प्रतिभा से सिकंदर लोदी भी प्रभावित हुआ था और उसने रैदास जी से दिल्ली आने का अनुरोध भी किया था.
संत रविदास द्वारा रचित चालीस पद सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित किए गए हैं. महान संतों में शुमार संत रविदास की जयंती हर साल बहुत धूमधाम से मनाई जाती है. इस शुभ अवसर पर आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबियों को इन शानदार वॉट्सऐप स्टिकर्स, फेसबुक मैसेजेस, ग्रीटिंग्स, विशेस, वॉलपेपर्स, जीआईएफ इमेजेस और एसएमएस के जरिए रविदास जंयती की शुभकामनाएं दे सकते हैं.
1- किसी का भला नहीं कर सकते,
तो किसी का बुरा भी मत करना,
फूल जो नहीं बन सकते तुम,
तो कांटा बनकर भी मत रहना.
हैप्पी गुरु रविदास जयंती
2- गुरु जी मैं तेरी पतंग,
हवा में उड़ जाऊंगी,
अपने हाथों से न छोड़ना डोर,
वरना मैं कट जाऊंगी.
हैप्पी गुरु रविदास जयंती
3- आज का दिन है खुशियों भरा,
आपको और पूरे परिवार को,
संत गुरु रविदास जयंती की,
बहुत-बहुत बधाई.
हैप्पी गुरु रविदास जयंती
4- मन चंगा तो कठौती में गंगा,
संत परंपरा के महान योगी,
परम ज्ञानी संत श्री रविदास जी,
आपको कोटि-कोटि नमन.
हैप्पी गुरु रविदास जयंती
5- जाति-जाति में जाति हैं,
जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके,
जब तक जाति न जात.
हैप्पी गुरु रविदास जयंती यह भी पढ़ें: Guru Ravidas Jayanti 2019: माघ पूर्णिमा को हुआ था गुरु रविदास का जन्म, जानिए दिखावे और पाखंड का विरोध करने वाले इस महान संत का जीवन परिचय
संत रविदास की रचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि वे मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा जैसे दिखावों और पाखंडों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे. वे सहज व्यवहार और शुद्ध अंतकरण को ही सच्ची भक्ति मानते थे. बताया जाता है कि किसी पर्व पर कुछ लोगों ने गंगा स्नान के लिए संत रविदास से साथ चलने का आग्रह किया. लेकिन उन्हें उस दिन एक जूता तैयार करना था, इसलिए वे नहीं गए. उनका कहना था कि अगर उन्होंने वचन भंग कर दिया तो उन्हें गंगा स्नान का पुण्य कैसे मिलेगा, इसलिए उन्होंने कहा कि वे घर पर ही स्नान करके गंगा को प्रणाम करेंगे और उनकी पूजा पूर्ण हो जाएगी. तभी से उनकी कहावत मन चंगा तो कठौती में गंगा प्रचलित हुई.