351th Prakash Parv: गुरु नानक देव जी का जन्म विक्रमी संवत 1526 कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था. यद्यपि भारतीय चंद्र कैलेंडर के अनुसार, गुरुपर्व यानी गुरु नानक जयंती साल-दर-साल बदलती रहती है. 30 नवंबर को देश गुरुनानक देव जी की 551वीं जयंती मना रहा है. सिख अनुयायियों द्वारा यह पर्व न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में बड़े उत्साह एवं सौहार्द के साथ मनाया जाता है. सिखों के लिए यह सबसे शुभ और महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. आइये जानें महान संत श्री गुरुनानक जयंती का महत्व, मनाने का तरीका, और क्यों उन्होंने मूर्तिपूजा एवं आडंबर का खुलकर विरोध किया? Guru Nanak Jayanti 2020: गुरु नानक देव जी ने कब किया था इस पवित्र शब्द का उच्चारण? जानिए गुरुद्वारा बेर साहिब का महत्व
प्रकाश पर्व कैसे मनाते हैं?
गुरुनानक देव सिखों के पहले गुरु थे, उन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की थी. उनके द्वारा दी गई शिक्षा, उपदेश और निस्वार्थ सेवा का अनुसरण करने के लिए यह पर्व मनाया जाता है. सिख समुदाय इस दिन को 'गुरुनानक जयंती', 'गुरु पर्व' अथवा 'प्रकाश पर्व' के नाम से भी मनाते हैं. इस दिन सिख समुदाय प्रभात फेरियां निकालते हैं. गुरुद्वारों में पाठ और कीर्तन का आयोजन होता है. हर गुरुद्वारों में सामुदायिक भोजन यानी लंगर का आयोजन किया जाता है. गरीबों को दान दिया जाता है. लोग अपने-अपने घरों को रोशनी से सजाते हैं और मित्रों एवं परिजनों को शुभकामनाएं संदेश भेजते हैं.
बाल गुरुनानक के दिव्य ज्ञान के आगे नतमस्तक हुए शिक्षक!
नानक देव का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन लाहौर के निकट तलवंडी जिले (अब पाकिस्तान में) में सन 1469 में हुआ था. यह स्थान ननकाना साहब के नाम से भी लोकप्रिय है. कहा जाता है कि जब मां तृप्ता देवी के गर्भ से नानक देव जी का जन्म हुआ था, तब प्रसूति गृह अचानक प्रकाशवान हो गया था. उनके पिता कल्याणचंद मेहता पेशे से कृषक थे. बचपन से ही नानक प्रखर बुद्धि के थे. किंतु सांसारिक मोहमाया से उदासीन नानक का मन कभी भी पढ़ाई में नहीं लगा. अकसर वे अपने शिक्षको से बड़े विचित्र-विचित्र सवाल पूछते, कि शिक्षक अनुत्तरित रह जाते थे. एक दिन एक शिक्षक ने नानक से पट्टी पर 'अ' लिखने के लिए कहा. नानक ने 'अ' अक्षर लिखने के बाद, वह शिक्षक से पूछ बैठे, गुरूजी! 'अ' का क्या अर्थ होता है? शिक्षक फिर निरुत्तरित रह गये. अंततः बाल गुरुनानक के दिव्य ज्ञान के आगे नतमस्तक हो, वे नानक को उनके घर छोड़ आये. इसके बाद से नानक का अधिकांश समय आध्यात्मिक चिंतन एवं सत्संग इत्यादि में बीतने लगा. बाल नानकदेव के जीवन में कुछ ऐसी चमत्कारिक घटनाएं घटीं, जिसे देख गांव वाले इन्हें दिव्यात्मा मानने लगे थे.
मूर्ति पूजा ही नहीं कुरीतियों के भी प्रबल विरोधी थे नानक!
गुरुनानक देव जी ने किशोरावस्था से ही रूढ़िवादिता एवं आडंबर के विरुद्ध आवाज उठाना शुरु कर दिया था. धर्म प्रचारकों को उन्हीं के मुंह पर खामियां बतलाने के लिए उन्होंने विभिन्न तीर्थस्थानों का भ्रमण किया. आम जनता से भी उन्होंने धर्मांधता से दूर रहने का आग्रह किया. उन्होंने 'इक ओंकार' यानी 'ईश्वर एक है' का नारा दिया. वह सर्वत्र मौजूद है, इसलिए सबके साथ समान प्रेम का व्यवहार करना चाहिए. उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा, 'सांसारिक मामलों में इतने मत उलझो कि ईश्वर के नाम को भूल जाओ. उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा के विपरीत एक अलग मार्ग प्रशस्त किया. नानकजी ने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतियों का खुलकर विरोध किया. उनके दर्शन एवं उपदेश सूफियों जैसे थे. उनके उपदेश का सार यही है कि ईश्वर एक है, उसकी उपासना हिंदू व मुसलमान दोनों के लिये है. उन्होंने नारी को सदा सम्मान दिया, और दूसरों से भी ऐसा करने का उपदेश दिया.
गुरुनानक जी के 10 महत्वपूर्ण उपदेश
* परम पिता परमेश्वर एक हैं.
* सदा एक ही ईश्वर की आराधना करो.
* ईश्वर सर्वत्र है और हर जीव में विद्यमान हैं.
* ईश्वर भक्त किसी से भयभीत नहीं रहता.
* ईमानदारी और कड़ी मेहनत करके पेट भरना चाहिए.
* बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें न किसी को सताएं.
* हमेशा खुश रहें, ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा याचना करें.
* मेहनत और ईमानदारी की कमाई से जरूरतमंदों की सहायता अवश्य करें.
* सभी को समान नज़रिए से देखें, स्त्री-पुरुष समान हैं.
* भोजन शरीर के लिए आवश्यक है, किंतु लोभ-लालच से वशीभूत होकर संग्रह की आदत बुरी है.
सिख धर्म की स्थापना
गुरुनानक सिंह जी देव ने सिख धर्म की स्थापना पंजाब प्रांत में 15 शताब्दी में की थी. सिख धर्म की स्थापना वस्तुतः हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हुआ था. सिख गुरुओं का पंथ 10 गुरुओं तक चला तथा सभी गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने-अपने जीवन का बलिदान किया. सिख गुरुओं की बलिदानी रीति ने हिंदु समाज की बार-बार रक्षा की, जिसमें कश्मीर के पंडितों की रक्षा करने की घटना मुख्य है. सिखों को पगधारी खालसा स्वरूप 10वें तथा अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह की देन है.