Guru Gobind Singh Birth Anniversary 2020: देशभर में 2 जनवरी को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की जयंती (Guru Gobind Sing Jayanti) मनाई जा रही है. गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) एक आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, दार्शनिक और कवि थे. उनके पिता तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. गुरु गोविंद सिंह अपने पिता गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के इकलौते पुत्र थे. उनका जन्म श्री पटना साहिब (Shri Patna Sahib) में 22 दिसंबर 1666 को हुआ था. उनके जन्म के समय उनके पिता गुरु तेग बहादुर बंगाल और असम की यात्रा पर थे. उनके यात्रा पर जाने के बाद माता गुजरी ने गुरु गोबिंद सिंह को जन्म दिया और उन्हें बाल गोबिंद राय नाम दिया गया, जो आगे चलकर गुरु गोबिंद सिंह के रूप में प्रख्यात हुए.
गुरु गोबिंद सिंह के जन्म के काफी समय बाद जब गुरु तेग बहादुर पटना पहुंचे और अपने पुत्र से मिले तो पिता को देखते ही बाल गोबिंद दौड़ते हुए उनके गले जा लगे. पटना साहिब में बाल गोबिंद राय सिर्फ 6 साल की उम्र तक ही रहे. साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसने सिख श्रद्धालुओं को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए मुगल शासकों से लड़ने के लिए प्रेरित किया.
गुरु गोविंद सिंह ने दिए पंच ककार
गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म के लोगों को जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिए, जिन्हें पंच ककार के नाम से जाना जाता है. गोबिंद सिंह के संदेशों के अनुसार ही खालसा सिखों में पांच चीजों को अनिवार्य माना गया है. ये पंच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा.
गुरु गोबिंद सिंह ने लिखी अनेकों रचनाएं
सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन काल में अनकों रचनाएं लिखीं जिनमें जाप साहिब, अकाल उस्तत, बिचित्र नाटक, चंडी चरित्र, शास्त्र नाम माला, खालसा महिमा, जफरनामा इत्यादि शामिल हैं. इसके साथ ही उन्होंने बताया है कि किसी भी तरह तंबाकू का सेवन करने से बचना चाहिए और जीवन को अनुशासित तरीके से जीना चाहिए.
पटना साहिब में मौजूद हैं उनकी ये चीजें
पटना साहिब गुरु गोबिंद सिंह की जन्मस्थली है और इस गुरुद्वारा में आज भी वो चीजें मौजूद हैं जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में थीं. उनकी माता गुजरी जिस कुएं से पानी भरती थीं, वह कुआं आज भी उसी स्थान पर मौजूद है. आज भी इस गुरुद्वारे में गुरु गोबिंद सिंह की छोटी कृपाण मौजूद है, जिसे वे बचपन में धारण किया करते थे. वे अपने केशों में जिस कंघे का इस्तेमाल करते थे, वो आज भी इस स्थान पर उनके होने का प्रमाण देती है. यहां पर उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी की लकड़ी की खड़ाऊ भी संभालकर रखी गई है.
गौरतलब है कि सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह के अहम योगदान के लिए कारण ही उन्हें शाश्वत गुरु माना जाता है. गुरु गोबिंद सिंह जयंती के खास अवसर पर सिख धर्म के लोग देशभर के गुरुद्वारे में प्रार्थना करते हैं और गोबिंद सिंह की कविताएं सुनकर उन्हें याद करते हैं. इस दिन विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं और गुरुद्वारों में आने वाले भक्तों के लिए लंगर का आयोजन किया जाता है.