Guru Angad Dev Death Anniversary 2020: गुरु अंगद देव जी की 468वीं पुण्यतिथि, जानें सिखों के दूसरे गुरु के जीवन से जुड़ी रोचक बातें
गुरु अंगद देव जी (Photo Credits: File Image)

Guru Angad Dev Death Anniversary 2020: दुनिया भर में मौजूद सिख समुदाय (Sikhs) के लोग आज यानी 9 अप्रैल को श्री गुरु अंगद देव जी की 468वीं पुण्यतिथि (Guru Angad Dev Ji 468th Punyatithi) मना रहे हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, गुरु अंगद देव जी (Guru Angad Dev Ji ) 29 मार्च, 1552 को देह त्याग कर स्वर्ग के लिए रवाना हुए थे. सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव जी  का जन्म पंजाब के फिरोजपुर स्थित हरीके नामक गांव में 31 मार्च 1504 को हुआ था. उनके पिता का नाम फेरू मल्ल जी और माता का नाम रामो जी थी. जन्म के बाद गुरु अंगद देव जी का नाम लेहना जी रखा गया था. एक हिंदू परिवार में जन्मे लेहना जी की मुलाकात 27 साल की उम्र में सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी से हुई थी. वह उनसे इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने सिख धर्म अपना लिया. चलिए सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी की पुण्यतिथि के अवसर पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें.

गुरु अंगद देव जी से जुड़ी रोचक बातें

1- पहले अंगद देव जी का नाम लेहना था और प्रारंभिक जीवन में उन पर सनातन मत का प्रभाव ज्यादा था, जिसके कारण वे देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करते थे. वे हर साल ज्वालामुखी मंदिर जाया करते थे.

2- सन 1520 में माता खीवीं के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ था और उनसे दो पुत्र दासू व दातू और दो पुत्रियां अमरो जी एवं अनोखी जी का जन्म हुआ था.

3- सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव से मुलाकात होने के बाद गुरु अंगद देव जी उनसे इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने सिख धर्म अपना लिया.

4- गुरु नानक देव जी ने लेहना जी का नाम बदलकर अंगद जी रख दिया और उन्हें 13 जून 1539 को सिखों के दूसरे गुरु के रूप में चुना गया. हालांकि सिखों के दूसरे गुरु बनने से पहले उन्हें कई परीक्षाएं देनी पड़ी थी. 22 सितंबर 1539 को गुरु नानक की मृत्यु के बाद, गुरु अंगद ने खडूर साहिब के लिए करतारपुर छोड़ दिया.

5- गुरु अंगद देव जी ने ही गुरुमुखी लिपि के वर्तमान स्वरूप का आविष्कार किया था, जो पंजाबी भाषा लिखने का माध्यम बन गया. सिख धर्म के सभी गुरुओं और संतों के भजन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरुमुखी लिपि में लिखे गए हैं. सिखों के दूसरे गुरु ने 63 शबद और श्लोक का योगदान भी दिया था, जो गुरु ग्रंथ साहिब में पंजीकृत है.

6- गुरु अंगद देव जी जाति विहिन समाज में विश्वास करते थे. वो हमेशा इस बात का प्रचार करते थे कि भगवान के सामने पुरुष और महिलाएं एक समान हैं, इसलिए महिलाओं का संगत में स्वागत किया गया. यह भी पढ़ें: Guru Tegh Bahadur Ji Parkash Purab 2020: गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश उत्सव, जानें सिखों के नौवें गुरु के जीवन से जुड़ी रोचक बातें

7- अंगद देव जी ने श्री खडुर साहिब आकर पहला अटूट लंगर चलाया. इस लंगर में हर जाति के लोग बिना किसी भेदभाव के एक पंक्ति में बैठकर लंगर खा सकते थे.

8- उन्होंने एक बहुत भारी अखाड़ा बनाया, जहां लोगों में उत्साह और शारीरिक बल को कायम रखने के लिए कसरत करना शुरु करवाया.

गौरतलब है कि उन्होंने दूर-दूर तक सिख धर्म का प्रचार करने के लिए प्रचारक भेजे और लोगों में साहस पैदा करने का उपदेश दिया. गुरु नानक देव जी ने उन्हें सिखों का दूसरा गुरु बनाने के लिए सात परीक्षाएं ली थीं. गुरु नानक देव जी के स्वर्ग जाने के बाद गुरु अंगद जी ने उनके उपदेशों को आगे बढ़ने का काम किया.