Gotkhindi Mosque Ganpati: महाराष्ट्र के सांगली जिले (Sangli District) का गोटखिंडी गांव इन दिनों पूरे देश के लिए एक अलग मिसाल पेश कर रहा है. यहां 40 सालों से भी ज्यादा समय से मस्जिद के अंदर गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) की मूर्ति स्थापित की जाती है और हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय मिलकर 10 दिनों तक उस जगह को भक्ति और उत्सव के रंग से भर देते हैं. गांव की आबादी लगभग 15 हजार है, जिसमें लगभग 100 मुस्लिम परिवार रहते हैं. सबसे खास बात यह है कि मुस्लिम समुदाय भी इस गणेश मंडल का हिस्सा है. वे प्रसाद बनाने से लेकर पूजा की तैयारियों तक, हर काम में शामिल होते हैं.
गोटखिंडी स्थित मस्जिद में गणेशोत्सव मनाने की परंपरा
सांगलीच्या गोटखिंडीमध्ये मशिदीत गणेशोत्सव साजरा करण्याची परंपरा गेली 44 वर्षं सुरू आहे.#Ganeshotsav #Sangli #Gotkhindi @Info_Sangli pic.twitter.com/BcCzG5XqbN
— BBC News Marathi (@bbcnewsmarathi) September 16, 2024
1980 में शुरू हुई थी परंपरा
यह परंपरा वर्ष 1980 में शुरू हुई थी. उस समय भारी बारिश के कारण, ग्रामीणों ने मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए मस्जिद में ही गणपति (Ganpati in Mosque) स्थापित करने का फैसला किया था. तब से यह परंपरा हर साल जारी है और दोनों समुदायों की इसमें बराबर की भागीदारी है.
गांव के झुंझार चौक पर 1980 में "नया गणेश तरुण मंडल (New Ganesh Tarun Mandal)" स्थापित किया गया था. मंडल की देखरेख में गणपति बप्पा को 10 दिनों तक मस्जिद में विराजमान किया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन विधि-विधान से उनका विसर्जन किया जाता है.
आपसी समझ और भाईचारे का संदेश
गांव के लोगों की आपसी समझ और भाईचारे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार जब बकरीद (Bakrid) और गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) एक साथ पड़ीं, तो मुस्लिम समुदाय ने केवल नमाज अदा की और कुर्बानी नहीं दी. इतना ही नहीं, वे गणेश उत्सव के दौरान मांसाहारी भोजन से भी परहेज करते हैं.
मंडल के संस्थापक अशोक पाटिल कहते हैं कि यह परंपरा पूरे देश के लिए एक संदेश है कि हर त्योहार सामाजिक और धार्मिक सद्भाव के साथ मनाया जा सकता है. हर साल गणेश प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस को भी यहां बुलाया जाता है.
नफरत की दीवारें खड़ी होने से रोकें
इस साल भी यह दस दिवसीय उत्सव (Ganesh Utsav) 27 अगस्त से शुरू हो गया है और गांव के लोग मिलकर गणपति बप्पा की पूजा कर रहे हैं. गोटखिंडी का यह अनोखा आयोजन यह बताने के लिए काफी है कि जब दिलों में एक-दूसरे के लिए सम्मान और स्नेह हो, तो नफरत की दीवारें कभी खड़ी नहीं हो सकतीं.













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