ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 2018: जानिए क्यों मनाया जाता है ईद-ए-मिलाद, मुस्लिम समाज में क्या है महत्त्व
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 2018 (Photo Credits: Facebook)

Eid-E-Milad-Un-Nabi 2018: इस्लाम धर्म में साल भर में कई बड़े पर्व मनाएं जाते हैं, जिनमें मुहर्रम, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा जैसे कई बड़े पर्व शामिल हैं. इन प्रमुख पर्वों में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी (Eid-e-milad-un-nabi) पर्व सबसे प्रमुख पर्व में से एक है. इस प्रमुख पर्व को  पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की याद में मनाया जाता है. इस साल 21 नवंबर बुधवार को देशभर में यह त्योहार मनाया जाएगा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह दिन मुस्लिम समुदाय के लिए काफी मायने रखता है, बावजूद इसके ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं.

दरअसल, यह दिन पैगंंबर हजरत मोहम्मद और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को समर्पित होता है. कई स्थानों पर ईद-ए-मिलाद को पैगंबर के जन्मदिन के रूप में और कई स्थानों पर इसे शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है.

सुन्नी समुदाय मनाता है जन्मदिन का जश्न

कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार, रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का में हुआ था और कुरान के अनुसार, ईद-ए-मिलाद को मौलिद मावलिद के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है पैगंबर का जन्म दिवस.

शिया समुदाय के लोग पैगंबर हजरत मुहम्मद के जन्म की खुशी में इस दिन का जश्न बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. उनका मानना है कि इस दिन पैगंबर की शिक्षा को सुनने से जन्नत के द्वार खुलते हैं. इसलिए इस दिन सुबह से लेकर रात भर सभाएं की जाती हैं और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को सुना व समझा जाता है.

शिया समुदाय के लिए होता है मातम का दिन  

उधर, सुन्नी समुदाय का इस पर्व को लेकर कुछ अलग ही मत है. इस समुदाय के अधिकांश लोगों का यह मानना है कि ये उनकी मौत का दिन है जिसके कारण वो पूरे महीने शोक मनाते हैं और ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के दिन को वे मातम के तौर पर मनाते हैं. यह भी पढ़ें: बकरा ईद 2018: जानें ईद-उल-अजहा की अहमियत

उनके प्रति आदर भाव रखते हैं मुस्लिम 

कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद ऐसे आखिरी संदेशवाहक और सबसे महान नबी हैं, जिन्हें खुद अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रईल द्वारा कुरान का संदेश दिया था. यही वजह है कि मुस्लिम इनके लिए हमेशा से ही आदर का भाव रखते हैं.

इस दिन पैगंबर मोहम्मद के प्रतीकात्मक पैरों के निशान पर प्रार्थना की जाती है. उनकी याद में इस दिन बड़े-बड़े जुलूस निकाले जाते हैं और दिन रात प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं.

इस्लाम के सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान को भी इस दिन पढ़ा जाता है. लोग मक्का-मदीना और दरगाहों पर जाकर इबादत करते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से लोग अल्लाह के करीब जाते हैं और उन पर अल्लाह रहम फरमाते हैं.