Dhanvantari Jayanti 2020: कौन हैं भगवान धन्वंतरि? इन्हें आयुर्वेद का जनक क्यों कहते हैं, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
पांच दिवसीय दीपावली के महोत्सव का आगाज आज 13 नवंबर से हो रहा है. यद्यपि त्रयोदशी की मूल तिथि को लेकर दुविधा अभी भी है कि धनतेरस की मूल तिथि क्या है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 12 नवंबर की रात्रि 09.32 बजे से धन त्रयोदशी शुरू होकर 13 नवंबर की शाम 06.01 बजे तक रहेगी.
पांच दिवसीय दीपावली के महोत्सव का आगाज आज 13 नवंबर से हो रहा है. यद्यपि त्रयोदशी की मूल तिथि को लेकर दुविधा अभी भी है कि धनतेरस की मूल तिथि क्या है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 12 नवंबर की रात्रि 09.32 बजे से धन त्रयोदशी शुरू होकर 13 नवंबर की शाम 06.01 बजे तक रहेगी. धनतेरस के दिन, स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरी की जयंती भी मनाई जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, धन्वंतरि जयंती का त्योहार कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरी धनतेरस के दिन समुद्र-मंथन के दौरान अमृत कलश हाथों में लेकर प्रकट हुए थे. इसीलिए धनतेरस के दिन धन्वंतरि जयंती के रूप में पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. भगवान धन्वंतरि के साथ, धन के देव कुबेर और माता लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा की जाती है. यह भी पढ़ें: Dhanvantari Jayanti 2020 Messages: धन्वंतरि जयंती पर इन हिंदी Quotes, WhatsApp Status, Facebook Wishes, GIF Greetings, HD Images के जरिए दें अपनों को बधाई
शुभ मुहूर्त:
त्रयोदशी प्रारंभः रात 09.32 बजे से (12 नवंबर, 2020)
त्रयोदशी समाप्तः शाम 06.01 बजे (13 नवंबर 2020)
पूजा का शुभ मुहूर्तः
शाम 05.28 बजे से शाम 05.59 बजे तक (13 नवंबर 2020)
धन्वंतरि पूजा विधि:
प्रदोषकाल दो घंटे 45 मिनट का होता है. अपने शहर के सूर्यास्त अवधि से लेकर अगले 2 घंटे 24 मिनट की समय की अवधि को प्रदोषकाल कहते हैं. इसीलिए अलग-अलग शहरों में अलग-अलग समय होता है प्रदोष काल का. धनतेरस पूजा के दिन प्रदोषकाल में दीप दान व लक्ष्मी जी की पूजा करना शुभ माना जाता है. इस दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान धन्वंतरि, कुबेर और माता लक्ष्मी का ध्यान करना चाहिए. अब शुभ मुहूर्त के अनुसार एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा अथवा फोटो रखें. स्वयं पूर्व दिशा में मुंह करके बैठें और भगवान धन्वंतरि का आह्वान करें. अब भगवान धन्वंतरि पर फूल, अक्षत चढ़ाकर जल अर्पित करें. अब सुगंध, अबीर, गुलाल, लाल पुष्प, रोली, चंदन चढ़ाएं. प्रसाद के तौर पर चांदी की कटोरी में खीर का भोग लगायें और आचमन करायें. इसके बाद भगवान को लौंग, सुपारी और पान चढाएं और वस्त्र अर्पित करें. धन्वंतरि आयुष के देव हैं इसलिए इस दिन इन्हें औषधि भी चढ़ाई जा सकती है. औषधि अर्पित करते हुए रोगनाशक की कामना करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
ऊं रं रुद्र रोगनाशाय धन्वंतर्ये फट्
इसके बाद माता लक्ष्मी की पूजा करें. अंत में भगवान धन्वंतरि एवं लक्ष्मी जी की आरती उतारें और प्रसाद ग्रहण करें.
धन्वंतरी जयंती का महत्व;
भगवान धनवंतरी को देवताओं का वैद्य या स्वास्थ्य का देवता भी कहा जाता है. उन्हें पीतल धातु से बनीं वस्तुएं बहुत प्रिय हैं, इसलिए इस दिन पीतल के बर्तनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से निरोगी काया अथवा अच्छे सेहत का सुफल प्राप्त होता है. अगर सेहत अच्छी नहीं हो तो उस पर फिजूल धन बर्बाद होता है. इसलिए धनतेरस पर भगवान धन्वंतरी की पूजा अच्छे सेहत एवं स्वस्थ शरीर के लिए की जाती है. इसके साथ ही कुबेर-लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है.
श्रीहरि के अवतार थे धन्वंतरि?
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरी को श्रीहरि का भी अवतार माना जाता है. समुद्र-मंथन के दौरान, वह कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन उनका उद्भव हुआ था, इसीलिए धन्वंतरि दीपावली से दो दिन पूर्व मनाई जाती है. धन्वंतरि जयंती दीपावली से दो दिन पहले मनाई जाती है. ऐसी भी मान्यता है आयुर्वेद का जन्म भगवान धन्वंतरी के रूप में हुआ था, इसलिए उन्हें आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है. इनकी चार भुजाएं, जिसमें वे शंख, चक्र, औषधि और अमृत कलश धारण करते हैं.