Dev Diwali 2019: क्या है देव दीपावली, कैसे शुरू हुई इसे मनाने की परंपरा, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
देव दिवाली (Photo Credits: Twitter)

Dev Diwali 2019: वाराणसी पृथ्वी पर एकमात्र ऐसा स्थान है जहां दिवाली दो बार मनाई जाती है. देव दीपावली (Dev Diwali 2019), दिवाली के 15 दिन बाद मनाया जाता है. यह त्योहार भगवान शिव के त्रिपुरासुर को मारकर उस पर जीत हासिल करने की याद में मनाया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, त्रिपुरासुर से मुक्ति और भगवान शिव की जीत की ख़ुशी में देवता काशी में आए थे और चारों ओर दीप जलाकर दिवाली मनाई थी. ऐसा कहा जाता है तबसे देवता धरती पर उतरते हैं और देव दीपावली मनाते हैं. इस दिन हजारों भक्त कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में पवित्र स्नान करते हैं और वाराणसी के 88 घाटों को शाम को लाखों दीयों से सजाया जाता है.

इस शुभ अवसर पर 21,000 ब्राह्मण पुजारियों द्वारा गंगा आरती और जलते हुए दीये को देखने के लिए लाखों लोग नदी तट पर आते हैं. यह उत्सव हर साल पवित्र शहर वाराणसी में मनाया जाता है. इस त्योहार को गुजरात और भारत के अन्य उत्तरी राज्यों में भी मनाया जाता है. महाराष्ट्र में, देव दिवाली 'मार्गशीर्ष' के महीने के पहले दिन मनाई जाती है. देव दिवाली का त्योहार गुरु नानक जयंती और जैन प्रकाश उत्सव के साथ मेल खाता है.

तिथि और शुभ मुहूर्त:

कार्तिक पूर्णिमा तिथि- 12 नवंबर 2019.

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 11 नवंबर 2019 को शाम 06.02 बजे से,

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 12 नवंबर 2019 की शाम 07.04 बजे तक.

देव दीपावली के दिन जल्दी उठते हैं और 'कार्तिक स्नान' करते हैं, जो पवित्र गंगा में डुबकी लगाने की एक रस्म है. उसके बाद देवी गंगा को दीपदान करते हैं. देव दिवाली के इस अवसर पर, लोग अपने घरों को तेल के दीपक से सजाते हैं और द्वार पर रंगोली बनाई जाती है. वाराणसी में कई घरों में 'अखंड रामायण' का आयोजन भोग के साथ किया जाता है.

जैसा कि नाम से ही पता चलता है, देव दिवाली. ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी और देवता गंगा में स्नान करने के लिए पृथ्वी पर उतरते हैं. देव दीपावली के दिन दीया जलाने की यह अनोखी परंपरा वर्ष 1985 में पंचगंगा घाट पर शुरू की गई थी.