Chhoti Diwali 2019: दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है छोटी दिवाली, जानिए शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

दीपावली से एक दिन पहले मनाए जानेवाले नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय यमराज के नाम दीप जलाना चाहिए और मध्य रात्रि में मां काली की पूजा करनी चाहिए. मान्यता है कि नरक चतुर्दशी की रात में महाकाली की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और वे भक्तों की हर बुरी शक्ति से रक्षा करती हैं.

छोटी दिवाली 2019 (Photo Credits:File Image)

Naraka Chaturdashi 2019: दीपावली (Deepawali) यानी लक्ष्मी पूजन (Lakshmi Pujan) से महज एक दिन पहले छोटी दिवाली (Chhoti Diwali) का त्योहार मनाया जाता है, जिसे कई जगह पर नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi), रूप चौदस (Roop Chaudas) और काली चौदस (Kali Chaudas) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में शरीर पर तेल लगाकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है. इस दिन शाम के समय मृत्यु के देवता यमराज के नाम दीप जलाने की परंपरा है. कहा जाता है कि इस दिन यमराज (Yamraj) के नाम दीप जलाने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है. इस साल नरक चतुर्दशी और दीपावली तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति है. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो 26 अक्टूबर दोपहर 03.48 बजे से 27 अक्टूबर को दोपहर 12.25 तक चतुर्दशी तिथि है, इसके बाद अमावस्या तिथि प्रारंभ हो जाएगी.

ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक, 26 अक्टूबर की शाम नरक चतुर्दशी की पूजा की जानी चाहिए. इस दिन शाम के समय यमराज के नाम दीप जलाना चाहिए और मध्य रात्रि में मां काली की पूजा करनी चाहिए. मान्यता है कि नरक चतुर्दशी की रात में महाकाली की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और वे भक्तों की हर बुरी शक्ति से रक्षा करती हैं. चलिए जानते हैं नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली का शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा. यह भी पढ़ें: Narak Chaturdashi 2019: कब है नरक चतुर्दशी? इस दिन क्यों की जाती है यमराज की पूजा, जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और दीप दान महत्व

छोटी दिवाली शुभ तिथि-

चतुर्दशी तिथि प्रारंभ- 26 अक्टूबर 2019 दोपहर 03.48 बजे से,

चतुर्दशी तिथि समाप्त- 27 अक्टूबर 2019 दोपहर 12.25 बजे तक.

अभ्यांग स्नान मुहूर्त- सुबह 04.15 बजे से 05.29 बजे तक.

दीपदान शुभ मुहूर्त- शाम 06.00 बजे से 07.00 बजे तक.

नरक चतुर्दशी का महत्व

नरक चतुर्दशी के दिन रात के समय कई घरों में परिवार के सबसे बड़े सदस्य द्वारा एक दीपक जलाकर पूरे घर में घूमाने की परंपरा है, इसके बाद उस दीपक को ले जाकर घर से बाहर कहीं दूर रख दिया जाता है. उस दौरान घर के बाकी सदस्य घर के भीतर रहते हैं और उस दीपक को नहीं देखते हैं. इसे यम का दीपक कहा जाता है. इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करना फायदेमंद माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन शरीर पर तेल लगाकर स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और इससे सौंदर्य में भी निखार आता है, इसलिए इसे रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिवस को बंगाल में मां काली के प्राकट्य दिवस के तौर पर मनाया जाता है और महाकाली की विशेष पूजा की जाती है.

नरक चतुर्दशी की कथा

नरक चतुर्दशी को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार, हमेशा धर्म-कर्म के कार्य करने वाले राजा रन्तिदेव का जब आखिरी समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आए और राजा से बोले कि राजन आपके नरक में जाने का समय आ गया है. नरक में जाने की बात सुनते ही राजा ने कहा कि मैंने कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो आप मुझे नरक में क्यों ले जा रहे हैं. इस सवाल का जवाब देते हुए यमराज के दूतों ने राजा से कहा कि एक बार तुम्हारे महल के द्वार पर एक ब्राह्मण आया था जो भूखा ही वापस लौट गया, जिसके कारण तुम्हें नरक में जाना पड़ रहा है. यह भी पढ़ें: Chhoti Diwali/Kali Chaudas 2019 Messages: छोटी दिवाली पर होती है महाकाली की पूजा, प्रियजनों को इन हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, SMS, GIF, Wallpapers के जरिए दें काली चौदस की शुभकामनाएं

इसके बाद राजा ने यमराज से अपनी गलती को सुधारने के लिए एक वर्ष का समय और देने की प्रार्थना की. यमराज से एक वर्ष का समय मिलने के बाद राजा यमदूतों से मुक्ति पाने का समाधान तलाशने के लिए ऋषियों के पास गए, तब ऋषियों ने उन्हें नरक चतुर्दशी के दिन व्रत कर ब्राह्मणों को भोजन कराने का उपाय बताया. इसके बाद राजा ने कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को व्रत कर ब्राह्मणों को भोजन कराया, जिसके कारण राजा को नरक जाने से मुक्ति मिल गई.

Share Now

\