Chhath Puja 2019: छठ पूजा में पानी में खड़े होकर क्यों दिया जाता है सूर्य देव को अर्घ्य, जानिए छठी मईया की उपसना से भक्तों को मिलता है कौन सा आशीर्वाद
छठ महापर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. एक ओर जहां यह पर्व देवी-देवताओं की उपसना से जुड़ा है तो वहीं दूसरी तरफ इसे प्रकृति औरर उन्नति का भी प्रतीक माना जाता है.छठ पूजा में व्रती किसी पवित्र नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और संतान सुख के लिए छठी मईया की उपासना करते हैं.
Chhath Puja 2019: नहाय-खाय के साथ 31 अक्टूबर 2019 से चार दिनों के छठ पूजा का महापर्व शुरू हो चुका है और आज छठ पूजा (Chhath Puja) का दूसरा दिन है, जिसे खरना (Kharna) कहते हैं. नहाय-खाय (Nahay Khay) के दिन स्नान के बाद छठ पूजा व्रत (Chhath Puja Vrat) का संकल्प लिया जाता है और खरना के दिन शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है. इसके साथ ही इस दिन छठी मईया (Chhath Maiya) के लिए गुड़ की पुरी, सादी पुरी और अलग-अलग मिठाइयां बनाकर केले के पत्तों पर माता के लिए प्रसाद निकाला जाता है. छठी मईया को भोग लगाने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और इसी के साथ अगले 36 घंटों के लिए निर्जल व्रत शुरू हो जाता है. व्रती निर्जल व्रत रखकर संध्या के समय अस्त होते सूर्य (Surya Bhagwan) को अर्घ्य देते हैं, फिर अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसके बाद प्रसाद बांटकर व्रत का पारण किया जाता है.
छठ महापर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. एक ओर जहां यह पर्व देवी-देवताओं की उपसना से जुड़ा है तो वहीं दूसरी तरफ इसे प्रकृति और उन्नति का भी प्रतीक माना जाता है. सूर्य देव और छठी मईया की उपासना के इस पर्व में प्रसाद के रूप में आटे व गुड़ से बने ठेकुआ, केला, कच्ची हल्दी, शकरकंद जैसे मौसमी सब्जियां और फल चढ़ाए जाते हैं, जिन्हें कृषि का प्रतीक माना जाता है. छठ पूजा में व्रती किसी पवित्र नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों पानी के भीतर खड़े होकर ही सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और छठी मईया की उपासना से भक्तों को कौन सा आशीर्वाद प्राप्त होता है.
इसलिए पानी में खड़े होकर दिया जाता है अर्घ्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव को भगवान विष्णु का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है. कार्तिक महीने में भगवान विष्णु क्षीरसागर में निवास करते हैं, इसलिए कहा जाता है कि किसी नदी या तालाब में प्रवेश कर अर्घ्य देने से भगवान विष्णु और सूर्य देव दोनों की पूजा एक साथ हो जाती है. इसके अलावा एक अन्य मान्यता के अनुसार, गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदी व्यक्ति के पापों और कष्टों को हर लेती हैं, इसलिए भी जल में खड़े होकर अर्घ्य देना शुभ माना जाता है. इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है जिसके मुताबिक, अर्घ्य देते समय जल के छींटे भक्तों के पैरों पर न पड़े, इसलिए भी पानी में उतरकर अर्घ्य दिया जाता है.
सूर्य देव की मानस बहन हैं छठी मईया
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मईया भगवान सूर्य की मानस बहन हैं. उन्हें मां दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्याननी का रूप भी माना जाता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के मुताबिक सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है. प्रकृति का छठा अंश होने की वजह से इस देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है. छठी मईया को भगवान विष्णु की रची हुई माया भी माना जाता है. वे बालकों की रक्षा करती हैं और संतान सुख का वरदान देती हैं, इसलिए यह पर्व संतान की कामना से भी जुड़ा हुआ है. .
छठी मईया देती हैं यह आशीर्वाद
छठ मईया भगवान सूर्य की बहन हैं, इसलिए छठी मईया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा की जाती है. छठ पूजा से भक्तों को सुखी-समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मिलता है.
- छठी मईया की पूजा से निसंतान दंपत्तियों को संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है.
- छठ पूजा से संतान की रक्षा होती है और उन्हें खुशहाल जीवन का आशीर्वाद मिलता है.
- छठ पूजा पर छठी मईया की उपासना से सैकड़ों यज्ञों के बराबर फल मिलता है.
- छठी मईया की उपासना से परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
- छठ पूजा पर छठी मईया की उपासना से भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2019: नहाय-खाय के साथ 31 अक्टूबर से शुरू हो रहा है सूर्य की उपासना का पर्व, जानें छठ पूजा की तिथि, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व
मान्यता है कि छठ मईया की पूजा करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है. छठी मईया बालकों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी उम्र प्रदान करती हैं, इसलिए यह व्रत संतान सुख, स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए किया जाता है. हालांकि छठ पूजा का व्रत विधि-विधान और नियमों का पालन करते हुए करना चाहिए, क्योंकि नियम पूर्वक व्रत करने से ही पूर्ण फलों की प्राप्ति होती है.