Chhath Puja 2018: देश भर में व्रतियों ने उगते सूर्य दिया अर्घ्य, संपन्न हुआ छठ महापर्व
लोकपर्व छठ का सांस्कृतिक महत्व के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है, क्योंकि षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है. इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (अल्ट्रा वॉयलेट रेज) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र होती हैं
देश के कुछ अन्य शहरों के साथ- साथ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में आज बड़े ही धूम- धाम से छठ पूजा मनाया गया.लोक आस्था के महापर्व छठ पर बुधवार को व्रतियों ने सूर्य देव को दूसरा अर्घ्य दिया और छठी मैया की पूजा के साथ यह पर्व संपन्न हो गया. छठ पूजा न सिर्फ बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में होती है, बल्कि देश के उन सभी प्रांतों में छठ पूरी दुनिया में मनाया जाता है. वहीं आज सुबह बड़ी संख्या में व्रतियों ने नदी, तालाबों, नहरों पर बने घाटों पर जाकर व्रतियों ने सूर्य देव को अर्घ्य दिया.
बता दें कि देश भर में मनाया जाने वाला आस्था के इस पर्व पर व्रतियों ने सूर्यास्त होने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया और बुधवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही यह 36 घंटे का निर्जला व्रत संपन्न हुआ. इस व्रत में आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. व्रत के आखिरी दिन व्रती घाट पर ही पूजा के बाद प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं. इस दौरान व्रती सुबह घुटने तक पानी में खड़े होकर व्रतधारियों ने सूप, बांस की डलिया में मौसमी फल, गन्ना सहित पूजन सामाग्री और गाय के दूध से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और सुख समृद्धि की कामना की.
लोकपर्व छठ का सांस्कृतिक महत्व के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है, क्योंकि षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है. इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (अल्ट्रा वॉयलेट रेज) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र होती हैं, इस कारण इसके संभावित कुप्रभावों से मानव जीवन की यथासंभव रक्षा करने का सामथ्र्य प्राप्त होता है.
यह भी पढ़ें:- Chhath Puja 2018: नि:संतानों को संतान का सुख प्रदान करती हैं छठी मैया, जानें इस पर्व से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
पूजा का महत्व
छठ पूजा बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. इस खास त्योहार पर लोग समुद्र और नदी के पास जाकर छठ मैया का पूजा करते है. इस त्योहार को लेकर लोगों की मान्यता है कि इस खास त्योहार पर जो भी छठ मैया से अपनी मुराद मांगता है. उसकी खास मुराद पूरी हो जातीं है. खासकर महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि जिस महिला को संतान पैदा नहीं हो रहा है. इस दिन व्रत रखने के बाद पूजा करने पर उसे पुत्र की प्राप्ति होती है.
छठ मनाने की परंपरा की शुरुआत
छठ पूजा भगवान सूर्य और छठी मैया की उपासना का पर्व है, इसलिए इस पूजा में किसी भी तरह की मूर्तिपूजा शामिल नहीं है. बता दें कि छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व के बारे में कई उल्लेख मिलते हैं. कहा जाता है कि छठ की पहली पूजा सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी. वहीं यह भी माना जाता है कि यह व्रत द्रौपदी ने भी रखा था.