सनातन धर्म में नवरात्रि का बहुत महत्व है. इस बार पूरे नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाएगी. हर दिन पूजी जानेवाली ‘शक्ति’ का अपना महात्म्य है. चैत्र मास के शुक्लपक्ष को प्रतिपदा के दिन शैलपुत्री की पूजा के पश्चात द्वितिया को दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. आइये जानें माँ दुर्गा की इस प्रतीक स्वरूप शक्ति ब्रह्मचारिणी की पूजा विधान क्या है? किस मंत्र का जाप करना चाहिए? और पूजा का प्रतिफल क्या है? साथ ही शक्ति के रूप में अवतरित माँ ब्रह्मचारिणी का महात्म्य क्या है?
इस बार है कुछ शुभ संयोग
इस वर्ष चैत्रीय नवरात्रि में कई तरह के शुभ योग बन रहे हैं, जिनमें 4 सर्वाथ सिद्धि योग, 5 रवि योग, एक द्विपुष्कर योग और एक गुरु पुष्य योग बना है. इस योगों के कारण मां भगवती की विधि सम्मत पूजा-प्रतिष्ठान करने से यथेष्ट फलों की प्राप्ति होती है. ज्योतिषियों के अनुसार 30 मार्च 2020 को गुरु शनि की राशि मकर में प्रवेश कर रहा है. इस वजह से शनिदेव विराजमान हैं. उधर मंगल भी मकर राशि में ही मौजूद रहेगा. मीन में सूर्य, कुंभ में बुध, मिथुन में राहु, धनु में केतु, वृषभ में शुक्र रहेंगे. ग्रह योगों के संयोग से भी ये नवरात्रि जातकों के लिए शुभ मानी जा रही है.
पूजा से मिलती है जप, तप व भक्ति को शक्ति
गौरतलब है कि मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप हैं ब्रह्मचारिणी. नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन साधक अपने मन को स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं. भविष्य पुराण के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय व अत्यंत दिव्य है. यहां ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली.
दिव्य रूप है ‘ब्रह्मचारिणी’
दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित होता है. नौ दिन का उपवास रखने वाला जातक शक्ति के इस स्वरूप की पूजा करता है तो उसमें जप, तप, की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम में वृद्धि होती है. जीवन में कितने भी संकट आ जाएं, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-आऱाधना करनेवाले तथा उन पर श्रद्धा रखने वाले विचलित नहीं होते और अंततः उन्हें विजयश्री मिलती है. मान्यतानुसार माँ ब्रह्मचारिणी को शक्कर का प्रसाद बहुत प्रिय है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के बाद भोग में लगा शक्कर ज्यादा से ज्यादा लोगों में बांटे. माना जाता है कि इससे व्यक्ति दीर्घायु एवं सेहतमंद होता है.
बुरी प्रवृत्तियों से मुक्ति के लिए करें माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है. इनकी उपासना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. किसी भी लोभ, लालसाओं और बुरी प्रवृत्ति से मुक्ति पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाना श्रेयस्कर होता है.
पारंपरिक कथा
पूर्वजन्म में सती ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया. पार्वती ने महर्षि नारद के सुझाव पर शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की. इस कठिन तपस्या के कारण उन्हें ‘तपश्चारिणी’ अर्थात् ‘ब्रह्मचारिणी’ का नाम दिया गया. एक हजार वर्ष तक महज फल-फूल खाकर पार्वती ने कठोर तपस्या किया. इसके बाद उन्होंने टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर भगवान शिव का ध्यान किया. बाद में उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. हजारों वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर उन्होंने तपस्या किया. पत्तों का भी सेवन बंद करने के कारण उन्हें ‘अपर्णा’ के नाम से भी जाना जाता है.
कठोर तपस्या के कारण माता पार्वती का शरीर एकदम कमजोर हो गया. देवतागण, ऋषि, सिद्धगण, मुनि इत्यादि ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को दिव्य बताते हुए प्रशंसा की और कहा, -हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी और भगवान शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे. अब तपस्या छोड़कर घर जाओ. जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं.