Bhalchandra Sankashti Chaturthi 2025: भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत इन नियमों के तहत ही करें! जानें इसका महत्व, मुहूर्त एवं व्रत-पूजा विधि आदि!

Bhalchandra Sankashti Chaturthi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार हर चन्द्र मास में दो चतुर्थी पड़ती हैं. पूर्णिमा के बाद के पखवाड़े को कृष्ण पक्ष और इस पखवाड़े की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी तथा अमावस्या के बाद के पखवाड़े को शुक्ल पक्ष और चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार गणेश जी का जन्म चतुर्थी के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा का विधान है. चैत्र मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी (Bhalchandra Sankashti Chaturthi) भी कहते हैं. इस चतुर्थी का विशेष महत्व बताया जाता है. आइये जानते हैं अन्य चतुर्थी से भालचंद्र चतुर्थी क्यों अलग और खास है, साथ ही जानेंगे इस भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी की मूल तिथि, मुहूर्त, मंत्र एवं व्रत-पूजा आदि के नियमों के बारे में.. यह भी पढ़ें: When is Rang Panchami: रंग पंचमी कब है? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा, पूजा विधि, तिथि और शुभ मुहूर्त

क्यों खास है भालचंद्र संकष्टी (2025) चतुर्थी व्रत एवं पूजा

अमान्त हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष चतुर्थी को भालचन्द्र संकष्टी के नाम से मनाया जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि व्यक्ति के जीवन में आने वाले बड़े से बड़े संकटों के निवारण हेतु भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत की विशेष परंपरा है, इसे अमोघ उपाय बताया गया है. भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नियमों के अनुसार यह व्रत 4 अथवा 13 वर्ष के लिए किया जाता है. कहने का आशय यह कि या तो चार मास व्रत रखकर उद्यापन कर लें, या भी 13 मास व्रत रखकर उद्यापन करें. यह जातक की इच्छा शक्ति और उसके द्वारा किये गये विशेष मन्नतों पर निर्भर करता है. भालचंद्र चतुर्थी शुरू करने के लिए चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी श्रेष्ठ रहता है. यदि पंचांग के अनुसार दो दिन चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी हो, तो प्रथम दिवस चुनना चाहिए.

भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी मूल तिथि एवं पूजा का शुभ मुहूर्त

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी प्रारंभः 07.33 PM (17 मार्च, 2025 सोमवार)

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी समाप्तः 10.09 PM (18 मार्च, 2025 मंगलवार)

आज चन्द्रोदयः 09.18 PM

चूंकि संकष्टी चतुर्थी व्रत में चंद्रोदय के समय पूजा की जाती है. ऐसे में भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत 17 मार्च को रखा जाएगा.

भालचन्द्र संकष्टी व्रत एवं पूजा विधि

चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्म बेला में उठकर स्नानादि आदि कर्मों से निवृत्त हों. भगवान गणेश का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. मंदिर के समक्ष मनोकामना व्यक्त करें. संध्या काल को सूर्यास्त से पूर्व घर के मंदिर की सफाई करके भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें. धूप दीप प्रज्वलित करें. गणेश जी का आह्वान मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.

‘ॐ गं गणपतये इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठो भव’

भगवान को सिंदूर, दूर्वा की गांठ, पान, सुपारी, इत्र एवं मूंग अर्पित करें. इसके पश्चात मोदक एवं फल का भोग चढ़ाएं. गणेश चालीसा का पाठ करें. संभव है तो भालचंद्र चतुर्थी का व्रत कथा सुनें. अंत में भगवान गणेश की आरती उतारें.

चंद्रमा पूजाः चंद्रोदय होने पर उन्हें दीप दिखाकर सुगंध एवं फूल अर्पित करें. जलाभिषेक करें. मनोकामना व्यक्त करते हुए पूजा सम्पन्न करें.