Sankashti Chaturthi August 2020: संकष्टि चतुर्थी का व्रत-उपासना कर श्रीगणेश को करें प्रसन्न! जानें पूजा-विधि और इस व्रत से जुड़ी पारंपरिक कथा

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार भाद्रपद की संकष्टि चतुर्थी 7 अगस्त शुक्रवार को पड़ रहा है. भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी हेरंब चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिवस विशेष पर भगवान श्रीगणेश की शोडषोपचार विधि से पूजा-अर्चना होती है. इन्हें प्रसन्न रखने और मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए अधिकांश महिलाएं व्रत भी रखती हैं.

भगवान गणेश (Photo Credits: Pixabay)

भाद्रपद संकष्टि चतुर्थी 2020: हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार भाद्रपद की संकष्टि चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) 7 अगस्त शुक्रवार को पड़ रहा है. भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी हेरंब चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिवस विशेष पर भगवान श्रीगणेश (Lord Ganesh) की शोडषोपचार विधि से पूजा-अर्चना होती है. इन्हें प्रसन्न रखने और मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए अधिकांश महिलाएं व्रत भी रखती हैं.

मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रती के घर-परिवार में शुभ और समृद्धि का वास होता है. पूरे दिन व्रत रखने के पश्चात शाम के समय भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना के पश्चात व्रती श्रीगणेश जी की प्रतिमा के सामने हाथ जोड़कर सारे संकट हरने की प्रार्थना करते हैं. अमूमन पुत्र के लिए रखा जाने वाले इस संकष्टि के व्रत को करने से घर में मांगलिक कार्य सम्पन्न होते हैं.

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गणेश संकष्टी का महत्व

गणेश संकष्टि चतुर्थी का यह व्रत हर माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन मनाई जाती है. पूर्णिमा के बाद आनेवाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. हिंदु धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन गणेश भगवान का व्रत करने से सुख-समृद्धि, ज्ञान और बुद्धि भी वृद्धि होती है. विशेष रूप से महिलाएं ये व्रत पुत्र की लंबी आयु की कामना के साथ करती हैं.

कैसे करें पूजा-अर्चना

भाद्रपद कृष्णपक्ष की संकष्टि चतुर्थी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान कर नये अथवा स्वच्छ वस्त्र पहनें. पूजा घर के सामने की जमीन की अच्छे से सफाई कर, वहां गंगाजल से छिड़काव करें. एक साफ छोटी-सी चौकी पर लाल अथवा पीले रंग का आसन बिछाएं. अब चौकी पर श्रीगणेश जी की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित कर, शुद्ध देशी घी का दीप एवं धूप प्रज्जवलित करें. अब प्रतिमा को फूल और माले से अलंकृत करें.

चौकी के सामने आसन बिछाकर पति-पत्नी बैठ जायें. हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प लेते हुए ओम श्रीगणेशाय नमः मंत्र का जाप करते हुए अक्षत और लाल रंग का फूल श्रीगणेश जी की प्रतिमा के सामने रख दें. गणेश जी के सामने दूर्वा और पीले रंग का मिष्ठान चढ़ाएं. मान्यता है कि श्रीगणेश के शक्तिशाली मंत्रों का जाप करने से व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक व्रत रखा जाता है.

प्रभावशाली मंत्र/गणेश-गायत्री मंत्र-

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गणेश-मंत्र

ओम ग्लोम गौरी पुत्र वक्रतुण्ड गणपति गुरू गणेश

ग्लौम गणपति ऋद्धिपति सिद्धी पति करौं दूर क्लेश

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

एक बार मां पार्वती और शिवजी नदी के किनारे बैठे हुए थे, तभी उन्हें चौपड़ खेलने की इच्छा हुई. दोनों की सहमति बनने के बाद यह समस्या उठी कि खेल में निर्णायक की भूमिका कौन निभायेगा. अंततः मां पार्वती और भगवान शिव ने एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और उसमें जान डाल दी. शिवजी और माँ पार्वती ने उन्हें निर्देश दिया कि तुम खेल को ईमानदारी से देखने के बाद अपना फैसला सुनाना. खेल प्रारंभ हुआ और माँ पार्वती बार-बार शिव जी को मात दे रहे थे. लेकिन इसी बीच एक बार पार्वती जी के जीतने के बाद भी मिट्टी से बने बच्चे ने शिव जी को विजयी घोषित कर दिया.

बालक की इस गलती से मां पार्वती ने क्रोधित होकर बालक को श्राप देकर लंगड़ा बना दिया. बालक ने अपनी गलती के लिए मां से क्षमा मांगे. बालक के बार-बार निवेदन के बाद माँ पार्वती ने कहा कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय है, जिससे श्राप से मुक्ति मिल सकती है. संकष्टी के दिन इस स्थल पर कुछ कन्याएं आयेंगी, तुम उनसे संकष्टि व्रत की विधि पूछकर उसे पूरे सच्चे मन से करना.

बच्चे ने संकष्टि व्रत को पूरी श्रद्धा एवं विधि पूर्वक किया. इस पूजा से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी. बच्चे ने मां पार्वती और शिवजी के पास जाने की जताई. गणेशजी ने उसे शिवलोक पंहुचा दिया. लेकिन शिवलोक में बच्चे को केवल शिवजी ही मिले, क्योंकि मां पार्वती शिवजी से नाराज़ होकर कहीं और जा चुकी थीं. शिव ने बच्चे को पूछा कि वह यहां कैसे आया, तो उसने बताया कि वह गणेश जी का व्रत करके उनके वरदान से यहां पहुंचे हैं. इसके बाद शिवजी ने भी श्रीगणेश जी का व्रत करके पार्वती को प्रसन्न करने में सफल रहे और इस तरह माँ पार्वती पुनः कैलाश लौटीं.

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