बकरा ईद 2018: जानें ईद-उल-अजहा की अहमियत

इस्लाम धर्म में एक साल में दो तरह की ईद मनाई जाती है. एक ईद जिसे मीठी ईद कही जाती है. इस त्योहार पर लोग पूरे एक महीना रोज रखते है और ईद पर सेवईंया पिते हैं. वही दूसरी ईद जिसे ईद-उल-अजहा या बकरीद कहतें हैं

ईद की नमाज पढने के लिए जमा लोग (Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: देश में ईद-उल-अजहा यानी  बकरा ईद 22 अगस्त को मनाई जाएगी. मुस्लिम समुदाय में  बकरा ईद को बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है. इस्लाम धर्म में एक साल में दो तरह की ईद मनाई जाती है. एक ईद जिसे मीठी ईद कही जाती है. इस त्योहार पर लोग पूरे एक महीना रोज रखते है और ईद पर सेवईंया बनाते हैं. वही दूसरी ईद जिसे ईद-उल-अजहा या बकरा ईद कहतें हैं इस दिन मुसलमान अल्लाह की राह में कुर्बानी देते हैं.

इस्लाम धर्म में ईद उल अज़हा को सुन्नते इब्राहीम भी कहते है. इस्लाम की मानयताओं के अनुसार अल्लाह पाक ने हजरत इब्राहिम अलैस्लाम की परीक्षा लेने के मकसद से उन्हें अपनी सबसे पसंद चीज की कु्र्बानी देने को लेकर हुक्म दिया. इस हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम अलैस्लाम लगा की उनके पास सबसे कोई प्रिय और करीब कुछ है तो वह उनका बेटा है. इसलिए उन्होने फैसला किया कि वे अपने बेटे इस्माईल को अल्लाह के राह में कुर्बान करेंगे

फैसले के मुताबिक इन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार होने के बाद कुर्बानी देते समय उन्हें कुर्बानी देते समय रहम ना आ जाए और वे कुर्बानी ना दे सके. इसलिए इन्होंने अपनी आंख में पट्टी बांधने के बाद बेटे की कुर्बानी देने लगे. कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने आंख से पट्टी खोली तो देखा  की बेटा सामने खड़ा हुआ है, और भेड़ कटा हुआ है. तभी से इस्लाम धर्म में कुर्बानी देने की प्रथा चली आ रही है.

बता दें कि मुसलमान जिस भी जानवर (जो जायज है) की कुर्बानी करते हैं उसके गोश्त रिश्तेदारों और गरीबों में बांटते हैं. बकरा ईद का मकसद ही गरीबों को खाना खिलाना है. जिस तरह रमजान के पाक महीने में गरीबों को जकात दी जाती हैं उसी तरह ईद-उल-अजहा के दौरान गरीबों को कुर्बानी का गोश्त दिया जाता हैं.

Share Now

\