Baba Saheb Ambedkar Anniversary 2025: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती पर जानें उनकी जिंदगी से जुड़े अनसुने व रोचक तथ्य
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (Photo Credits: File Image)

Unknown Facts About Baba Saheb Ambedkar: हर साल 14 अप्रैल को भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती (Dr. Baba Saheb Ambedkar Jayanti) मनाई जाती है.  भारतीय इतिहास में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (Dr. Baba Saheb Ambedkar) को न्यायविद्, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और महान समाज सुधारक के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने अछूतों यानी दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को खत्म करने, महिलाओं व श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के विशेषकर भारत में दलितों की दुर्दशा के उत्थान के प्रबल समर्थक थे, क्योंकि उन्होंने बचपन से ही भेदभाव, जातिवाद जैसी सामाजिक कुरीतियों का सामना किया था. आइए जानते हैं डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर से जुड़े रोचक व अज्ञात तथ्य…

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर से जुड़ी अनसुनी बातें

  •  बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था, वह अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे.
  • डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल थे.  वह ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे. बाबासाहेब के पिता संत कबीर के अनुयायी थे और वे बेहद सुविज्ञ भी थे.
  • डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर लगभग दो वर्ष के थे, जब उनके पिता सेवानिवृत्त हो गये. जब वह केवल छह वर्ष के थे तब उनकी माताजी की मृत्यु हो गई. बाबासाहेब की प्रारंभिक शिक्षा बम्बई में हुई. अपने स्कूली दिनों में ही उन्हें गहरे सदमे के साथ इस बात का एहसास हो गया था कि भारत में अस्‍पृश्‍य होना क्या होता है.
  • डॉ. अंबेडकर अपनी स्कूली शिक्षा सतारा में ग्रहण कर रहे थे. दुर्भाग्यवश, डॉ. अंबेडकर की माताजी का निधन हो गया. चाची ने उनकी देखभाल की. बाद में वह बम्बई चले गये। अपनी पूरी स्कूली शिक्षा के दौरान वह अस्पृश्यता के अभिशाप का दंश झेलते रहे. उनके मैट्रिक करने के बाद 1907 में उनकी शादी बाजार के एक खुले शेड के नीचे हुई.
  • डॉ. अंबेडकर ने अपनी स्नातक की पढ़ाई एल्फिन्स्टन कॉलेज, बम्बई से पूरी की, जिसके लिए उन्हें बड़ौदा के महामहिम सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्राप्‍त हुई थी. स्नातक की शिक्षा अर्जित करने के बाद उन्हें अनुबंध के अनुसार बड़ौदा संस्थान में शामिल होना पड़ा. जब वह बड़ौदा में थे, तभी उन्होंने अपने पिता को खो दिया. वर्ष 1913 में डॉ. अंबेडकर को उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका जाने वाले अध्‍येयता के रूप में चुना गया। यह उनके शैक्षिक जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.
  • उन्होंने क्रमशः 1915 और 1916 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन चले गए. वकालत की पढ़ाई के लिए वह ग्रेज़ इन में भर्ती हुए और उन्‍हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में डी.एससी. की तैयारी करने की भी अनुमति दी गई, लेकिन बड़ौदा के दीवान ने उन्हें भारत वापस बुला लिया. बाद में, उन्होंने बार-एट-लॉ और डी.एससी. की डिग्री भी प्राप्त की. उन्होंने कुछ समय तक जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया.
  • 1916 में उन्होंने 'कास्‍ट्स इन इंडिया–देअर मैकनिज्‍म, जीनेसिज एंड डेवेलपमेंट' विषय पर एक निबंध पढ़ा. 1916 में, उन्होंने ‘नेशनल डिविडेंड फॉर इंडिया- अ हिस्‍टोरिक एंड एनालिटिकल स्‍टडी’ पर अपनी थीसिस लिखी और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की. इसे आठ वर्ष बाद “इवोल्‍यूशन ऑफ प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया” शीर्षक से प्रकाशित किया गया. इस सर्वोच्‍च डिग्री को प्राप्त करने के बाद, बाबासाहेब भारत लौट आए और उन्हें बड़ौदा के महाराजा का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, ताकि आगे चलकर उन्हें वित्त मंत्री के रूप में तैयार किया जा सके.
  • सितंबर, 1917 में अपनी छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त होने पर बाबासाहेब शहर लौट आए और नौकरी करने लगे, लेकिन शहर में थोड़े ही समय नवंबर, 1917 तक रहने के बाद वह बम्बई रवाना हो गए. अस्पृश्यता के कारण अपने साथ हुए दुर्व्यवहार ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए विवश कर दिया था।
  • डॉ. अंबेडकर बम्बई लौट आए और राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में सिडेनहैम कॉलेज में पढ़ाने लगे। सुविज्ञ होने के कारण वह छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय थे, लेकिन लंदन में कानून और अर्थशास्त्र की पढ़ाई दोबारा शुरू करने के लिए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कोल्हापुर के महाराजा ने उन्हें आर्थिक सहायता दी. 1921 में उन्होंने “प्रोविंशियल डिसेंट्रलाइजेशन ऑॅफ इम्‍पीरियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’’ पर अपनी थीसिस लिखी और लंदन यूनिवर्सिटी से एम.एससी. की डिग्री प्राप्त की. उसके बाद उन्‍होंने कुछ समय जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में बिताया। 1923 में, उन्होंने डी.एससी. के लिए अपनी थीसिस- “प्रॉब्‍लम ऑफ रुपी इट्स ऑरिजन एंड सॉल्‍यूशन” प्रस्तुत की। 1923 में उन्हें वकीलों के बार में बुलाया गया.
  • 1924 में इंग्लैंड से लौटने के बाद उन्होंने दलित वर्गों के कल्याण के लिए एक एसोसिएशन की शुरुआत की, जिसमें सर चिमनलाल सीतलवाड़ अध्यक्ष और डॉ. अंबेडकर चेयरमैन थे। एसोसिएशन का तात्कालिक उद्देश्य शिक्षा का प्रसार करना, आर्थिक स्थितियों में सुधार करना और दलित वर्गों की शिकायतों का प्रतिनिधित्व करना था.
  • नए सुधार को ध्यान में रखते हुए दलित वर्गों की समस्याओं को हल करने के लिए 3 अप्रैल, 1927 कोबहिष्कृत भारतसमाचार पत्र शुरू किया गया.
  • 1928 में, वह गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बम्‍बई में प्रोफेसर बने और 1 जून, 1935 को वह उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए और 1938 में इस्तीफा देने तक उसी पद पर बने रहे.
  • 13 अक्टूबर, 1935 को नासिक जिले के येवला में दलित वर्गों का एक प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में उन्होंने यह घोषणा करके हिंदुओं को हतप्रभ कर दिया कि “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ, लेकिन मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा” उनके हजारों अनुयायियों ने उनके फैसले का समर्थन किया। 1936 में उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी महार सम्मेलन को संबोधित किया और हिंदू धर्म का परित्याग करने की वकालत की.
  • 15 अगस्त, 1936 को उन्होंने दलित वर्गों के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया, जिसमें ज्यादातर श्रमिक वर्ग के लोग शामिल थे.
  • 1938 में कांग्रेस ने अस्‍पृश्‍यों के नाम में परिवर्तन करने वाला एक विधेयक पेश किया. डॉ. अंबेडकर ने इसकी आलोचना की. उनका दृष्टिकोण था कि नाम बदलना समस्या का समाधान नहीं है.
  • 1942 में, उन्हें भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में लेबर सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया, 1946 में, वह बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए। उसी समय उन्होंने अपनी पुस्तक “हू वर शूद्र?” प्रकाशित की.
  • आजादी के बाद, 1947 में, उन्हें देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की पहली कैबिनेट में विधि एवं न्याय मंत्री नियुक्त किया गया, लेकिन 1951 में कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के बारे में प्रधानमंत्री नेहरू की नीति से मतभेद व्यक्त करते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
  • 1952 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने में उनके द्वारा दिए गए योगदान को मान्यता प्रदान करने के लिए उन्‍हें एल.एल.डी. की उपाधि प्रदान की. 1955 में, उन्होंनेथॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्सनामक पुस्तक प्रकाशित की.
  • डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उस्मानिया विश्वविद्यालय ने 12 जनवरी 1953 को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया. आख़िरकार 21 साल बाद, उन्होंने 1935 मेंयेवला में की गई अपनी घोषणा“मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा” को सच साबित कर दिया. 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक ऐतिहासिक समारोह में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हो गई.
  • 1954 में काठमांडू, नेपाल में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर को "जगतिक बौद्ध धर्म परिषद" में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा "बोधिसत्व" की उपाधि से सम्मानित किया गया. खास बात यह है कि डॉ. अंबेडकर को जीवित रहते हुए ही बोधिसत्व की उपाधि से सम्मानित किया गया.
  • उन्होंने भारत के स्‍वाधीनता संग्राम और स्वतंत्रता के बाद के सुधारों में भी योगदान दिया. इसके अलावा बाबासाहेब ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्‍थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस केंद्रीय बैंक का गठन बाबासाहेब द्वारा हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत की गई अवधारणा के आधार पर किया गया था.
  • डॉ. अंबेडकर के देदीप्यमान जीवन इतिहास से पता चलता है कि वह अध्ययनशील और कर्मठ व्यक्ति थे. सबसे पहले, अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति, कानून, दर्शनशास्त्र और समाजशास्त्र का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया; उन्हें अनेक सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने अपना सारा जीवन पढ़ने और ज्ञान अर्जित करने तथा पुस्तकालयों में नहीं बिताया. उन्होंने आकर्षक वेतन वाले उच्च पदों को ठुकरा दिया, क्योंकि वह दलित वर्ग के अपने भाइयों को कभी नहीं भूले। उन्होंने अपना जीवन समानता, भाईचारे और मानवता के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने दलित वर्ग के उत्थान के लिए भरसक प्रयास किये.
  • उनका जीवन इतिहास जान लेने के बाद उनके मुख्य योगदान और उनकी प्रासंगिकता का अध्ययन व विश्लेषण करना आवश्यक और उचित है। एक मत के अनुसार तीन बिंदु आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था एवं भारतीय समाज अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है. डॉ. अंबेडकर के विचार और कार्य इन समस्याओं को सुलझाने में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं.
  • डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि पूरे देश में ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनायी जाती है।
  • कल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य सदस्य संसद भवन लॉन में प्रातः 08:30 बजे से प्रातः 09:30 बजे तक डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे.