आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मां दुर्गा की चौथी शक्तिस्वरूपा देवी कूष्माण्डा की पूजा-अनुष्ठान किया जाता है. ज्योतिष शास्त्री इस तिथि को बहुत महत्वपूर्ण बता रहे हैं, क्योंकि हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक पखवारे की चतुर्थी माँ दुर्गा के परमप्रिय पुत्र गणेशजी को समर्पित होता है. इस शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेशजी के विनायक स्वरूप की पूजा होती है. यानी इस दिन श्रद्धालु माँ पार्वती (कूष्मांडा रूप में) के साथ-साथ गणेशजी की भी पूजा अर्चना करेंगे. यह भी पढ़ें: Horoscope Today 18 October 2023: जानें कैसा होगा आज का दिन और किस राशि की चमकेगी किस्मत
देवी कुष्मांडा की शास्त्रानुसार पूजा-अनुष्ठान से जातक को जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है. किंवदंतियों के अनुसार जब सर्वत्र अंधेरा था, देवी कूष्मांडा ने मनोहारी मुस्कान के साथ अपने उदर से सृष्टि की रचना की, इसीलिए इन्हें देवी कूष्मांडा कहा जाता है. कुछ लोग इनकी पूजा सृष्टि की आदि स्वरूपा अथवा जगत जननी के नाम से भी करते हैं. आइये जानते हैं देवी कूष्मांडा के स्वरूप, महात्म्य, एवं पूजा विधि के बारे में विस्तार से...
ऐसा है मां कुष्मांडा का स्वरूप
देवी कूष्मांडा का संपूर्ण व्यक्तित्व सूर्य के समान दिव्यमान है. मान्यता है कि संपूर्ण सृष्टि इन्हीं से प्रकाशमान होता है. सिंह पर सवार देवी कूष्मांडा की कुल आठ भुजाएं हैं, इसी वजह से इन्हें अष्टभुजी देवी भी कहते हैं. उनके हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत भरा कलश, चक्र, तथा गदा शोभायमान है, जबकि आठवें हाथ में सभी सिद्धियों से युक्त जपमाला है.
मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व
सृष्टि की रचना करने वाली देवी कूष्मांडा की पूजा करने से जातक को रोग, शोक, विनाश आदि से मुक्ति मिलती है, और लंबी उम्र, ऐश्वर्य, यश, बल एवं बुद्धि प्राप्त होती है. यहां बता दें कि जिन लोगों को विश्व स्तर पर प्रसिद्धी की चाहत है, उन्हें मां कूष्मांडा की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए.
देवी कूष्मांडा की पूजा के नियम!
आश्विन मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन सुबह-सवेरे स्नान-दान आदि से निवृत्त होकर स्थापित कलश के सामने देवी कूष्मांडा का ध्यान कर पूजा-अर्चना का संकल्प लें. इसके पश्चात देवी के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
अब देवी के समक्ष फूल, रोली, अक्षत, सिंदूर एवं सुहाग के सामान इत्यादि अर्पित करें, इसके पश्चात फल एवं दूध से बनीं मिठाई चढ़ाएं. देवी कूष्मांडा को भोग में हलवा, दही एवं सूखे मेवे चढाएं. अब कवच तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. पूजा के पश्चात दुर्गा जी की आरती उतारें, फिर शांत-चिंत्त से हाथ जोड़कर देवी से पूजा-अर्चना में जाने-अनजाने हुई भूल के लिए छमा मांगे. फिर प्रसाद वितरित करें. माँ कूष्मांडा की सच्ची आस्था एवं विधि-विधान से पूजा करने वाले जातक की हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं.