Bakrid 2019: देश भर में 12 अगस्त को ‘बकरीद’ का पर्व मनाया जाएगा. पवित्र माह रमजान के लगभग 70 दिन बाद कुर्बानी के इस पर्व का आगमन होता है. गौरतलब है कि ईद-उल-जुहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की स्मृति में मनाया जाता है. त्याग और बलिदान का यह पर्व कई मायनों में खास होता है और एक विशेष संदेश देता है. इस दिन प्रतीक स्वरूप बकरे की बलि दी जाती है. लेकिन इसके पीछे मकसद यही बताना होता है कि हर इंसान अपने जीवन को ईश्वर की अमानत समझे और उसकी रक्षा के लिए किसी भी त्याग अथवा बलिदान के लिए तैयार रहे.
क्यों मनाते हैं ‘ईद-उल-जुहा’
‘ईद उल जुहा’ का आशय है ‘क़ुरबानी की ईद’. इस्लाम धर्म में आस्था ऱखने वालों का यह प्रमुख पर्व है. यह पर्व रमजान के पाक माह की समाप्ति के करीब 70 दिनों बाद सेलीब्रेट किया जाता है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे, लेकिन अल्लाह ने हजरत इस्माइल को जीवनदान दे दिया. उसी त्याग और बलिदान की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है.
यह भी पढ़ें: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 2018: जानिए क्यों मनाया जाता है ईद-ए-मिलाद, मुस्लिम समाज में क्या है महत्त्व
क्या है कुर्बानी की कहानी
‘ईद उल जुहा’ का पर्व हिजरी के अंतिम माह जुल हिज्ज में मनाया जाता है. इस दिन दुनिया भर के मुसलमान मक्का (सऊदी अरब) में इकट्ठा होकर हज मनाते हैं. यह हज की एक अंशीय अदायगी और मुसलमानों की संवेदना का दिन है. ईद-उल-जुहा का वस्तुतः अर्थ त्याग वाली ईद है. इस दिन जानवर की कुर्बानी देना एक तरह की प्रतीकात्मक कुर्बानी है.
हजरत इब्राहिम के परिवार में उनकी पत्नी हाजरा और पुत्र इस्माइल थे. बताया जाता है कि अल्लाह की ओर से हजरत इब्राहिम को पुत्र इस्माइल को ईश्वर की राह पर कुर्बान करने का हुक्म दिया गया था. हजरत इब्राहिम अपने बेटे की क़ुरबानी देने गए तब ईश्वरने अपने फरिश्तों को भेजकर इस्माइल की जगह एक जानवर की कुर्बानी करने को कहा थाइब्राहिम से मांगी जानेवाली कुर्बानी का मूल आशय यह था कि खुद के सुख और आराम को भूलकर मानवता की सेवा करो. ईश्वर के आदेश का मूल तत्व समझने के बाद हजरत इब्राहिम ने अपने पुत्र इस्माइल और उनकी मां हाजरा को मक्का में बसाने का निर्णल लिया. लेकिन मक्का उन दिनों महजरेगिस्तान के सिवा कुछ नहीं था. हजरत इब्राहिम ने पुत्र और पत्नी को मक्का में बसाकर खुद मानव सेवा केलिए निकल गए. कहने का आशय यह कि पुत्र और पत्नी को रेगिस्तान में छोड़ना उनके पूरे परिवार की तरफ से एक तरह की कुर्बानी ही थी.
बकरीद का बकरा से कोई संबंध नहीं
इस शब्द का बकरों से कोई संबंध नहीं है. वास्तव में अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जिसे जिबह (काटा जाना) किया जाता है. उसी का बिगड़ा हुआ स्वरूप है‘बकरा ईद’ जिसे भारत, पाकिस्तान और बांग्ला देश में बड़े उल्हास के साथ मनाया जाता है.
बकरे को तीन हिस्सों में बांटा जाता है
‘ईद-ए-कुर्बां’ का अर्थ है बलिदान की भावना. अरबी में 'क़र्ब' यानी काफी करीबी को हैं. यानी इस मौके पर वह इंसान के बहुत करीब हो जाता है. इसलिए इस दिन हर वह मुसलमान जो एक या अधिक जानवर खरीदकर क़ुर्बान करता है. वह इसका गोश्त तीन समान हिस्सों में बांटता है. पहला हिस्सा गरीबों के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और दूसरे मिलने-जुलने वालों के लिए तथा तीसरा हिस्सा अपने लिए रखता है. जिस तरह ईद पर गरीबों को ईदी दी जाती है, उसी तरह से बकरीद पर गरीबों को गोस्त बांटा जाता है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.