पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव शयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवता योग-निद्रा में चले जाते हैं. इस वजह से चार मास आषाढ़, श्रावण, अश्विन एवं कार्तिक तक विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं. मान्यता है कि चातुर्मास में शुभ कार्य करने से अपशकुन और प्रतिकूल परिणाम दिखाते हैं. अलबत्ता इस दरम्यान पूजा-पाठ एवं धार्मिक कांड निर्विरोध जारी रहते हैं. ज्योतिष शास्त्रियों का मानना है कि इन चार मास में उपवास रखने अथवा किसी विशेष प्रयोजन निमित्त पूजा-पाठ एवं व्रत आदि शुरू करने से कई गुना ज्यादा पुण्य-फलों की प्राप्ति होती है. लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चातुर्मास के दरमियान कुछ और कार्य भी ऐसे हैं, जिन्हें करने से बचना चाहिए. आइये जानें क्या हैं ये कार्य..
ना करें चातुर्मास में ये कार्य
* चातुर्मास में किसी भी कार्य में असत्य का सहारा नहीं लेना चाहिए.
* निरीह एवं मासूम पशु-पक्षियों को दाना-पानी देते रहने से अक्षुण्ण पुण्य की प्राप्ति होती है.
* इस दौरान तेल, बैगन, पत्तेदार सब्जियां, मांस एवं मदिरा आदि के सेवन से बचना चाहिए.
* बिस्तर के बजाय जमीन पर सोना चाहिए.
* बहुत से लोग चातुर्मास में तुलसी की पूजा नहीं करते, लेकिन चातुर्मास-विधान के अनुसार इस पूरे चार माह तक तुलसी की पूजा आवश्यक रूप से करनी चाहिए. ऐसा करने से दरिद्रता दूर होती है.
* इन चारों माह दूध से बने पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि बारिश के कारण इनमें जल्दी कीड़े पड़ जाते हैं, जिनके खाने से तमाम किस्म की बीमारियां घेर सकती हैं.
* चातुर्मास में दोनों समय खाना नहीं खाना चाहिए. क्योंकि इन दिनों पाचन तंत्र कमजोर रहने से पेट में कीड़े पनप सकते हैं.
* चातुर्मास में सहवास से बचना चाहिए. ब्रह्मचर्य के पालन करने से शरीर में ऊर्जा संचालित होता है.
* इन चार माह तक सत्संग, प्रवचन इत्यादि में शामिल होना चाहिए.
* इन चार माह तक क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान जैसी भावनात्मक बातों से बचें.
* सुबह-सवेरे स्नान के पश्चात सूर्य को जल अर्पित करने के बाद गरीबों को कुछ ना कुछ दान अवश्य करें.
* चातुर्मास के दरम्यान दूर-दराज की यात्रा से बचें.
* इस दरम्यान सिनेमा, संगीत, नृत्य जैसी बातों से दूर रहना चाहिए.
* चातुर्मास के नियमों के अनुसार इन 4 महीनों में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए.