Chath Pooja: छठ महापूजा! जानें क्या है नहाय, खाय और खरना का विधान? जानें संतान-सुख की प्राप्ति का सबसे कठिन व्रत एवं पूजा विधि !
छठ पूजा (Photo: Wikimedia Commons)

छठ महापर्व का उल्लेख आदिकालीन पौराणिक ग्रंथों में भी देखने-सुनने को मिलता है. इसका एक उदाहरण महाभारत को भी माना जाता है. बताया जाता है कि पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने अपने कष्टों को दूर करने के लिए छठ का व्रत रखा था. द्रौपदी के व्रत एवं पूजा से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य देव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया, तब द्रौपदी के गर्भ से कर्ण ने जन्म लिया. इसके बाद से ही संतान प्राप्ति छठ व्रत एवं पूजा की परंपरा की शुरुआत हुई. इसके साथ ही त्रेता युग में भी अयोध्या वापसी के बाद श्रीराम एवं सीता ने भी छठ का व्रत रखा था, जिसके उपरांत सीता जी को संतान के रूप में लव एवं कुश प्राप्त हुए थे. यूं तो अधिकांश लोग यह व्रत संतान-सुख के लिए करते हैं, लेकिन ज्योतिषियों के अनुसार छठ मइया का व्रत सुख, शांति, समृद्धि एवं आरोग्यता की कामना के साथ भी रखा जाता है. चार दिनों तक चलने वाले छठ का महाव्रत इस वर्ष 08 नवंबर 2021 से शुरु हो रहा है. आइये जानें इस व्रत में ‘नहाय खाय’ और ‘खरना’ का क्या आशय है और किस मुहूर्त में छठ की पूजा सम्पन्न होगी.

सनातन धर्म में सूर्य पूजा से संबंधित कई व्रत एवं पर्व मनाये जाते हैं. इन्हीं में एक पर्व छठ का व्रत एवं पूजा है. कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाये जाने वाले इस पर्व पर भगवान सूर्य देव की पूजा होती है. छठ व्रत वास्तव में बहुत कठिन व्रत है, कमजोर शरीर वालों को यह व्रत करने की मनाही है. छठ का व्रत नहाय-खाय और खरना के नाम से लोकप्रिय है.

‘नहाय खाय’ का आशय

छठ महापर्व का पहला दिन यानी चतुर्थी को ‘नहाय खाय’ के रूप में मनाया जाता है. इस दिन व्रती सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करके नये वस्त्र धारण करती हैं. इसके पश्चात पूजा-अर्चना करके प्रसाद के रूप में चना दाल, चावल और कुम्हड़े की सब्जी बनाई जाती है, जिसका उपभोग सर्वप्रथम व्रती करता है, उनके पश्चात घर के बाकी लोग इस भोग को खाते हैं. इस तरह ‘नहाय खाय’ के साथ इस दिन की समाप्ति होती है. अगले दिन खरना का होता है.

क्या है ‘खरना’ या लोहंडा

कार्तिक मास शुक्लपक्ष की पंचमी का दिन खरना के नाम से लोकप्रिय है. इसे लोहंडा भी कहते हैं. इस दिन व्रती संध्याकाल के समय गुड़ की खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते हैं. इसके पश्चातही करीब 36 घंटे का निर्जल उपवास शुरु होता है. माना जाता है कि खरना पूजन से प्रसन्न होकर छठी मइया व्रत रखनेवाले के घर में प्रवेश करती हैं. यह भी पढ़ें : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने पुलिस को अगले साल मार्च तक लंबित मामले निपटाने का निर्देश दिया

कैसे होती है पूजा?

खरना के अगले दिन छठी मइया और सूर्य देव की पूजा की जाती है. इस वर्ष 10 नवंबर को छठ पूजा सम्पन्न किया जायेगा. इस दिन निर्जल रहते हुए पुनः नदी या कृत्रिम तालाब पर जाकर स्नान करते हैं, और सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. इसके लिए एक बांस से निर्मित सूप में केला, अन्य मौसमी फल, ठेकुआ, गन्ना आदि रखकर इसे पीले वस्त्र से ढक दिया जाता है. इसके पश्चात एक दीप प्रज्जवलित कर सूप में रखा जाता है. सूप को दोनों हाथों में लेकर निम्न मंत्र का जाप करें. इसके साथ ही छठ का महाव्रत पारण के साथ पूरा होता है.

ॐ अद्य अमुक गोत्रो...(गोत्र का नाम) अमुक नामाहं (खुद का नाम) मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये.