Chanakya Niti: मूर्ख शिष्य, दुष्ट स्त्री या दुखी व्यक्ति का संगत आपके व्यक्तित्व को नष्ट कर सकता है! जानें चाणक्य की इस नीति का रहस्य!
Chanakya Niti (img: file photo)

कहावत मशहूर है मूर्ख व्यक्ति, दुष्ट स्त्री या दुखी व्यक्ति से जितना दूर रहेंगे, सुरक्षित रहेंगे. इस बात का उल्लेख आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बखूबी किया है. उनके अनुसार मूर्ख व्यक्ति सहनशील और बहुत जल्दी क्रोधित होने वाला होता है. उसके शब्दों में अभद्रता, कड़वाहट एवं अपमान होता है. आइये देखें इस श्लोक के माध्यम से क्या कहा है आचार्य कौटिल्य यानी चाणक्य ने...

मूर्खशिष्योपवेशेन वुष्टास्त्रीभरणेन च।

दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ॥4॥

अर्थात मूर्ख शिष्य को पढ़ाने अथवा उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण-पोषण एवं उसके साथ रहने से तथा दुःखी व्यक्ति अथवा रोगियों के बीच रहने से विद्वान व्यक्ति भी दुखी होता है. साधारण इंसान की तो बात ही क्या है. आचार्य की नीति यही कहती है कि मूर्ख शिष्य को शिक्षा नहीं देनी चाहिए. दुष्ट स्त्री से संबंध बनाने से बेहतर उसे दूर रखना होगा और दुखी व्यक्तियों के बीच रहने से बचना चाहिए. हालांकि ये बातें किसी भी व्यक्ति को साधारण या सामान्य लग सकती है, लेकिन इस पर अगर गंभीरता से सोच विचार किया जाए तो स्पष्ट है कि शिक्षा या सीख उसी व्यक्ति को देनी चाहिए, जो उसका सुपात्र हो या जिसके मन में शिक्षाप्रद बातों को ग्रहण करने की इच्छा शक्ति हो. इस संदर्भ में एक कहानी काफी लोकप्रिय है. यह भी पढ़ें : Chanakya Niti: घर में सबसे बड़ा शत्रु कौन पिता, माता, पत्नी अथवा पुत्र? जानें इस संदर्भ में क्या कहती है चाणक्य-नीति?

एक बार वर्षा में भीगते बंदर को बया (पक्षी) ने घोंसला बनाने की शिक्षा दी, बंदर ने पहले कोशिश की, मगर नाकाम होने पर उसने बया का ही घोसला तहस-नहस कर डाला. इसलिए कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को किसी बात का ज्ञान न हो उसे जैसे तैसे बात समझाई सिखाई जा सकती है, लेकिन जो अधूरा ज्ञान रखते हैं, उसे तो ब्रह्मा भी नहीं समझ सकते हैं.

इसी संदर्भ में आचार्य चाणक्य ने आगे कहा है कि मूर्ख स्त्री का संगत या उसका पालन पोषण करना भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए दुख का कारण बन सकता है, क्योंकि जो स्त्री अपने पति के प्रति सच्ची आस्था न रखती हो, वह दूसरे के लिए भला क्या विश्वसनीयता रख सकती है? इसी की अगली कड़ी यानी दुखी व्यक्ति की संगत के संदर्भ में कौटिल्य की नीति कहती है कि जो आत्मबल से रहित हो चुका है, सदा निराशा में डूबा रहता है, उसे उबारने की कोशिश करने वाला व्यक्ति भी उसी में डूबकर अपना अस्तित्व अपनी पहचान खो सकता है.