‘दुनिया में शायद ही कोई ऐसा प्राणी होगा, जिसने जीवन में कभी कोई कोई दुख नहीं भोगा हो. जो इस बात से इंकार करता है, वह जीवन का मूल्यांकन नहीं कर सकता. आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में यही तो कहना चाहा है...’
कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः।
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम्।।
अर्थात
किसका कुल निष्कलंक है, परिवार में कौन दोषी नहीं है, अथवा कौन कभी किसी रोग से पीड़ित नहीं होता है, किसके ऊपर कभी विपत्ति नहीं आती अथवा किसका सुख अखंड और अजर है?
चाणक्य का आशय यही है, अपने ही परिवार में किसी एक से क्यों शर्मिंदा हों? ऐसा कोई भी नहीं है, जो पूर्ण रूप से स्वस्थ हो, निर्दोष हो अथवा कभी किसी को स्वास्थ्य की समस्या नहीं हुई होगी. रोग से केवल प्राणी ही पीड़ित होते हैं, लकड़ी जैसी निर्जीव वस्तु थोड़े ही बीमार पड़ते हैं. यही तो जीवित प्राणी की पहचान होती है. यह भी पढ़ें : Public Holiday On Jashne Eid Milad Un Nabi 2024: क्या 16 September यानी ईद मिलाद-उन-नबी के दिन भारत में सार्वजनिक छुट्टी है
क्या दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति मिल सकता है, जो कभी बीमार नहीं पड़ा हो, अथवा किसी संकट की घड़ी का सामना नहीं किया हो? अगर किसी ने कोई समस्या, कोई दुख, कोई कष्ट नहीं भोगा है तो मान लीजिये कि उसने जीवन ही नहीं जीया, क्योंकि अगर किसी ने कभी कोई, अथवा कष्ट नहीं भोगा है, वह किसी के आशीर्वाद अथवा सराहना का मूल्यांकन नहीं कर सकता.
इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए चाणक्य यह भी कहते हैं कि ऐसा कोई नहीं है, जिसने जीवन में कभी अच्छा समय नहीं देखा हो! इस बात की कोई गारंटी नहीं कि आज जो नाव सहज चल रही है, वह आगे चलकर किसी तूफान से डगमगाएगी नहीं. समुद्र के उथल-पुथल अथवा तेज लहरें उस नाव को भी डगमगाने के लिए विवश करेगी.
परिवर्तन ही एकमात्र ऐसी चीज है, जो स्थिर है, दुख हो या दर्द यह अवश्यंभावी है, फिर कमियों, दोषों, कष्टों को लेकर चिंतित क्यों हों?