Annapurna Jayanti 2022: क्यों मनाते हैं अन्नपूर्णा जयंती? माँ अन्नपूर्णा की अर्चना से घर में भरा रहता है धन-धान्य का भंडार!
Annapurna Jayanti (Photo Credit : File Photo )

मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती (Annapurna Jayanti) `नायी जाती है. मान्यता है कि इसी इस दिन मां अन्नपूर्णा प्रकट हुई थीं, इसीलिए प्रत्येक वर्ष इस दिन मां अन्नपूर्णा की विधिवत व्रत एवं पूजा का विधान है. कहते हैं कि जिस घर में अन्नपूर्णा की पूजा होती है, उस घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती, क्योंकि मां अन्नपूर्णा इस घर में वास करती हैं. जानें अन्नपूर्णा जयंती की तिथि. मुहूर्त, पूजा विधि एवं पौराणिक कथा..

अन्नपूर्णा जयंती का महत्व

सनातन धर्म में अन्नपूर्णा जयंती का विशेष महत्व है. जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है कि माँ अन्नपूर्णा अन्न एवं खान-पान को समर्पित देवी हैं. हिंदी में अन्न का अर्थ भोजन होता है, जबकि पूर्ण का अर्थ संपूर्ण है. किंवदंतियों के अनुसार, जब पृथ्वी से भोजन खत्म होने लगा, तो भगवान ब्रह्मा और विष्णु सहित सभी मनुष्यों ने भगवान शिव से प्रार्थना की. देवी पार्वती तब मार्गशीर्ष माह की 'पूर्णिमा' पर देवी अन्नपूर्णा के रूप में प्रकट हुई, थीं और पृथ्वीवासियों के लिए भोजन की व्यवस्था की. इसके बाद से ही इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा ही यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके भक्तों को भरण-पोषण के लिए पर्याप्त और समय पर भोजन प्राप्त हो. काशी यानी वाराणसी में माँ अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है. यह भी पढ़ें : Gita Jayanti 2022 Quotes: गीता जयंती की शुभकामनाएं, अपनों संग शेयर करें श्रीमद्भगवत गीता के ये 10 अनमोल उपदेश

अन्नपूर्णा जयंती की तिथि एवं शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा प्रारंभः 08.01 AM (07 दिसंबर, 2022, बुधवार)

पूर्णिमा समाप्तः 09.37 AM (08 दिसंबर 2022, गुरुवार)

अभिजित मुहूर्तः 11.52 AM से 12.34 PM तक

अन्नपूर्णा पूजा का शुभ मुहूर्तः 07. 08 AM से अगले 22 मिनट तक

अन्नपूर्णा जयंती 2022 पूजा विधि

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात घर की रसोई एवं गैस चूल्हे की अच्छी तरह सफाई करें. इस पर गंगाजल का छिड़कें. चूल्हे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. इस पर सिंदूर, अक्षत, लाल रंग का फूल अर्पित कर धूप-दीप प्रज्वलित करें. अब पूजा घर में देवी अन्नपूर्णा की तस्वीर अथवा प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्वलित कर देवी को लाल फूल, सिंदूर, रोली, अक्षत एवं मिष्ठान अर्पित करें. माँ अन्नपूर्णा के निम्नांकित मंत्र का जाप करें.

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।

ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वती ।।

इसके बाद देवी अन्नपूर्णा का स्त्रोत का पाठ करें. पूजा के पश्चात माँ के सामने करबद्ध होकर पूजा पाठ में जाने-अनजाने हुई त्रुटियों के लिए छमा याचना करें. अंत में सभी को प्रसाद का वितरण करें.

ऐसे प्रकट हुईं माँ अन्नपूर्णा

एक बार पृथ्वी पर भयंकर रूप से सूखा पड़ा. सारे खेत बंजर हो गये थे. फसलें, फलों आदि की पैदावार ना होने से मानव ही नहीं पशु-पक्षियों का जीवन संकट तक पर पड़ गया. तब भगवान शिव ने पृथ्वीवासियों के कल्याण के लिए भिक्षुक का स्वरूप धारण किया. तथा देवी पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया. भगवान शिव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा में अन्न मांगा. देवी अन्नपूर्णा से मिले इस अन्न को लेकर भगवान शिव पृथ्वी लोक पर पहुंचे, और सभी प्राणियों में इसे बांट दिया. इसके बाद धरती पुनः धन-धान्य हरी-भरी हो गई. कहते हैं कि इसके बाद से ही मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाये जाने की शुरुआत हुई.